DIGITAL INDIA पर सवाल: EXPERTS ने कहा-इंटरनेट स्पीड कम, बिजली नहीं

modi_digiतहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, नई दिल्ली। डिजिटल इंडिया कैंपेन को बुधवार को लॉन्च कर दिया गया। इसके तहत देश की 2.5 लाख गांवों को इंटरनेट ब्रॉडबैंड से जोड़ने की योजना है। कैंपेन के जरिए रोजमर्रा से जुड़े तमाम सरकारी कामकाज को एम गवर्नेंस यानी मोबाइल गवर्नेंस के जरिए किए जाने का भी लक्ष्य है। लेकिन एक्सपर्ट डिजिटल इंडिया कैंपेन की सफलता को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं।
 ‘इंटरनेट फैसिलिटी और साक्षरता की कमी’
-पवन दुग्गल, वरिष्ठ वकील, साइबर एक्सपर्ट
पवन दुग्गल का कहना है कि इंटरनेट फैसिलिटी और लिट्रेसी भारत में एक बड़ी समस्या है। दक्षिण कोरिया की 98 फीसदी आबादी इंटरनेट इस्तेमाल करती है, लेकिन भारत में यह आंकड़ा अभी काफी कम है। इसके अलावा भारत में लोग कम्प्यूटर और टैब से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन भारत में इंटरनेट की स्पीड और स्मार्टफोन की काफी दिक्कत है जिसपर भारत को ध्यान देने की जरूरत है। इंटरनेट साक्षरता भी भारत में बड़ी समस्या है। भारत की कोशिश है कि देश के दूरदराज में इस तरह के केंद्र बनाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को डिजिटल फैसिलिटी उपलब्ध कराई जाएं।
‘इंटरनेट स्पीड है समस्या’
-अचिन जाखड़, आईटी एक्सपर्ट

भारत में इंटरनेट स्पीड काफी कम है। भारत में 1-2 एमबीपीएस डाउनलोड स्पीड है, जबकि साउथ कोरिया और हांगकांग जैसे देशों में काफी ज्यादा है। उनके अनुसार डिजिटल इंडिया का सपना साकार करने के लिए इंटरनेट स्पीड में बढ़ोतरी बहुत जरूरी है। अचिन जाखड़ के अनुसार मेट्रो शहरों मे लोगों को इंटरनेट स्पीड मिल भी रही है, लेकिन छोटे शहरों और गांवों की हालत बहुत खराब है। लोग ई-गर्वनेंस से जुड़ना चाहते हैं, लेकिन स्पीड की दयनीय स्थिति में लोग मुंह मोड़ने लगते हैं। सरकार को डिजिटल इंडिया के सपने को साकार करने के लिए इंटरनेट स्पीड की ओर जरूर ध्यान देना होगा।
‘बिजली की कमी बड़ा रोड़ा’
-बीबी तिवारी, पूर्व सदस्य डीईआरसी

