फतेहपुर में शत्रु सम्पत्ति पर हिंदू शरणार्थियों का हक लेकिन अवैध कब्ज़ा मुस्लिम अधिवक्ता का : पत्रकार सरताज

फतेहपुर ज़िला की शत्रु सम्पत्ति पर खागा तहसील के अधिवक्ता अबुलफरह के द्वारा किए गए अवैध कब्ज़े को लेकर खुलासा अंतराष्ट्रीय मीडिया के लिए पत्रकारिता कर रहे मोहम्मद सरताज आलम ने किया है. इस मामले की तह तक जाने के लिए उन्होंने सबसे पहले ज़मीन के दस्तावेज़ की सर्टीफाई कॉपी निकाली उसके बाद फतेहपुर डीएम से मिल कर इस घोटाले से अवगत कराया. जिसके तहत डीएम फतेहपुर ने मामले पर जांच बैठा दी है. जबकि पत्रकार सरताज का दावा है कि इस सम्पत्ति पर अबुलफरह के अवैध कब्ज़े के कारण सरकार को लाखों रुपये के रेवेन्यू का घाटा हो रहा है.

क्या है पूरा मामला?

पूरे मामले को समझने के लिए ‘द यूपी खबर’ ने पत्रकार सरताज से बात की. उन्होंने बताया कि “भारत की आज़ादी पूर्व अबदुल सुभान सारंग नाम के ज़मीनदार ऐरायां ब्लॉक के मंडवा गांव के निवासी थी. उनके चार बेटों में से तीन बेटे आज़ादी पश्चात ही पाकिस्तान चले गए, जिनमें एक का नाम था मोहम्मद फारूक. जब वह पाकिस्तान गए तब उनकी उम्र लगभग 16 वर्ष थी. लेकिन उनके नाम पर बहुत बड़ी सम्पत्ति मंडवा गांव के इर्दगिर्द विभिन्‍न ग्रामसभाओं में मौजूद थी. जबकि ये सम्पति भारत सरकार के अधीन ‘कस्टूडियन ऑफ एनमी प्रॉपर्टी’ के अंतर्गत होनी चाहिए थी. जिसे कस्टूडियन द्वारा आज़ादी पश्चात पाकिस्तान से भारत आए हिंदू भाइयों को दिया जाना था. लेकिन किसी कारणवश ये सम्पत्ति कस्टूडियन को हैंडओवर नहीं हूई.

सरताज के मुताबिक सम्पत्ति कस्टूडियन के हवाले न होने की जानकारी अस्सी के दशक में ऐरायां ब्लॉक क्षेत्र के मोहम्मदपुर गौंती ग्राम सभा निवासी अधिवक्ता अबुलफरह के भाई अबूसूफियान उर्फ सुलतानआलम को हूई. जो मंडवा गांव के आसपास की ग्रामसभा में सिंचाई विभाग में ट्यूबवेल ऑप्रेटर रहे हैं.

दोनो ज़मीन पर कब्ज़ा करने के फिराक में साज़िश:-

दोनो ज़मीन पर कब्ज़ा करने के फिराक में साज़िश करने लगे. इस साज़िश के तहत अस्सी के दशक में सबसे पहले अधिवक्ता अबुलफरह पाकिस्तान गया. जहां उसने जानकारी हासिल की कि मोहम्मद फारूक पाकिस्तान में रहते हैं, जो वापस भारत नहीं आएंगे, इस बात से संतुष्ट होकर अधिवक्ता अबुलफरह वापस भारत आया. भारत आने के बाद अधिवकता अबुलफरह ने अपनी शादी अपने भाई सुलतानआलम की मदद से टाटानगर के नाम से मशहूर जमशेदपुर (पहले बिहार था लेकिन अब झारखंड है) निवासी मुनीर अहमद की बेटी अनवरी बेगम से की.

पत्रकार सरताज ने आगे बताया कि दूसरे राज्य की महिला से अधिवक्ता की शादी के पीछे सुलतानआलम का एक मकसद था. दरअसल दूसरे राज्य (बिहार) की पत्नी लाने से गौंती ग्राम सभा (उत्तरप्रदेश) में कोई शक नहीं करेगा और इसी का लाभ उठाते हुए अधिवक्ता ने आज़ादी पश्चात ही पाकिस्तान जा चुके मोहम्मद फारूक की सम्पत्ति को अपनी बिहार निवासी पत्नी अनवरी बेगम के नाम एक फर्ज़ी वसीयत में मोहम्मद फारुिक की नातिन दिखाते हुए अस्सी के दशक करवा लिया.

क्या है शत्रु सम्पत्ति?

शॉर्ट में समझाएं तो शत्रु संपत्ति का सीधा सा मतलब है शत्रु की संपत्ति. दुश्मन की संपत्ति. फर्क बस इतना है कि वो दुश्मन किसी व्यक्ति का नहीं मुल्क का है. जैसे पाकिस्तान. 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ. जो लोग पाकिस्तान चले गए वो अपना सब कुछ तो उठाकर नहीं ले गए, बहुत कुछ पीछे छूट गया, जैसे घर-मकान, हवेलियां-कोठियां, ज़मीन-जवाहरात, कंपनियां वगैरह-वगैरह. ऐसी सम्पत्ति पर हक पाकिस्तान से भारत आए हिंदू शरणार्थियों है. जिसकी कस्टूडियन
भारत सरकार केअधीन ‘कस्टूडियन ऑफ एनमी प्रॉपर्टी’ है.

