मेरे रोने का जिसमें किस्सा है वो उम्र का बेहतरीन हिस्सा है…तहलका एक्सप्रेस की मुहिम

उड़ने दो परिंदों को शोख हवा में फिर लौटकर ये बचपन के जमाने नहीं आते...मुफलिसी से दो दो हाथ कर

उड़ने दो परिंदों को शोख हवा में फिर लौटकर ये बचपन के जमाने नहीं आते…मुफलिसी से दो दो हाथ कर उससे टकराकार बड़े बड़े को टूटते देखा होगा, लेकिन गरीबी टक्कर लेना और उसपर सबकुछ गंवाना फिर भी हार ना मानना सबके भीतर इसकी कूबत खुदा भी नही बख्श्ता है। बशीर बद्र की ये शायद इस मासूम पर सटीक नही बैठते होंगे, लेकिन फिर भी कड़वी घूंट सी बेराख्ता हो चुकी इस मासूम समेत उसके परिवार की जिंदगी की अदाकारी पर फिट होती महसूस की जा सकती है।

हरदोई जिले के बिलग्राम क्षेत्र के सदरपुर के रहने वाले पिता पुत्र 8 साल से अपनी जिंदगी फुटपाथ पर काटने को मजबूर है। पत्नी के इलाज के में घर द्वार सबकुछ चला गया। बचपन में जिन हाथों में किताबें होनी चाहिए, खिलौने होने चाहिए थे वो हाथ अब पत्थर तोड़ने में व्यस्त हो गए है। गरीबी को मुंह तोड़ जवाब देने और अपनी मां के इलाज के लिए 12 साल का बेटा अपने पिता के साथ मेहनत मजदूरी करने को मजबूर हो गया है। सरकार की तरफ से कई योजनाएं गरीबों और निराश्रितों के लिए संचालित होती है। लेकिन उसका फायदा इनको अबतक नहीं मिला है। हरदोई जिले के जनप्रतिनिधि भी शायद अब उस सड़क से नहीं गुजरे होंगे, जहां पर बचपन अपनी उम्र को बालिश्तों से नापने में व्यस्त है।

तहलका एक्सप्रेस आप सभी पाठकों से ये गुहार लगाता है कि कृपया हरदोई जिले के बिलग्राम क्षेत्र के सदरपुर के रहने वाले पिता पुत्र की मदद करने के लिए आगे आएं।

 

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