बीबी तिवारी का कहना है कि बिजली के बगैर डिजिटल इंडिया का सपना सपना ही रह जाएगा। सरकार भारत को डिजिटल इंडिया बनाने पर फोकस कर रही है, लेकिन इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरत बिजली की है। देश में बिजली की कमी है। अभी फिलहाल देश में 80 हजार मेगावॉट बिजली है, लेकिन मांग हैं एक लाख 37 हजार मेगावाट की। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बिजली की दो-तिहाई की कमी है। यूपी में गांवों में बिजली ही नहीं आती है। लोग मोबाइल रिचार्ज तक नहीं कर पात हैं तो डिजिटल इंडिया कहां से होगा। तिवारी के अनुसार एक मेगावॉट बिजली बनाने में 6 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। सरकार के पास बजट कहां है? उनके अनुसार एक मेगावॉट सोलर एनर्जी पैदा करने के लिए 7-10 एकड़ की जरूरत होती है, इतनी जमीन कहां से लाएंगे?
सरकार कितना खर्च करेगी?
-डिजिटल इंडिया पर सरकार ने 1 लाख करोड़ रुपए खर्च करने का लक्ष्य रखा है। हर गांव को नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के दायरे में लाया जाएगा। मार्च 2015 तक 50 हजार गांवों का जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन अभी 30 हजार पंचायतें ही इस नेटवर्क से जुड़ पाई हैं।
देश में अभी क्या है स्थिति?
-इन्फॉर्मेशन एंड टेक्नोलॉजी टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट इंडेक्स के मुताबिक भारत इंटरनेट कनेक्टिविटी, लिट्रेसी और बैंडविड्थ जैसे मामलों में 166 देशों की लिस्ट में 129वें स्थान पर है। भारत मालदीव, मंगोलिया, केन्या, कजाख्स्तान, फिजी, निकारागुआ से भी पीछे है। देश में 20 करोड़ लोग यानी करीब 15% आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल कर रही है। जबकि चीन में 60 करोड़ लोग यानी 44% आबादी इंटरनेट यूज़ करती है।
भारत को कंज्यूमर मार्केट की तरह देख रही हैं कंपनियां
-विराग गुप्ता, सीनियर साइबर एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपने बहुआयामी जनलुभावनी योजनाओं वाले 1 लाख करोड़ रुपए के डिजिटल इंडिया प्रोग्राम की शुरुआत कर दी। डिजिटल इंडिया, अमेरिकी कंपनियों से प्रेरित कार्यक्रम हैं, जो भारत की विशाल आबादी तथा 25 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूज़र्स को बड़े उपभोक्ता बाजार के तौर पर देखती हैं। अमेरिकी इंटरनेट कंपनियों द्वारा ई-कॉमर्स के माध्यम से देश के पूरे बाजार पर कब्जा किए जाने का खतरा मंडरा रहा है, जो बड़े पैमाने पर धन के देश से बाहर जाने और बेरोजगारी का कारक है।
ई-कॉमर्स गैर-कानूनी
प्रश्न टीवी या डिजिटल तकनीक के विरोध का नहीं बल्कि देश की प्राथमिकताओं का है। उपलब्ध संसाधनों को प्राथमिकता के आधार पर टॉयलेट निर्माण, कृषि विकास, मूलभूत ढांचे तथा गरीबी उन्मूलन के लिए आवंटित किया जाना चाहिए। देश में ई-कॉमर्स का मौजूदा बाजार करीब 13 अरब डॉलर का है। जहां ई कंपनियों की वैल्यू बढ़ाने का गोरखधंधा हो रहा है। इसके तहत घाटे का व्यापार कर लाखों करोड़ रुपए की पूंजी जुटाई जा रही है, जो गैर-कानूनी पूंजी और एफडीआई के रूप में आ रही है। इस व्यापारिक मॉडल में न्यूनतम रोजगार के नकारात्मक पहलू के अलावा देश का पैसा ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से विदेशों में जा रहा है। ई-कॉमर्स कंपनियों का भारत में कोई कानूनी आधार नहीं और इनके द्वारा बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी भी की जा रही है। इंटरनेट व्यापार में डिजिटल सिग्नेचर का प्रयोग नहीं होने से सारा ई-कॉमर्स अवैध है। कानून का पालन कराने की बजाय डिजिटल इंडिया की सौगात देकर इनके हौसले इतने बुलंद कर दिए गए हैं कि अब वेबसाइट बंद कर मोबाइल एप्लीकेशन से ऑनलाइन व्यापार किया जा रहा है, जिससे व्यापार का पूरा लाभ तो मिले परंतु किसी प्रकार की कानूनी जवाबदेही न बन पाए। इस पूरी गैर-सरकारी व्यवस्था से देश में सालाना 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक की कर चोरी हो रही है परंतु अज्ञानतावश या निहित स्वार्थों की वजह से सरकार चुप है। डिजिटल क्रांति का एक महत्वपूर्ण बिंदु डाटा की सुरक्षा और स्टोरेज है।
 सभी बड़ी इंटरनेट कंपनियों के सर्वर भारत के बाहर
सभी बड़ी अमेरिकी इंटरनेट कंपनियों के सर्वर भारत से बाहर हैं। यदि सर्वर भारत में लगाया जाए तो प्रति सर्वर औसतन एक हजार लोगों को रोजगार मिल सकता है। इसके अलावा भारत में सर्वर होने से सुरक्षा जेंसियों को अपराध नियंत्रण में भी मदद मिल सकेगी और इन कंपनियों की भारत में कानूनी जवाबदेही भी बन पाएगी। इस खामी के चलते दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर केंद्र को सरकारी अधिकारियों के लिए नई ई-मेल पॉलिसी लानी पड़ी, जिसके अनुसार विदेशी इंटरनेट कंपनियों के सर्वर के माध्यम से सरकारी कार्यों के लिए ई-मेल का प्रयोग गैर-कानूनी है। दुर्भाग्य है कि इतने स्पष्ट आदेश और कानून के बावजूद भारत सरकार के 45 लाख से अधिक कर्मचारी-अधिकारी तथा राज्य सरकारों के करोड़ों अधिकारी विदेशी ई-मेल सेवाओं का गैर-कानूनी प्रयोग कर रहे हैं।
अमेरिकी कंपनियों के फायदे के लिए है डिजिटल इंडिया?
जनता की गाढ़ी कमाई के एक लाख करोड़ रुपए से अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए डिजिटल इंडिया का रेड कार्पेट वैसे ही बिछाया जा रहा है, जैसे ब्रिटिश भारत में कच्चे माल की सप्लाई के लिए रेलवे लाइन का जाल बिछाया गया था। फेसबुक पर तथाकथित निःशुल्क सेवाएं देने के बावजूद, भारतीय बाजार के विज्ञापनों की भारी कमाई से यह देश की तीन बड़ी कंपनियों रिलायंस, ओएनजीसी एवं टीसीएस की सामूहिक वित्तीय क्षमता से बड़ी कंपनी बन गई है, लेकिन यह भारत में एक हजार से भी कम लोगों को रोजगार देती है। फिर ये कंपनियां अमेरिका, सिंगापुर एवं आयरलैंड के केंद्रों से संचालित होकर भारत में कोई सर्विस टैक्स और इनकम टैक्स भी नहीं दे रही हैं। इस पूरे गैर-कानूनी कारोबार से उपजी सारी आमदनी विदेशों में जा रही है और भारतीय सूचना तंत्र ग्लोबल कॉर्पोरेशन की तकनीक का मोहताज बन गया है।
 देश तकनीक की अफीम का शिकार
डिजिटल इंडिया से चुनिंदा
राजनेताओं एवं अर्थव्यवस्था के बड़े खिलाड़ियों को लाभ मिलेगा परंतु पूरा देश तकनीक की अफीम का शिकार ही बनेगा। डाटा संग्रहण, रोजगार सृजन, सूचना तंत्र की सुरक्षा एवं जवाबदेही, राष्ट्रहित का संरक्षण, देश में सर्वर्स की स्थापना एवं टैक्स की वसूली जैसे मूलभूत मुद्‌दों पर बहस एवं निर्णय के बगैर डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के क्रियान्वयन से उपजी सूचना क्रांति की बाढ़ में अगर भारत डूबा तो उसकी न सूचना मिलेगी और न ही निकलने की तकनीक।
 

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