Holi: भारत की वो जगह, जहां मौत के डर से लोग नहीं मनाते हैं होली, जानें क्या है मामला…

होली (Holi) का त्योहार रंगों का त्योहार है, जिसे भारत (INDIA) में हर साल फाल्गुन महीने के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रंगों के इस त्योहार की धूम पूरे देश में देखने को मिलती है।

होली (Holi) का त्योहार रंगों का त्योहार है, जिसे भारत (INDIA) में हर साल फाल्गुन महीने के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रंगों के इस त्योहार की धूम पूरे देश में देखने को मिलती है। हो। रंग, गुलाल, प्यार और भक्ति के इस त्योहार को मनाने की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। होली भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है, लेकिन क्या आप जानते हैं भारत में कई गांव ऐसे भी हैं, जहां कई सालों से होली का त्योहार मनाने का कोई रिवाज नहीं है। आज हम आपको भारत के कुछ ऐसे ही गांवों के बारे में बताते हैं।

* उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जनपद में कुरझां और क्विली नाम के दो गांव हैं, जहां करीब 150 सालों से होली (Holi) का त्योहार नहीं मनाया गया है। इस गांव के लोगों की ऐसी मान्यता है कि इलाके की प्रमुख देवी त्रिपुर सुंदरी को शोर-शराबा बिल्कुल पसंद नहीं है, इसलिए इन गांवों में लोग होली का त्योहार नहीं मनाते हैं। बता दें कि उत्तराखंड में रूद्रप्रयाग उस स्थान का नाम है, जहां अलकनंदा और मंदाकिनी नदी का संगम होता है, जहां श्रद्धालु कोटेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन करने जरूर आते हैं। ऐसी मान्यताएं हैं कि भस्मासुर नामक राक्षस की नजरों से बचने के लिए भगवान शिव शंकर ने यहीं एक चमत्कारी गुफा में खुद को छिपा लिया था।

* झारखंड के दुर्गापुर गांव में बोकारो का कसमार ब्लॉक होली का त्योहार नहीं मनाता है। 100 से भी ज्यादा सालों से इस गांव में रहने वाले करीब 1000 लोगों ने होली (Holi) का त्योहार नहीं मनाया है। यहां के लोगों का दावा है कि अगर किसी शख्स ने होली के रंगों को उड़ा दिया तो उसकी मौत निश्चित है। वहीं, गांव वालों का कहना है कि 100 साल पहले यहां एक राजा ने होली खेली थी, जिसके बेटे की मृत्यु होली के दिन हो गई थी। संयोग से राजा की मौत भी होली के दिन ही हुई थी। मरने से पहले राजा ने यहां के लोगों को होली न मनाने का आदेश दे दिया था।

* तमिलनाडु में रहने वाले लोग भी होली (Holi) का त्योहार पारंपरिक रूप से नहीं मनाते हैं, जैसा कि हर साल उत्तर भारत में मनाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि होली पूर्णिमा के दिन पड़ती है और तमिलियन में यह दिन मासी मागम को समर्पित है। इस दिन उनके पितृ पवित्र नदियों और तालाबों में डुबकी लगाने के लिए आकाश से धरती पर उतरते हैं, इसलिए इस दिन होली मनाना वर्जित समझा जाता है।

* गुजरात के बनसकांता जिले में स्थित रामसन नाम के एक गांव में भी पिछले 200 साल से होली (Holi) का त्योहार नहीं मनाया गया है। इस गांव का नाम पहले रामेश्वर हुआ करता था। ऐसी मान्यता है कि भगवान राम अपने जीवनकाल में एक बार यहां आए थे। ऐसा कहा जाता है कि एक अहंकारी राजा के दुराचार के चलते कुछ संतों ने इस गांव को त्योहार पर बेरंग रहने का श्राप दे दिया दिया था। तभी से इस गांव में होली न मनाने की प्रथा बदस्तूर चली आ रही है।

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