आखिर कौन हैं बिरसा मुंडा, जिनकी जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री से लेकर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव तक कर रहे हैं ‘नमन’

आज यानि रविवार को बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी से लेकर सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव तक उन्हें नमन कर रहे हैं ,पर क्या आप जानते हैं आखिर कौन है बिरसा मुंडा।

आज यानि रविवार को बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी से लेकर सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव तक उन्हें नमन कर रहे हैं ,पर क्या आप जानते हैं आखिर कौन है बिरसा मुंडा।

बिरसा मुंडा की जयंती रविवार को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाई जाएगी। इसको लेकर जनजाति मंच के सदस्यों ने शनिवार को दशहरा मैदान से रैली निकाली।

कारंजा चौक स्थित शहीद स्तंभ पर भीमा नायक व भगवान बिरसा मुंडा के फोटो पर माल्यार्पण कर पूजा की गई। शनिवार को दोपहर 1 बजे दशहरा मैदान से रैली निकाली गई। रैली चंचल चौराहा, गायत्री मंदिर, तिरछी पुलिया, कोर्ट चौराहा होकर कारंजा चौक पहुंची।बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा, ‘झारखंड के स्थापना दिवस पर राज्य के सभी निवासियों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। इस अवसर पर मैं यहां के सभी लोगों के सुख, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं।’अपने ट्वीट में लिखा है कि भगवान बिरसा मुंडा जी को उनकी जयंती पर शत-शत नमन। वे गरीबों के सच्चे मसीहा थे, जिन्होंने शोषित और वंचित वर्ग के कल्याण के लिए जीवनपर्यंत संघर्ष किया। स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान और सामाजिक सद्भावना के लिए किए गए उनके प्रयास देशवासियों को सदैव प्रेरित करते रहेंगे।

वहीँ दूसरी तरफ सपा सुप्रीमो ने भी ट्वीट करके बिरसा मुंडा नमन किया है। अपने ट्वीट में लिखा है कि -महान क्रान्तिकारी, जननायक, जल, जमीन, जंगल के लिए लड़ाई लड़ने वाले,अदम्य साहसी बिरसा मुंडा जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन।

कौन हैं बिरसा मुंडा
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को बंगाल प्रेसीडेंसी, उलीहातू, रांची जिला, बिहार में हुआ था। यह स्थान अब झारखंड के खुंटी जिले में आता है। मुंडा एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता और लोक नायक थे।

जो मुंडा जनजाति से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने 19वीं सदी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में ब्रिटिश राज के दौरान हुए एक आदिवासी धार्मिक आंदोलन की अगुवाई की थी।

इसने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बना दिया। यह आंदोलन मुख्य रूप से खूंटी, तामार, सरवाड़ा और बंदगांव के मुंडा बेल्ट में केंद्रित था। उनकी तस्वीर भारतीय संसद के संग्रहालय में मौजूद है। वे एकमात्र ऐसे आदिवासी नेता हैं जिन्हें यह सम्मान मिला है। भारत सरकार ने 1988 में उनके सम्मान में एक डाट टिकट भी जारी किया था।

 

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