RSS की मदद से क्या बीजेपी की राह होगी आसान?
लखनऊ। 2014 में अकेले अपने दम पर सत्ता हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए 2019 का किला फतह करना बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. गुजरात चुनाव के बाद विपक्ष भी लामबंद होकर सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश में जुटा हुआ है. इस बीच पीएनबी घोटाला और सामाजिक सद्भाव जैसे मुद्दों को लेकर विपक्ष एक बार फिर सरकार पर हमलावर है. लेकिन बीजेपी के लिए राहत की बात संघ की सक्रियता है.
जनवरी, फरवरी में ही संघ प्रमुख ने हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और बिहार में कार्यक्रम किए हैं. संघ की इस कसरत से बीजेपी की सेहत सुधरने की उम्मीद लगाई जा रही है. यूपी में दलितों, पिछड़ों को जोड़ने पर फोकस रहा है तो बिहार में किसानों को लुभाने की कोशिश की गई है. किसान और दलित-पिछड़े बड़ा चुनावी मुद्दा हैं. हर पार्टी इन्हें लुभाने की कोशिश में जुटी हुई है. इनके सबसे ज्यादा वोट हैं. तो क्या यह माना जाए कि आरएसएस अपनी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए बीजेपी के लिए 2019 की चुनावी जमीन तैयार कर रही है?
सियासी जानकारों का कहना है कि संघ इन कार्यक्रमों के बहाने न सिर्फ स्वयंसेवकों में जोश भरने का काम कर रहा है बल्कि जनता की नब्ज भी टटोल रहा है. लोकसभा चुनाव से पहले जनता का मूड भांपा जा रहा है. लोगों की समस्याएं और उनकी उम्मीदें पता की जा रही हैं. सूत्रों का कहना है कि भागवत के होमवर्क के बाद अमित शाह चुनावी रणनीति तैयार करेंगे. जल्द ही उनका यूपी दौरा होने की संभावना है.
वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने कहते हैं-
‘संघ के कार्यक्रम बीजेपी को ध्यान में रखकर नहीं होते. मेरठ में हुआ राष्ट्रोदय समागम दो वर्ष पहले तय हुआ था. संघ चुनाव को देखकर कोई कार्यक्रम नहीं करता. हां, बीजेपी में संघ के स्वयंसेवक हैं इसलिए इसका फायदा उसे जरूर मिलता होगा. संघ प्रमुख के प्रवास तो अमूमन साल भर पहले ही तय हो जाते हैं. जनसंघ या बीजेपी में संघ के स्वयंसेवक ज्यादा थे, क्योंकि दोनों के विचार राष्ट्रवादी हैं. दूसरी पार्टियों में भी स्वयंसेवक जाते हैं लेकिन वे ज्यादा देर नहीं रह पाते हैं. क्योंकि विचारधारा मेल नहीं खाती. बनारस, आगरा और मेरठ में हुए आरएसएस के कार्यक्रमों से एक वातावरण बना है और इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा क्योंकि दोनों की विचारधारा मिलती है. लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि संघ बीजेपी के फायदे के मकसद से कार्यक्रम करता है.’
जहां-जहां पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के कार्यक्रम हुए हैं वह जगह सियासी रूप से बड़ा संदेश देती है. यूपी में उन्होंने अपने दौरे की शुरूआत पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से की. यहां संघ समागम में उन्होंने महात्मा बुद्ध का भी जिक्र किया, जिन्हें इन दिनों दलित अपना आराध्य मानते हैं. भागवत ने कहा ‘दुनिया में भारत की श्रेष्ठता के लिए राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर एवं विवेकानंद जैसे महापुरुषों का योगदान रहा है. भारत में जितने महापुरुष हुए उतने पूरी दुनिया में भी नहीं हुए.’
बनारस, आगरा और मेरठ के मायने
वाराणसी के आसपास के जिले काशी क्षेत्र में आते हैं. संघ प्रमुख ने यहां पांच दिन तक स्वयंसेवकों की क्लास ली. आपको बता दें कि यहां का कार्यक्रम पूर्वांचल में प्रभाव डालता है. यह गोरक्ष और अवध प्रान्त से जुड़ा क्षेत्र है. गोरखपुर और उसके आसपास का इलाक़ा गोरक्ष जबकि लखनऊ से सटे जिले अवध क्षेत्र में आते हैं.
इसके बाद आगरा में समरसता संगम किया गया. दलित बहुल क्षेत्र के कारण यहीं से बीएसपी प्रमुख मायावती चुनावी शंखनाद करती रही हैं. आगरा में करीब 22 फीसदी जबकि उससे सटे अलीगढ़ में 21 और फिरोजाबाद में 19 फीसदी दलित बताए गए हैं. आगरा के कार्यक्रम में रविदास, कबीरदास और गौतम बुद्ध के फोटो लगाए गए. इस कोशिश को दलितों और पिछड़ों को जोड़ने के मकसद से के रूप में देखा जा रहा है.