मामले का खुलासा कैसे हुआ?

पत्रकार सरताज ने बताया कि दरअसल जब फर्ज़ी वसीयत की जांच की गई तो उसमें पाया गया कि मोहम्मद फारूक की कोई औलाद नहीं है. वह मोहम्मदपुर गौंती नामक गांव में अधिवक्ता अबुलफरह के घर में रहते हैं और उनकी देखभाल अधिवक्ता की पत्नी अनवरी बेगम ने की. इस लिए मृत्यु पश्चात मोहम्मद फारूक की सम्पत्ति की वारिस अधिवक्ता की पत्नी अनवरी बेगम होंगी.

उत्तर प्रदेश से मात्र सुसराल भर का नाता :-

सरताज आगे कहते हैं कि लेकिन उसी वसीयत के लिए दी गई गवाही में लिखा था कि अधिवकता अबुलफरह की पत्नी अनवरी बेगम मोहम्मद फारूक की लड़की की लड़की हैं यानी नातिन. जबकि सच्चाई ये है कि अनवरी बेगम का जन्म, शिक्षा और सरकारी विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी से सेवानिवृत्ति जमशेदपुर झारखंड में हूई है, उनका उत्तर प्रदेश से मात्र सुसराल भर का नाता है जहां वह कभी रही नहीं.

ऐसे में वह पाकिस्तान जा चुके मोहम्मद फारूक की नातेदार किसी भी हालत में नहीं हो सकतीं. पाकिस्तान जा चुके मोहम्मद फारूक की जाति अंसारी थी जबकि अबुलफरह और उसकी जमशेदपुर निवासी पत्नी अनवरी बेगम की जाति शेख है. मंडवा गांव के लोग कहते हैं कि मोहम्मद फारूक जब पाकिस्तान गए तब उनकी शादी भी नहीं हूई थी, ऐसे में अधिवक्ता अबुलफरह की पत्नी अनवरी बेगम उनकी नातिन नहीं हो सकतीं. जब वह झारखंड राज्य के जमशेदपुर स्थित कबीर मेमोरियल स्कूल में अध्यापिका थीं तब वह किस आधार पर मोहम्मद फारूक की तीमारदारी उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिला स्थित मोहम्मदपुर गौंती गांव में रह कर सकती थीं?

 वसीयत में दर्ज दो अलग बात:-

दरअसल वसीयत में दर्ज दो अलग बात ‘अनवरी बेगम मोहम्मद फारूक की नातिन’ व ‘मोहम्मद फारूक की कोई औलाद नहीं थी’ को ध्यान में रख कर पत्रकार मोहम्मद सरताज आलम ने फतेहपुर की डीएम से मुलाकात कर उनको बताया कि वसीयत फर्ज़ी है और जिस मोहम्मद फारूक का ज़िक्र वसीयत में किया जा रहा है, वह मोहम्मद फारूक देश की आज़ादी पश्चात पाकिस्तान चले गए थे. बहरहाल सारी हकीकत बताते हुए उन्होंने सभी दस्तावेज़ डीएम फतेहपुर को सौंपे. जिसपर तुरंत कार्रवाई करते हुए डीएम फतेहपुर ने जांच बैठा दी.

जब पत्रकार मोहम्मद सरताज आलम से पूछा गया अवैध कब्ज़े का खुलासा क्यों :-

जब पत्रकार मोहम्मद सरताज आलम से पूछा गया कि आपने ये शत्रु सम्पत्ति पर अधिवक्ता अबुलफरह द्वारा अवैध कब्ज़े का खुलासा क्यों किया तो उन्होंने कहा कि मैंने वह किया जो सत्तर साल में बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था, इस सम्पत्ति पर जिस हिंदू शरणार्थी भाई का हक है उसे मिलना चाहिए था या फिर सरकार इस सम्पत्ति के लाखों रुपये प्रति वर्ष के रिवेन्यू से क्षेत्र में कई विकास कार्य कर सकती है.

वह आगे कहते हैं कि दरअसल जिस ज़मीन पर अबुलफरह ने कब्ज़ा किया उसमें लगी बाग में 180 चौंसा व दशहरी आम के पेड़ हैं. यदि हर वर्ष एक पेड़ में दस क्विंटल आम होता है तो कुल आम 1800 क्विंटल प्रतिवर्ष वह बेचते हैं. जिसकी इनकम बीस रुपए किलो के रेट से सीधे तौर पर लगभग छत्तीस लाख रुपये सालाना होगी. इस इनकम पर पहले तो पाकिस्तान से भारत आए हुए हिंदू शरणार्थियों का हक है. इस इनकम से उनका भरणपोषण हो सकता है. यदि हिंदू शरणार्थी नहीं हैं तो इस इनकम से मंडवा क्षेत्र के विकास में मदद मिल सकती है. मैं तो सरकार से अनुरोध करता हूं कि अधिवक्ता अबुलफरह, सुलतानआलम एवं उसके अन्य भाइयों के नाम पर जितनी सम्पत्ति है उसकी जांच होनी चाहिए ताकि अवैध सम्पत्ति से पर्दा उठ सके और सम्पत्ति पर जिसका हक है उसे मिल सके.

 

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