चित्रकूट : आज भी जिंदा है वो……..

छटवीं शताब्दी से लेकर आज तक काफी लंबा अर्षा गुजर चुका है और इसी के साथ तकरीबन 1500 वर्षां से एक हवेली अभी भी वीरान पड़ी हुई हैं। जहां आज भी रात के अंधेरे में सुनाई देती है।

छटवीं शताब्दी से लेकर आज तक काफी लंबा अर्षा गुजर चुका है और इसी के साथ तकरीबन 1500 वर्षां से एक हवेली अभी भी वीरान पड़ी हुई हैं। जहां आज भी रात के अंधेरे में सुनाई देती है। पायलों की झनकार। सदियों पुराने इतिहास को अपने सीने में दफन किए इस हवेली में सूरज ढलते ही सन्नाटा पसर जाता है। लोगों की माने तो इस आलीशान हवेली में कई अजीब और डरावने वाकिए का होना आज भी बदस्तूर बरकरार है। रहस्य रोमांच और डर को बयां करती इस पुरानी विरासत में लोगबाग रात में कदम रखने से भी कतरातें हैं। इलाकाई लोगों का मानना है गुजरे 1500 सालों से कोई यहां पर रहता है जिसकी मौजूदगी सूरज के छिपते ही सुनाई पड़ने लगती हैं।

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बात हो रही है श्रीराम की तपोभूमि में आने वाले गनीषबाग की जहां आज भी कोई अदृश्य ताकत अपने वजूद के होना एहसास दिलाती रहती है। कभी अपनी खूबसूरती और शानौशौकत के लिए पहचाने जाने वाले इस महल में आज भी कोई बसर करता है जिसकी पायलों की आवाज रात के सन्नाटे को चीर कर रख देती है। इस महल को बने हुए तकरीबन 1500 सालों से ज्यादा का वख्त जा गुजरा है… बाउजूद इसके अब तक इस हवेली पर पड़ा रहस्य का पर्दा अभी तक नही हट पाया है और गुजरे वख्त के साथ 21वीं सदी में भी ये रहस्य आज भी बरकरार है।

चित्रकूट के गणेशबाग में पहले राज परिवार के लोग रहा करते थे। समय के साथ ही राजा महराजा से जुड़े लोग बाग इतिहास के गर्त में खोते चले गए और अब समय के साथ ही ये बाग पूरी तरह से वीरान हो चुका है। कई सदियों पहले लगने वाले राजा के दरबार में नृतकिया अपने हुनर का प्रदर्शन इसी बाग में किया करतीं थी…इलाकाई लोगों की अगर माने तो रात के अंधेरे में आने वाली पायल और घुघरूओं की आवाज कहीं न कही उन्ही नृतकियों की मृत आत्माओं की चहल कदमी के चलते आज भी इसी महल में गूंजा करती है। दिन के उजाले में जहां गणेशबाग पर्यटकों के आने जाने से गुलजार रहता है वहीं सूरज के ढलने के बाद यहां कोई एक पल भी ठहरना सही नही समझता है। कुल मिलाकर कहें तो किंवदतियों ने आज भी इस गणेशबाग में पायल की झनकार को जिंदा रखा हुआ है। ज्यादातर का मानना है की इस महल में आज भी कोई अपने जिंदा होने के सबूत पेश करता है…।

REPORT – SURENDRA SINGH KACHHAWAH

 

 

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