संघ ने राष्ट्रोदय समागम के रूप में अगला कार्यक्रम मेरठ में रखा तो इसके पीछे भी कुछ सियासी वजहें निकाली जा रही हैं. यहां तीन लाख से अधिक स्वयंसेवकों के साथ संघ का शक्ति प्रदर्शन हुआ. दरअसल, मेरठ के कार्यक्रम पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश को प्रभावित करते हैं. यहां विधानसभा की 96 और लोकसभा की 19 सीट है. इनमें सबसे अधिक सीट बीजेपी के पास है. 2019 में भी इस क्षेत्र पर भगवा परचम लहराए इसकी कोशिश जारी है.
राष्ट्रोदय में संघ ने छुआछूत मिटाने पर जोर दिया. जातीय भेद मिटाने का आह्रवान किया. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़ते जातीय संघर्ष को लेकर यह कवायद महत्वपूर्ण है. सहारनपुर में दलितों और सवर्णों के बीच हुए संघर्ष को याद करिए. इससे बीजेपी को नुकसान होने की उम्मीद जताई जा रही है. इस घटना के बाद भीम आर्मी चर्चा में आई. इसके बहाने चंद्रशेखर और जिग्नेश मेवाणी इस क्षेत्र को राजनीति के नीले रंग में रंगने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि आरएसएस में मेरठ प्रांत के प्रचार प्रमुख अजय मित्तल दावा करते हैं कि राष्ट्रोदय में करीब 25 हजार दलित भी आए थे. जिसमें सहारनपुर वाले भी शामिल थे.
यहां संघ प्रमुख भागवत ने मंच से कोई राजनीतिक बात नहीं की और न तो किसी सियासी दल का नाम ही नहीं लिया. लेकिन उन्हें कट्टर हिंदुत्व का पाठ पढ़ाया, जिसे इस क्षेत्र में बढ़ रहे धार्मिक संघर्ष को देखते हुए हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कराने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
बिहार, मध्य प्रदेश और संघ की कसरत
यूपी की तरह मध्य प्रदेश में भी बीजेपी का बड़ा आधार है. इस साल की शुरुआत में पांच जनवरी को संघ प्रमुख मोहन भागवत उज्जैन में थे. यहां के माधव सेवा न्यास भवन में भागवत, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बीच 45 मिनट तक बातचीत हुई थी. इस बैठक को संगठन में बदलाव और चुनावी तैयारियों से जोड़कर देखा गया. यहीं पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के बीच समन्वय बैठक भी हुई.
इससे पहले वो विदिशा गए जो शिवराज सिंह चौहान का क्षेत्र माना जाता है. यहां मुख्यमंत्री चौहान ने उनसे करीब 40 मिनट तक मुलाकात की. माना जा रहा है कि शिवराज ने भागवत को प्रदेश के राजनीतिक हालात के बारे में जानकारी दी.
फरवरी की शुरुआत में वे 10 दिन के बिहार दौरे पर गए. जहां बीजेपी जेडीयू के समर्थन से सत्ता में है. उन्होंने पटना से ज्यादा ध्यान मुजफ्फरपुर पर दिया. यहां उन्होंने किसानों और गोपालकों पर फोकस किया. उत्तर, दक्षिण बिहार और झारखंड के किसानों को खेती-किसानी और गोपालन का मंत्र दिया. मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया हुआ है.
‘हम भी राष्ट्र की बात करते हैं और बीजेपी भी’
आरएसएस में मेरठ प्रांत के प्रचार प्रमुख अजय मित्तल कहते हैं ‘हमारे कार्यक्रमों से किसी राजनीतिक दल का कोई लेना देना नहीं है. राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पार्टी को छोड़कर स्वयंसेवक किसी भी दल में शामिल हो सकता है. यह अलग बात है कि जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस में यह प्रतिबंध लगा दिया था कि कांग्रेस का कोई भी सदस्य संघ में शामिल नहीं हो सकता. हां, यह जरूर कहा जा सकता है कि हम भी राष्ट्र की बात करते हैं और बीजेपी भी.’
हालांकि, लंबे समय से बीजेपी कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार सुभाष निगम कहते हैं ‘आरएसएस के कार्यक्रमों में बीजेपी का नाम नहीं लिया जाता लेकिन यह भी उतना ही सच है कि ज्यादातर स्वयंसेवक बीजेपी से जुड़े हुए हैं. इसके कार्यक्रमों में बीजेपी के बड़े पदाधिकारियों और मंत्रियों को देखा जा सकता है. अगले साल आम चुनाव है इसलिए आरएसएस बीजेपी के लिए जमीन तैयार कर रहा है. बीजेपी को जमीनी सपोर्ट तो आरएसएस से ही मिलता है. संघ के कार्यक्रमों के माध्यम बीजेपी कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी दूर हो जाती है.’
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