लखनऊ: आरटीआई लगाई तो नगर निगम ने पड़ोसियों से कर दी चुगली, मोहल्ले में अब कोई नहीं कर रहा बात

एलडीए ने गोमतीनगर के विशाल खंड में आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए 400 वर्ग फुट के 30 मकान बनाए थे। सभी मकान एक जैसे हैं, लेकिन नगर निगम ने इनका हाउस टैक्स अलग-अलग तय किया है।

आरटीआई लगाने पर लखनऊ नगर निगम ने जवाब देने के बजाय शख्स के पड़ोसियों को पत्र भेजकर इसकी चुगली कर दी। अब हालत यह है कि शख्स का कॉलोनी में सामाजिक बहिष्कार हो गया है।

महेश का कॉलोनी में सामाजिक बहिष्कार हो गया है

बराबर क्षेत्रफल वाले मकानों का हाउस टैक्स अलग-अलग कैसे हो सकता है, इस बारे में नगर निगम से जानकारी मांगना लखनऊ निवासी महेश सिंह के लिए जी का जंजाल बन गया। आरटीआई लगाने पर नगर निगम ने जवाब देने के बजाय महेश के पड़ोसियों को पत्र भेजकर इसकी चुगली कर दी। अब हालत यह है कि महेश का कॉलोनी में सामाजिक बहिष्कार हो गया है।

महेश ने जोन-4 के जोनल दफ्तर में इसकी शिकायत की

पड़ोसियों ने मिलना-जुलना तो दूर, उनसे बात करना भी बंद कर दिया है। आरटीआई सेल से जुड़े कर्मचारियों की इस हरकत से परेशान महेश ने जोन-4 के जोनल दफ्तर में इसकी शिकायत की है। एलडीए ने गोमतीनगर के विशाल खंड में आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए 400 वर्ग फुट के 30 मकान बनाए थे। सभी मकान एक जैसे हैं, लेकिन नगर निगम ने इनका हाउस टैक्स अलग-अलग तय किया है।

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हाउस टैक्स निर्धारण से जुड़े दस्तावेज नगर निगम से मांगे

मकान संख्या 1/349 निवासी महेश ने इसके दस्तावेज जुटाए तो धांधली की आशंका नजर आई। उनके मकान का हाउस टैक्स 6300 रुपये सालाना है, जबकि मकान संख्या 1/277 दोमंजिला है, लेकिन उसका हाउस टैक्स महज 1100 रुपये सालाना है। ऐसे में महेश ने पिछले साल सितंबर में आरटीआई के जरिए मकान संख्या 1/277 से लेकर मकान संख्या 1/353 तक सभी के हाउस टैक्स निर्धारण से जुड़े दस्तावेज नगर निगम से मांगे।

महेश ने बताया कि दिसंबर तक कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने अपील करने की चेतावनी दी। इस पर नगर निगम के जिम्मेदारों ने सभी मकान मालिकों को पत्र भेजकर बता दिया कि महेश आरटीआई के जरिए सूचना मांग रहे हैं, जिसके लिए उनके हाउस टैक्स का ब्योरा जुटाया जा रहा है। नगर निगम का यह पत्र पहुंचते ही पड़ोसियों का रवैया बदल गया।

बता दें कि हाउस टैक्स की सूचना निजी नहीं मानी जा सकती। निजता और व्यक्तिगत जानकारी में अंतर है। हाउस टैक्स कैसे निर्धारित हुआ है और सभी मकानों के हाउस टैक्स का ब्योरा व्यक्तिगत नहीं माना जा सकता। ऐसे में नगर निगम का यह कदम आरटीआई ऐक्ट की मूलभावना के खिलाफ है।

रिपोर्टर-संदीप मिश्रा

 

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