NDA के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के खेल में जगन से हारे चंद्रबाबू नायडू

के. नागेश्वर 

चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार के खिलाफ वाईएसआर कांग्रेस की तरफ से प्रायोजित अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन का ऐलान किया है. सार्वजनिक तौर पर इस तरह का रुख पेश करने के बावजूद वह वाई एस जगन को समर्पण की राजनीति करने का भी दोषी ठहरा चुके हैं. हालांकि, नायडू ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव के लिए पहल करने वालों की जो भी नीयत हो, उनकी पार्टी आंध्र प्रदेश के हित में अविश्वास मत का समर्थन करेगी. इन दावों के बावजूद खुद से इस संबंध में पहल करने के बजाय जगन को समर्थन करने का नायडू का फैसला बड़ी रणनीतिक भूल साबित हो सकती है.

वाईएसआरसीपी पार्टी के सांसद वी वी सुब्बा रेड्डी ने गुरुवार को मंत्रिपरिषद में अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के लिए लोकसभा के महासचिव को नोटिस दिया. इसके साथ ही उन्होंने अनुरोध किया कि इसे सदन के अगले दिन के कामकाज की सूची में शामिल किया जाए. हालांकि, सत्ताधारी बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन के लिए इस अविश्वास प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि उसके पास लोकसभा में पर्याप्त बहुमत है. बहरहाल, इसके इर्दगिर्द हो रही राजनीति के मद्देनजर निश्चित तौर पर आंध्र प्रदेश में इसके गंभीर राजनीतिक मायने होंगे.

नायडू ने बस कहा था, जगन ने कर दिया

इससे पहले तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के सुप्रीमो एन चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी जाती हैं, तो उनकी पार्टी आखिरी उपाय के तौर पर अविश्वास प्रस्ताव पेश करेगी. हालांकि, इससे पहले कि तेलुगू देशम पार्टी अपने आखिरी उपाय पर अमल के बारे में सोचती, वाई एस जगनमोहन रेड्डी ने जल्दबाजी दिखाते हुए गुरुवार को प्रस्ताव के लिए नोटिस दे दिया, जिससे टीडीपी किनारे पर खिसक गई. इससे पहले जगनमोहन रेड्डी ने कहा था कि उनकी पार्टी संसद के मौजूदा बजट सत्र के आखिरी हफ्ते में अविश्वास प्रस्ताव पेश करेगी. लेकिन जगनमोहन ने खुद द्वारा तय समय से पहले ही इस पर आगे कदम बढ़ा दिया.

इससे पहले चंद्रबाबू नायडू ने जगनमोहन रेड्डी को पछाड़ने के लिए मोदी की अगुवाई वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल से अपने मंत्रियों को हटा दिया था. हालांकि, मौजूद राजनीतिक लड़ाई के निर्णायक दौर में राजनीतिक पहल के मामले में जगन अपने प्रतिद्वंद्वी और मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से आगे निकल गए. नायडू जैसे दिग्गज नेता को विपक्ष के इस कदम का पूर्वानुमान होना चाहिए था. सरकार में होने के कारण टीडीपी के पास वाईएसआर कांग्रेस के संभावित कदमों के बारे में खुफिया जानकारी भी होगी. इसके बावजूद पार्टी जगन द्वारा अपने इस फैसले पर आगे बढ़ने से पहले अविश्वास प्रस्ताव पर आगे बढ़ने में नाकाम रही. हालांकि, नायडू का कहना था कि इस तरह का कदम उनकी पार्टी का आखिरी उपाय होगा.

मजबूरी में किया समर्थन

यहां तक कि टीडीपी द्वारा औपचारिक तौर पर एनडीए छोड़ने से पहले अविश्वास प्रस्ताव का मुद्दा सामने आया था. इसके मद्देनजर टीडीपी को इसके पक्ष में समर्थन का ऐलान करने को मजबूर होना पड़ा. दरअसल, वाई एस जगनमोहन रेड्डी ने पहले कहा था कि उनकी पार्टी अविश्वास प्रस्ताव के लिए नोटिस देगी या टीडीपी अगर ऐसा करती है, तो उसका समर्थन करेगी.

