CBI की वो चूक, जिसकी वजह से बरी हो गए कनिमोझी-राजा सहित सभी आरोपी

नई दिल्ली। दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने टू-जी घोटाले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. जस्टिस ओपी सैनी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष मामले में दो पक्षों के बीच पैसों के लेन-देन को साबित कर पाने में नाकाम रहा है.

कोर्ट ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और द्रमुक की राज्य सभा सांसद कनिमोझी के साथ अन्य आरोपियों को बरी कर दिया. जस्टिस ओपी सैनी ने कहा कि ये आरोपियों की मजबूती नहीं, बल्कि अभियोजन की कमजोरी थी कि वे आरोप साबित नहीं कर पाए.

इस फैसले के साथ ही सीबीआई की ओर से पेश की गई दलीलों पर सवाल उठने लगे हैं. मामले में आगे अपील करने के लिए सीबीआई प्रोसिक्यूशन टीम फैसला लेगी.

हालांकि खबर आ रही ईडी ने मामले में आगे अपील करने का फैसला किया है. वरिष्ठ वकील प्रतीक सोम का कहना है कि मामले बीजेपी नेता सुब्रह्ममण्यम स्वामी भी कोर्ट जा सकते हैं, लेकिन सीबीआई और ईडी का भी पक्ष रहेगा.

SC को ओवरराइट नहीं कर सकता स्पेशल कोर्ट का फैसला

बिजनेस टुडे के मैनेजिंग एडिटर राजीव दुबे का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पटियाला हाउस कोर्ट का फैसला ओवरराइट नहीं कर सकता. शीर्ष कोर्ट बोल चुका है और उन्होंने इस केस में 122 लाइसेंस कैंसिल किए थे. साथ ही इसे असंवैधानिक बताया था.

कोर्ट का कहना था कि टू-जी आवंटन में कुछ कपंनियों को फेवर किया गया है, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ. सुप्रीम कोर्ट का फैसला पहले ही साबित कर चुका है कि मामले में हेरा फेरी हुई है. लेकिन विशेष अदालत में सुनवाई के दौरान ऐसा हुआ है कि अभियोजन पक्ष ये साबित नहीं कर पाया कि कौन लोग इसमें शामिल हैं.

मारन ने उलट दी स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रक्रिया

दुबे ने कहा कि अगर इतिहास देखें तो 94 से 2001 तक पहले ऑक्शन होते थे, उसके बाद स्पेक्ट्रम का आवंटन होता था. जब 2006-07 में दयानिधि मारन टेलीकॉम मंत्री बने तो उन्होंने ‘पहले आओ-पहले पाओ’ की नीति शुरू की. मारन ने इस प्रक्रिया में सब कुछ उलट दिया.

ए राजा ने शुरू की, ‘फर्स्ट पे, फर्स्ट सर्व’ की नीति

उन्होंने कहा कि जो पहले आएगा, लाइसेंस के लिए अप्लाई करेगा, उसे पहले मिलेगा. इसके बाद आवेदक के सब्सक्राइबर के आधार पर उसको स्पेक्ट्रम का आवंटन किया जाएगा. इसके बाद ए राजा आए तो उन्होंने इसमें एक और चीज जोड़ी. वो ये कि मारन के समय से चल रही चीजें तो होंगी साथ ही अब जो पहले पैसा देगा, उसे ही पहले आवंटन मिलेगा. यानी अब नीति ‘फर्स्ट पे, फर्स्ट सर्व’ की थी.

वे कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. कोर्ट ने इसे मनमाना और असंवैधानिक बताया था. कोर्ट ने यह भी कहा था कि इसमें घोटाला हुआ है. जेटली के बयान को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि चेक में डेट चेंज की गई थी और पहले से लोगों ने ड्राफ्ट बनवा लिए थे.

‘जो आरोप तय किए थे, वे किस आधार पर थे?’

आरोपियों के बरी किए जाने और अब आगे की सुनवाई में आरोपियों की पहचान के सवाल पर वरिष्ठ वकील प्रतीक सोम ने कहा कि ये जानना जरूरी है कि जो आरोप तय किए गए थे, वे किस आधार पर तय किए गए थे. इस केस में प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट लगा, क्योंकि ए राजा उस समय मंत्री थे. इसके साथ ही इसमें आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और जालसाजी की धारा भी लगी.

सोम ने कहा कि जहां तक सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सवाल है तो शीर्ष कोर्ट की टिप्पणी की थी कि इसमें कानून का पालन नहीं किया गया. ये सब चीजें प्रशासनिक अनियमितता हैं.

CBI से यहां हुई चूक

उन्होंने कहा कि प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट और जालसाजी के केस में पैसों की अनियमितता को साबित करना होता है. जिसे साबित करने में अभियोजन पक्ष नाकाम रहा. सरकारी वकील पैसों के लेन-देन को साबित करने में नाकाम रहा. उन्होंने कहा कि जब आवंटन हुआ तो अनियमितता थी, लेकिन ये प्रशासनिक अनियमितता थी.

 

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