US-PAK में दरार को भुनाकर चाबहार के नजदीक सैन्य ठिकाने बनाने की फिराक में ड्रैगन

बीजिंग/नई दिल्ली। अमेरिका और पाकिस्तान के रिश्तों में आई दरार से चीन को मौक मिल गया है और वह इसको भुनाने की फिराक में है. अमेरिका द्वारा 1.15 अरब डॉलर की सुरक्षा मदद और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति रोकने जाने से पाकिस्तान तिलमिलाया हुआ है. उसको अब कुछ समझ में नहीं आ रहा है और वह अमेरिका की इस कार्रवाई का आरोप भारत पर मढ़ रहा है.

गुरुवार को पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत की भाषा बोल रहे हैं. वहीं, ट्रंप की लताड़ के बाद पाकिस्तान के पक्ष में बयान जारी कर चीन ने हमदर्दी दिखाई थी. उसकी इस हमदर्दी के पीछे अपना खुद का बड़ा स्वार्थ छिपा है.

पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में निवेश करने के बाद अब चीन की निगाह जिवानी द्वीप पर है. वह यहां अपना सैन्य ठिकाना बनाने की फिराक में है. सामरिक नजरिए से बेहद अहम जिवानी द्वीप पाकिस्तान के ग्वादर जिले में आता है.

चाबहार बंदरगाह के करीब है जिवानी द्वीप

जिवानी द्वीप ईरान सीमा से सटा हुआ है. इससे अहम बात यह है कि यह भारत द्वारा विकसित चाबहार बंदरगाह से बेहद करीब है. ऐसे में चीन की इस चाल से भारत की भी चिंता बढ़ सकती है. अगर चीन जिवानी द्वीप में अपना सैन्य ठिकाना बनाने में कामयाब होता है, तो पाकिस्तान में यह उसका दूसरा सैन्य ठिकाना होगा. भारत के चाबहार बंदरगाह के जवाब में चीन जिवानी द्वीप में सैन्य ठिकाना बनाना चाहता है.

चीन के और करीब आएगा पाकिस्तान

चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने दावा किया है कि अमेरिका ने भारत के साथ संबंध मजबूत करने के इरादे से पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई की है. इससे पाकिस्तान और चीन के बीच सैन्य व कारोबारी संबंध मजबूत होंगे. चीनी अखबार ने कहा कि पाकिस्तान और चीन के बीच पहले से ही अच्छे रिश्ते हैं, लेकिन ट्रंप प्रशासन द्वारा मदद रोकने से दोनों देशों के बीच संबंध और प्रगाढ़ होंगे. इससे दोनों देशों के बीच सैन्य नजदीकियां भी बढ़ेंगी.

PAK को चीन वो नहीं दे सकता, जो हम देते हैं: US

वहीं, चीन और पाकिस्तान के करीब आने की अटकलों के बीच अमेरिकी विदेश विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ”मेरा मानना है कि वे (पाकिस्तान) दोनों देशों के साथ मजबूत संबंध बनाना चाहते हैं, लेकिन यह जरुरी नहीं कि जो अमेरिका से मिलेगा, वहीं उन्हें चीन से मिलेगा. इस बात से पाकिस्तान भी भलीभांति वाकिफ है.”

उन्होंने कहा, ”हमारे पास यह क्षमता नहीं है कि हम बैंकों और कंपनियों को पाकिस्तान में 55 अरब डॉलर निवेश करने के निर्देश दें, लेकिन साथ ही चीन के पास भी यह क्षमता नहीं है कि वह दुनिया को सर्वोच्च गुणवत्ता के सैन्य उपकरण मुहैया कराए.”

अमेरिकी अखबार पहले ही कर चुका है चीन के मंसूबे का खुलासा

हाल ही में अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन टाइम्स ने दावा किया था कि ग्वादर बंदरगाह के पास चीन अपना सैन्य ठिकाना बनाना चाहता है और इसके लिए पाकिस्तान से बातचीत भी कर रहा है. हालांकि बाद में चीन ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.

आतंकवाद को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ने लगाई थी लताड़

नववर्ष पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान को जमकर लताड़ लगाई थी. उन्होंने ट्वीट किया था, ”पिछले 15 वर्षों में अमेरिका ने मूर्खतापूर्वक पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर से ज्यादा की आर्थिक मदद दी, लेकिन पाकिस्तान ने इसके जवाब में झूठ और धोखा के सिवाय कुछ नहीं दिया. वह हमारे नेताओं को मूर्ख समझता है. उसने उन आतंकियों को सुरक्षित पनाह दिया, जिनके खिलाफ अफगानिस्तान में हम अभियान चला रहे हैं. अब ऐसा नहीं होगा.”

The United States has foolishly given Pakistan more than 33 billion dollars in aid over the last 15 years, and they have given us nothing but lies & deceit, thinking of our leaders as fools. They give safe haven to the terrorists we hunt in Afghanistan, with little help. No more!

ट्रंप की इस लताड़ के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान को सुरक्षा सहायता के तौर पर 1.15 अरब डॉलर से अधिक धन और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति पर रोक भी लगा दी. अमेरिका का कहना है कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी संगठनों पर कार्रवाई करने में पाकिस्तान विफल रहा. वह अपनी सरजमीं से आतंकियों के पनाहगाह को भी नेस्तनाबूद करने में नाकाम रहा.
 

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