जिसके जन्म के बाद पसर गया सन्नाटा क्योंकि पैदा होने वाला बच्चा न लड़का था और न ….

लाख मुश्किलों से लड़ जाने को ही ज़िन्दगी कहते हैं…और इसे साकार कर रही है यूपी के वाराणसी की रहने वाली गुड़िया (gudiya)। जो जन्म से ही आम बच्चो से अलग थी। अलग होने की वजह से ही गुड़िया के जन्म के वक़्त जश्न नहीं सन्नाटा पसर गया था। परिवार के सदस्य चीख चीख कर रो रहे थे मानो किसी का जन्म नहीं बल्कि किसी की मौत हो गयी हो। वो इसलिए क्योंकि गुड़िया (gudiya) किन्नर थी।

लाख मुश्किलों से लड़ जाने को ही ज़िन्दगी कहते हैं…और इसे साकार कर रही है यूपी के वाराणसी की रहने वाली गुड़िया (gudiya)। जो जन्म से ही आम बच्चो से अलग थी। अलग होने की वजह से ही गुड़िया के जन्म के वक़्त जश्न नहीं सन्नाटा पसर गया था। परिवार के सदस्य चीख चीख कर रो रहे थे मानो किसी का जन्म नहीं बल्कि किसी की मौत हो गयी हो। वो इसलिए क्योंकि गुड़िया (gudiya) किन्नर थी।

परिवार की अनदेखी और सिलेंडर ब्लास्ट से लेकर ट्रैन में भीख माँगा लेकिन हार नहीं मानी। उसके इरादों को हरा नहीं सका। अपने हर है हालातों से लड़ गुड़िया ने अपने साथ साथ अपने अपने परिवार की भी तकदीर बदल डाली।

वाराणसी के रामनगर चौरहट में गुड़िया (gudiya) ने जब जन्म लिया तो मातम मनाया गया क्योंकि वह किन्नर थी। 16 साल तक परिवार पर बोझ बनकर पली। आखिरकार समाज के तानों से तंग आकर घर छोड़ दिया लेकिन कहीं कोई जगह न मिलने पर ढाई साल बाद अपने घर लौटी तो बड़े भाई की इजाज़त के बाद किन्नर गुरु रोशनी के साथ मंडली में बधाइयाँ गाने लगी।

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घर घर जाकर बधाईया गाती और जैसे तैसे अपना गुजर बसर करती रहती। लेकिन किस्मत में और भी बहुत कुछ देखना लिखा था। एक दिन गुड़िया (gudiya) खाना बना रही थी।  इसी दौरान गैस सिलेंडर ब्लास्ट हो गया और वो बुरी तरह से झुलस गयी। नतीजा ये हुआ घर घर जाकर बधाईया गाने का काम भी छीन गया। आखिरकार आजीविका के लिए ट्रेन  में भीख मांगना शुरू कर दिया।

लेकिन उसने हार नहीं मानी ज़िंदगी की मुश्किलों से लड़ती रही झूझती रही। ट्रेन में मांगे गए भीख के पैसों से बचत करनी शुरू की और दो पावरलूम लगाकर अपनी गुजर-बसर का इंतजाम भी कर लिया। भाई और भाभी की हिम्मत से जीने का जो हौसला गुड़िया के अंदर आया था वह उस कर्ज को भाई-भाभी की दिव्यांग बेटी के लिए कुछ कर के उतारना चाहती थी।

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सरकार की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से प्रेरित होकर अपने भाई की दिव्यांग बेटी के साथ एक और बेटी को गोद लेकर आज गुड़िया उन्हें पढ़ा-लिखाकर पावरलूम पर काम करना भी सिखा रही है ताकि वह अपने पैरों पर खड़ी होकर समाज में एक मिसाल कायम कर सकें। इतना ही नहीं गुड़िया अपनी एक बेटी को पढ़ा लिखा कर डॉक्टर भी बनाना चाहती है।

दरअसल कमी बेटी या किन्नर होने में नहीं कमी तो सामाजिक विचारधारा में है जिसे समय-समय पर विकृत रूप दे दिया गया। इनके जीवन के मर्म को समझने के बजाय तिरस्कार भरी नजर से ही इन्‍हें देखा, क्‍यों कोई इनके अंदर के इंसान को नहीं देख पाता। गुड़िया की प्रेरणादायी कहानी समाज की विचारधारा को परिवर्तित करने के साथ-साथ दुश्वारियों से लड़ने के लिए भी प्रेरणा देती है।

 

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