सरकार को घुटनों पर लाने वाला शख्स जिसे ‘मूंछों’ ने मार दिया

चंदन के जंगलों को अपनी मूंछों में बांधकर रखने वाला एक ऐसा शख्स जिसको पकड़ने के लिए सरकार ने करीब 20 करोड़ रुपये खर्च कर दिए और उसने सैकड़ों पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया

चंदन के जंगलों को अपनी मूंछों में बांधकर रखने वाला एक ऐसा शख्स जिसको पकड़ने के लिए सरकार ने करीब 20 करोड़ रुपये खर्च कर दिए और उसने सैकड़ों पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया…ये शख्स कोई और नहीं बल्कि कूजमुनि स्वामी वीरप्पन था…कूज मुनिस्वामी वीरप्पन का जन्म 18 जनवरी 1952 को हुआ था..

चंदन के जंगलों पर एकछत्र राज

जब वह महज 18 साल का था तभी हाथियों और दूसरे जंगली जानवरों का शिकार करने वाले गिरोह में शामिल हो गया…देखते ही देखते उसने पहले गिरोह पर कब्जा किया और फिर चंदन के जंगलों पर एकछत्र राज करने लगा.. ऐसा कहा जाता है कि, उसने 2000 से अधिक हाथियों का शिकार किया और 90 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की हत्या…वीरप्पन को सिर पर सरकार ने पांच करोड़ का इनाम रखा था….साल 2000 में तमिलनाडु सरकार को वीरप्पन ने घुटनों पर ला दिया था…

मशहूर अभिनेता का अपहरण

दरअसल, उसने तमिल फिल्म के मशहूर अभिनेता का अपहरण कर लिया…एसी कमरों में रहने वाले अभिनेता राजकुमार 109 दिनों तक गर्मी सर्दी और बरसात के बीच वीरप्पन की कैद में रहे…तमिलनाडु सरकार जानती थी कि, वीरप्पन कितना खूंखार है और जरा सी चूक अभिनेता की जिंदगी को खत्म कर सकती थी… लेकिन एक कहावत है कि, जब गीदड़ की मौत आती है तो शहर की तरफ भागता है…ठीक उसी तरह से वीरप्पन को उसकी मौत शहर की तरफ खींचने लगी…

वीरप्पन के अंत की पटकथा

वीरप्पन को अपनी मूंछों से बहुत प्यार था और उसमें खिजाब लगाता था… एक दिन जब वो अपनी मूंछों में खिजाब लगा रहा था तो उसकी छींटे आंख में पड़ गई और यहीं से वीरप्पन के अंत की पटकथा लिखी जाने लगी…वीरप्पन का ऐसा आतंक था कि, जंगलों के आसपास के गांव में रहने वाले लोग सब जानते हुए भी कुछ नहीं जानते थे ऐसा दिखावा पुलिस के सामने करते थे…लेकिन पुलिस भी कहां शांत बैठने वाली थी…क्योंकि उसने भी अपने साथियों को खोने का दर्द झेला था…वीरप्पन को मारने के लिए तमिलनाडु की तत्कालीन जयललिता सरकार ने एसटीएफ का गठन किया और उसकी कमान आईपीएस के. विजय कुमार को सौंपी गई…

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साल 2004 का 18 अक्टूबर

विजय कुमार ने वीरप्पन को खत्म करने के लिए जंगलों की खाक छाननी शुरू कर दी…फिर एक दिन एसटीएफ चीफ को पता चलता है कि, वीरप्पन अपनी आंख का इलाज कराने के लिए शहर जाने वाला है…क्योंकि उसकी आंख में खिजाब की जो बूंदें गिरी थी वो बीमारी में बदल चुकी थी…वीरप्पन का शहर जाने का प्लान एसटीएफ को पूरी तरह से पता चल गया और आईपीएस के. विजय कुमार ने वीरप्पन को ढेर करने का पूरा बंदोबस्त कर दिया…साल 2004 का 18 अक्टूबर का दिन था जब वीरप्पन अपने साथियों के साथ एक एंबुलेंस में बैठकर इलाज के लिए शहर जा रहा था…तभी एसटीएफ ने दस्यु सरगना और चंदन के कुख्यात तस्कर वीरप्पन को पहले से घात लगाकर बैठे पुलिसकर्मियों ने मौत के घाट उतार दिया…जिसके बाद जयललिता सरकार ने एनकाउंटर में शामिल सभी पुलिसकर्मियों को सम्मनित किया और आईपीएस के. विजय कुमार को नई पहचान इसी एनकाउंटर के बाद से मिली…

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