क्या आपको पता है वाल्मीकि आश्रम में माता सीता ने बदल लिया था अपना नाम…

वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड की रामायण अनुसार समाज के द्वारा माता सीता को अपवित्र माने के कारण राम और सीता के आदेश के चलते लक्ष्मण उन्हें वाल्मीकि आश्रम में छोड़कर आ जाते हैं।

वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड की रामायण अनुसार समाज के द्वारा माता सीता को अपवित्र माने के कारण राम और सीता के आदेश के चलते लक्ष्मण उन्हें वाल्मीकि आश्रम में छोड़कर आ जाते हैं। वाल्मीकि आश्रम में सीता वनदेवी के नाम से रहती हैं। उस समय वह गर्भवती रहती हैं। वह वहीं दो जुड़वा लव और कुश को जन्म देती हैं। वाल्मीकि का आश्रम गंगा पार तमसा नदी के तट पर था।

ये भी पढ़ें –कैबिनेट मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कांग्रेस पर साधा निशाना, कहा- कांग्रेस एक…

यह भी कहा जाता है कि सीता जब गर्भवती थीं तब उन्होंने एक दिन राम से एक बार तपोवन घूमने की इच्‍छा व्यक्त की। किंतु राम ने वंश को कलंक से बचाने के लिए लक्ष्मण से कहा कि वे सीता को तपोवन में छोड़ आएं। हालांकि कुछ जगह उल्लेख है कि श्रीराम का सम्मान उनकी प्रजा के बीच बना रहे इसके लिए उन्होंने अयोध्या का महल छोड़ दिया और वन में जाकर वे वाल्मीकि आश्रम में रहने लगीं। वे गर्भवती थीं और इसी अवस्था में उन्होंने अपना घर छोड़ा था। वाल्मीकि आश्रम से सीता ने लव और कुश नामक 2 जुड़वां बच्चों को जन्म दिया।

सीता की मृत्यु- माता सीता अपने पुत्रों के साथ वाल्मीकि आश्रम में ही रहती थीं। एक बार की बात है कि भगवान श्रीराम ने अश्‍वमेध यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ में वाल्मीकिजी ने लव और कुश को रामायण सुनाने के लिए भेजा। राम ने दोनों कुमारों से यह चरित्र सुना। कहते हैं कि प्रतिदिन वे दोनों बीस सर्ग सुनाते थे। उत्तरकांड तक पहुंचने पर राम ने जाना कि वे दोनों राम के ही बालक हैं।

तब राम ने सीता को कहलाया कि यदि वे निष्पाप हैं तो यहां सभा में आकर अपनी पवित्रता प्रकट करें। वाल्मीकि सीता को लेकर सभा में गए। वहां सभा में वशिष्ठ ऋषि भी थे। वशिष्ठजी ने कहा- ‘हे राम, मैं वरुण का 10वां पुत्र हूं। जीवन में मैंने कभी झूठ नहीं बोला। ये दोनों तुम्हारे पुत्र हैं। यदि मैंने झूठ बोला हो तो मेरी तपस्या का फल मुझे न मिले। मैंने दिव्य-दृष्टि से उसकी पवित्रता देख ली है।’

सीता हाथ जोड़कर नीचे मुख करके बोलीं- ‘हे धरती मां, यदि मैं पवित्र हूं तो धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं।’ जब सीता ने यह कहा तब नागों पर रखा एक सिंहासन पृथ्वी फाड़कर बाहर निकला। सिंहासन पर पृथ्वी देवी बैठी थीं। उन्होंने सीता को गोद में बैठा लिया। सीता के बैठते ही वह सिंहासन धरती में धंसने लगा और सीता माता धरती में समा गईं। हालांकि पद्मपुराण में इसका वर्णन अलग मिलता है। पद्मपुराण की कथा में सीता धरती में नहीं समाई थीं बल्कि उन्होंने श्रीराम के साथ रहकर सिंहासन का सुख भोगा था और उन्होंने भी राम के साथ में जल समाधि ले ली थी।

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button