टीडीपी के एक सीनियर नेता ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि पार्टी के लिए वाईएसआर कांग्रेस द्वारा प्रायोजित अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करना जरूरी हो गया था, क्योंकि विपक्ष पार्टी को बेनकाब करने की कोशिश कर रहा था. हालांकि, वह इस बात साफ तौर पर जवाब नहीं दे पाए कि नायडू अविश्वास प्रस्ताव पर पहले आगे बढ़ने में क्यों नाकाम रहे?

वाईएसआरसीपी के प्रमुख वाई एस जगनमोहन रेड्डी ने बताया, ‘अगर इस अविश्वास प्रस्ताव के बाद भी केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने को तैयार नहीं होती है, तो हमारी पार्टी के सभी सांसद 6 अप्रैल को इस्तीफा दे देंगे. कुछ नहीं हो रहा है. केंद्र सरकार कई बार साफ कर चुकी है कि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के मद्देनजर स्पेशल कैटेगरी का मामला नहीं बनता है. लिहाजा, वाईएसआर कांग्रेस के सांसद संसद से इस्तीफा देंगे.’ क्या टीडीपी के सांसदों को इसका अनुसरण करना चाहिए? अगर वे ऐसा करते हैं, तो वे वाई एस जगन को एक और फायदा देंगे. अगर वे इस्तीफा नहीं देते हैं, तो वाईएसआर कांग्रेस इस मामले को सत्ता से चिपके रहने के लिए लोगों से विश्वासघात करने के तौर पर पेश करेगी. लिहाजा, अविश्वास मत के सवाल पर रजामंदी दिखाकर टीडीपी ने सासंदों के इस्तीफे के मुद्दे पर एक और मौका गंवाया है.

Jagan Mohan Reddy

दरअसल, केंद्रीय मंत्रिमंडल से अपने मंत्रियों को हटाने और संसद में पार्टी सांसदों द्वारा लगातार विरोध-प्रदर्शन के जरिये टीडीपी का पलड़ा भारी हो गया था. हालांकि, पार्टी एनडीए छोड़ने और आखिरी उपाय के तौर पर अविश्वास प्रस्ताव पेश करने को लेकर अनिर्णय की हालत में रही.

अचानक से कमजोर पड़ गए हैं नायडू

ऐसा पहली बार नहीं हुआ, जब इस तरह का अनुभवी नेता राजनीति के खेल में हारा हो. उन्होंने (चंद्रबाबू नायडू) विशेष राज्य के दर्जे की मांग को छोड़कर इसके बदले विशेष पैकेज को लेकर सहमति जताई थी. हालांकि, पैकेज को कानूनी समर्थन मिलने संबंधी वादा करने के बाद पार्टी इस स्पेशल पैकेज को वैधानिक मान्यता देने की खातिर मोदी सरकार को राजी करने में बुरी तरह नाकाम रही. चंद्रबाबू नायडू ने पहले कहा कि विशेष राज्य का दर्जा समाधान नहीं है. हालांकि, इस मांग को लेकर वाईएसआर कांग्रेस के अडिग रहने और अविश्वास प्रस्ताव व अपने सांसदों के इस्तीफे जैसे ऐलान के बाद नायडू के पास विशेष राज्य के दर्जे की मांग के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचा. ऐसे में उनकी विश्वसनीयता ही कम हुई.

2014 में हुए राज्य के बंटवारे की तरह विशेष राज्य के दर्जे का मामला भी तेजी से भावनात्मक मुद्दा बन रहा है और इसके गंभीर राजनीतिक मायने हो सकते हैं. इस अभियान को असरदार ढंग से चलाने में चंद्रबाबू नायडू की नाकामी ने निश्चित तौर पर टीडीपी के समर्थकों को निराश किया है.

दरअसल, तेलुगू देशम पार्टी जगन के खिलाफ दर्ज मुकदमों का हवाला देते हुए उन पर बीजेपी के साथ पींगे बढ़ाने का आरोप लगाता रही है. हालांकि, अब जगन मोदी सरकार के विरोध की अगुवाई कर रहे हैं और नायडू इसका समर्थन कर रहे हैं. ऐसे में इस विपक्षी नेता को लेकर टीडीपी की आलोचना बेअसर हो रही है.

(लेखक तेलंगाना के पूर्व एमएलसी, द हंस इंडिया के पूर्व संपादक और ओसमानिया यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर हैं)

 

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