यूपी के 8362 अनुदानित कालेजों में जान हथेली पर रख पढ़ते हैं छात्र
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राजेश श्रीवास्तव
शिक्षा विभाग के अधिकारी लाख दावें करें, मगर हकीकत यह है कि स्कूलों में पढ़ने वाले मासूम बच्चे अपनी जान जोखिम में डाल कर उत्तर प्रदेश के लगभग 8362 अनुदानित कालेजों के बच्चे जर्जर भवनों में पढ़ने को मजबूर हैं। इन स्कूलों की झुकी छतों से टपकता है पानी, शौचालयों में कहीं दरवाजा है तो मगर दिखता है आर-पार। पर कहीं तो है ही नहीं।
स्कूलों में न तो छत सही है और न ही शौचालय। दोनों की स्थिति देखकर यह यकीन नहीं होता कि यहां बच्चे भविष्य की पढ़ाई भी करते होंगे। अगर आप दौरा करें तो कमरों की टूटी छतें, शौचालयों के गायब दरवाजे और स्कूलों पर लटके ताले नजर आएंगे। यह सिर्फ एक स्कूल की हालत नहीं है बल्कि ज्यादातर स्कूलों की यही परिस्थिति है। हैरानी की बात यह है कि कई प्राइमरी व माध्यमिक स्कूलों के जर्जर भवनों मेंं जान हथेली पर लेकर पढ़ाई करने बच्चे आ रहे हैं। न तो टीचर समय पर पहुंचते हैं और न ही कोई अधिकारी इनकी जांच करने जाता है।
बारिश के चलते यह स्कूल जान जोखिम में डालने वाले हैं, मगर आलम ये है कि कहीं तीन-तीन स्कूल एक ही भवन में चल रहे हैं तो कहीं पर स्कूलों के भवन इतने जर्जर है कि कभी यह धराशाही हो जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता। छात्र-छात्राओं को मूलभूत सुविधाएं भी मयस्सर होना मुश्किल है। दरअसल इन कालेजों की स्थिति सरकार की एक लोक कल्याणकारी नीति का खामियाजा है। सरकार ने यह नीति बनायी तो थी बच्चों के हित के लिए लेकिन यही नीति बच्चों के लिए जानलेवा बन गयी। अगर दस फीसद कालेजों को छोड़ दें तो लगभग सभी कालेजों के भवन बेहद जर्जर हैं।
वर्ष 2०1० में तत्कालीन केंद्र सरकार ने कक्षा आठ तक के सभी बच्चों की फीस निशुल्क कर दिया। जिससे बच्चों की फीस आनी बंद हो गयी और प्रबंधन की आय का जरिया भी बंद हो गया। सरकार ने बच्चों की पढ़ाई तो निशुल्क की लेकिन यह भूल गयी कि इस फीस से जो बिल्डिंग का प्रबंधन, देखरेख, पुताई, बिजली का बिल आदि का खर्च वहन किया जाता है वह कहां से आयेगा। सरकार ने योजना का दूसरा पहलू देखना उचित ही नहीं समझा। फीस आना बंद होते ही इन कालेजों के प्रबंधक मजबूर हैं।
राजधानी के एक नामी-गिरामी इंटर कालेज के प्रबंधक कहते हैं कि हमने तो शहर के बीचो-बीच इतनी बड़ी इमारत सरकार को दे रखी है लेकिन जब आय नहीं है तो कहां से बिल्डिंग की देखरेख करायें। बिल्डिंग जर्जर है। पिछले दस दिनों से हो रही बारिश के चलते रोज मन सशंकित रहता है कि कहीं कोई हादसा हो गया तो क्या होगा। भगवान भरोसे स्कूल चल रहा है। हमारे पास इतना पैसा नहीं कि स्कूल भवन ठीक करा सकें। वह कहते हैं कि सरकार ने बच्चों के हित के लिए योजना बनायी लेकिन यह तो देखना चाहिए था कि जब भवन ही नहीं रहेगा तो स्कूल में बच्चे पढ़ेंगे कैसे।
यही नहीं, सरकार की इस योजना का हश्र यह हुआ कि अब इन जर्जर भवनों के चलते बच्चों और उनके अभिभावकों का इन स्कूलों से मन हट चुका है। अब अभिभावक इन स्कूलों में अपने बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहते। हमने इन स्कूलों के बच्चों की गिरती संख्या को भी देखा तो पता चला कि 2०1० से पहले तक जहां हर साल इन बच्चों की संख्या बढ़ रही थी वहीं 2०1० के बाद से लगातार लगभग हर कालेज में बच्चों की संख्या गिरती ही जा रही है। यानि सरकार लाख दावे करे कि वह सरकारी स्कूलों की स्थिति अच्छी कर रही है लेकिन इन जर्जर भवनों को देख कर बड़े-बड़ों की रूह कांप जाती है तो बच्चे कैसे पढ़ेंगे और उनके अभिभावक कैसे भ्ोजेंगे।
सरकार बच्चों के लिए योजनाएं तो बना रही है लेकिन इन स्कूलों के भवन ऐसे नहंी हैं जो पांच-दस साल और चल सकें। अगर ऐसा हुआ तो उत्तर प्रदेश के हजारों स्कूल अगले पांच वर्षों के बाद चलते हुए मिलेंगे, यह बहुत बड़ी चुनौती साबित होने वाली है। खुद कई प्रबंधक स्कूल बंद करने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो यूपी की बेहतर शिक्षा व्यवस्था का दावा करने वाली सरकार के सामने स्कूलों को संजो पाना भी बड़ी चुनौती होगी।
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