BJP में नरेश अग्रवाल: जाधव आतंकी है और “व्हिस्की में विष्णु और रम में राम” को देखने वाले बयानों का जनता क्या करे मोदी जी

लखनऊ। नरेश अग्रवाल भाजपाई हो गए हैं. आधिकारिक रूप से बीजेपी के हो गए हैं. हरदोई से राजनीति करने वाले नरेश अग्रवाल सत्ता के हिसाब से पार्टी तय करते हैं. एक समय पर वो कांग्रेसी थे. फिर लोकतांत्रिक कांग्रेस के मुखिया हुए. बीजेपी में भी गए. मुलायम सिंह और फिर अखिलेश के करीबी बने. इन सबके बीच बहन मायावती के साथ भी रह चुके हैं. अब वापस बीजेपी में शामिल हुए हैं.

कांग्रेस से शुरुआत

1980 में नरेश पहली बार विधायक चुने गए. इससे पहले उनके पिता श्री बाबू विधायक रहे हैं. नरेश संजय गांधी के करीबी नेताओं में माने जाते थे. कहा जाता है कि नरेश और 80 विधायकों ने संजय गांधी को यूपी का सीएम बनाने की मांग की थी. इसके बाद संजय और इंदिरा गांधी दोनों इस दुनिया से चले गए. वीपी सिंह ने 1985 चुनाव में नरेश का पत्ता काट दिया.

1989 में नरेश को फिर से टिकट नहीं मिला. इस बार उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा, जीत गए. नरेश अग्रवाल अपने क्षेत्र पर पकड़ बनाए रखने और बूथ मैनेजमेंट में माहिर होने के लिए जाने जाते है. नरेश जीत गए. राजीव गांधी ने उन्हें फिर वापस शामिल कर लिया. नरेश राम मंदिर लहर में भी अपनी सीट बचा पाए.

राजनाथ ने हटाया

सीताराम केसरी के दौर में अग्रवाल ने लोकतांत्रिक कांग्रेस बनाई. नरेश ने अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में यूपी की राजनाथ सिंह की सरकार को समर्थन दिया. वो कहते थे कि उनके बिना राजनाथ सरकार नहीं चल सकती. राजनाथ सिंह ने उन्हें सरकार से बाहर कर दिया. नरेश समाजवादी हो गए. एसपी की सत्ता से विदाई हुई तो बहुजन हिताय की बात करने लगे.

2012 में नरेश वापस समाजवादी पार्टी के वफादार सिपाही बने. इसके बाद यूपी इलेक्शन में उनके बेटे को चुनाव लड़ने का मौका मिला. नरेश अग्रवाल जब एसपी के टिकट पर राज्यसभा में थे तो उन्होंने बीजेपी और नरेंद्र मोदी पर कई हमले किए. राम मंदिर वाली पार्टी का विरोध करते हुए उनके विवादास्पद बयान भी आए.

जुलाई 2017 में उन्होंने एक विवादास्पद दोहा पढ़ा था कि जिसमें विष्णु, राम, जानकी और हनुमान की तुलना शराब के अलग प्रकारों से की गई थी. नरेश अग्रवाल दिसंबर 2017 में कुलभूषण जाधव को आतंकी भी बताया. इसके अलावा नरेश अग्रवाल अपने गौ हत्या और रेप से जुड़े बयानों के लिए भी चर्चा में आ चुके हैं. मगर इन सब को भुलाकर अब वो बीजेपी के समर्पित कार्यकर्ता हैं.  बाकी बशीर बद्र का शेर है.सियासत की अपनी अलग इक ज़बां है लिखा हो जो इक़रार, इनकार पढ़ना

 

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