अन्ना हजारे के आगे सरकार झुकी या फिर सरकार के आगे अन्ना?
समाजसेवी अन्ना हजारे ने सात दिनों से जारी अपना अनिश्चितकालीन अनशन खत्म कर दिया है. अन्ना के अनशन खत्म होते ही केंद्र सरकार ने राहत की सांस ली है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत सहित कई लोगों की उपस्थिति में अन्ना ने अपना भूख हड़ताल खत्म किया. महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने अन्ना हजारे को जूस पिला कर अनशन खत्म करवाया. इस अवसर पर अन्ना हजारे ने कहा, ‘केंद्र सरकार ने हमारी सारी मांगें मान ली हैं. सरकार ने हमसे तीन महीने के वक्त मांगा है, जिसे हमने दिया है.’
आपको बता दें कि पिछले 23 मार्च से अन्ना हजारे ने दिल्ली के रामलीला मैदान को अपना कुरुक्षेत्र बना रखा था. उन्होंने सरकार से किसानों का न्यूनतम समर्थन मूल्य, सशक्त लोकपाल और चुनाव आयोग में कुछ संशोधन के साथ पारदार्शिता लाने की बात को लेकर अनशन शुरू किया था.
लेकिन, अन्ना आंदोलन पार्ट-2 नाम से शुरू हुआ यह आंदोलन लोगों की कमी का भेंट चढ़ गया. इस आंदोलन को साल 2011 आंदोलन जितना समर्थन नहीं मिल पाया. मुख्यतौर पर किसानों के मुद्दे को लेकर शुरू हुआ था, लेकिन उनकी कई ऐसी मांगें थी, जो किसानों के मुद्दे से हटकर थीं.
रामलीला मैदान से अन्ना ने अपने पहले ही संबोधन में कहा था, ‘इस देश से अंग्रेज चले गए पर लोकतंत्र नहीं मिला है. गोरे गए अब काले आ गए. किसानों के प्रश्न पर आंदोलन करेंगे या फिर मरेंगे. 80 साल की उम्र में किसानों के लिए जान दूंगा तो कोई गम नहीं होगा.’
पहले दिन से ही उनकी बातों में वही पुराना अंदाज और उतनी ही साफगोई झलक रहा था. ऐसे में कयास लगाए जा रहे थे कि अन्ना का अनशन शुरू होते ही रामलीला मैदान एक बार फिर से देश की राजनीति के मुख्य पटल पर आ जाएगा. लेकिन ये नहीं हो सका. इस बार उनको उतना समर्थन नहीं मिल पाया. इसके बावजूद इसे विचार की लड़ाई कह कर आंदोलन को अागे बढ़ाते रहे.
अनशन के चौथे दिन से ही केंद्र सरकार थी एक्शन में
अनशन के चौथे दिन ही केंद्र सरकार एक्शन में आ गई थी. सरकार ने महाराष्ट्र के एक कैबिनेट मंत्री गिरीश महाजन को अन्ना हजारे के पास अपना दूत बना कर भेजा था. महाराष्ट्र सरकार के जल संसाधन मंत्री पिछले सोमवार से ही दिल्ली में डेरा डाले हुए थे. वह लगातार अन्ना से आकर मिल रहे थे.
गिरीश महाजन ने फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए पिछले सोमवार को भी कहा था कि केंद्र सरकार लगातार इस मामले में नजर बनाए हुए है और जल्द ही यह आंदोलन खत्म हो जाएगा. 2011 के आंदोलन में भी केंद्र सरकार की तरफ से कांग्रेस नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत विलासराव देशमुख ने मध्यस्थता की शुरुआत की थी.
गिरीश महाजन और अन्ना हजारे की पिछली सोमवार को हुई मुलाकात से यह कयास लगाए जा रहे थे कि केंद्र सरकार अन्ना के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर है और मामला जल्दी खत्म करना चाह रही है. गिरिश महाजन और अन्ना की मुलाकात से यह तय हो गया था कि सरकार पिछले दरवाजे से नहीं बल्कि अन्ना से सीधे बातचीत कर रही थी.
दूसरी तरफ इस आंदोलन के रणनीतिकारों को यह चिंता सता रही थी कि उम्मीद के मुताबिक भीड़ रामलीला मैदान नहीं जुट रही है. अनशन के पहले दिन का भीड़ जरूर थोड़ा बहुत उत्साहवर्धक रहा था, लेकिन उसके बाद भीड़ लगातार घटती ही जा रही थी.
इस बार के आंदोलन में जो लोग महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे थे उनमें राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के शिव कुमार ‘कक्काजी’, महाराष्ट्र से शिवाजी खेड़कर, कल्पना इनामदार, दिल्ली से कर्नल दिनेश और मनिंद्र जैन और राजस्थान के विक्रम तपरवाडा प्रमुख नाम हैं.
अगर मांगें नहीं मानी गई तो फिर आंदोलन से नहीं चूकेंगे अन्ना
वहीं अन्ना हजारे की मुख्य मांगों में केंद्र में लोकपाल की नियुक्ति, सभी राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति, सरकार के नियंत्रण वाले कृषि मूल्य आयोग, चुनाव आयोग, नीति आयोग के साथ-साथ अन्य आयोगों सरकारी नियंत्रण से हटाना शामिल है. उनकी मांग इन्हें संवैधानिक दर्जा दिलाने की है. साथ में सिटिजन चार्टर लागू करना, किसानों का ऋण माफी करना, स्वामिनाथन आयोग की सिफारिश लागू करना और 60 साल के किसानों को पेंशन दिलाने के लिए सरकार से प्रावधान करने को कहा है.
आपको बता दें कि साल 2011 में भी अन्ना आंदोलन के इसी तरह की मांग रखी गई थी. आंदोलन भी खत्म हो गया और उन मांगों का भी दिवाला निकल गया. इस बार भी उन्होंने आखिरकार कम भीड़ और लोगों के समर्थन नहीं मिलने के कारण पीछे हटने का निर्णय किया.
इस बार अपने किसी भी पुराने साथी या फिर किसी भी राजनीतिक पार्टी के नेताओं को मंच पर जगह नहीं दी थी. साल 2011 के अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव, किरण बेदी, प्रशांत भूषण और जनरल वीके सिंह जैसे लोगों ने मुख्य भूमिका अदा किया था. बाबा रामदेव से लेकर कई और लोग भी जुड़े थे, जिनकी राहें आज अन्ना हजारे से जुदा कर होकर कहीं और पहुंच गया है.
बृहस्पतिवार को अन्ना हजारे ने कहा कि केंद्र सरकार ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त नियुक्त की जाएगी. सरकार ने लोकपाल को प्रधानमंत्री, सांसदों, मंत्रियों और विधायकों पर कार्रवाई की शक्तियां दिलाने का वादा किया है.
उनके मुताबाकि सरकार ने कृषि मूल्य आयोग की घोषणा की है. डेढ़ गुना समर्थन मूल्य की बात मांग ली है. स्वामीनाथन आयोग की अधिकांश मांगें भी मान ली गई हैं. छोटी-मोटी अन्य कमियों को सुधारने के लिए अन्ना ने सरकार को तीन माह का समय दिया है.
कुल मिलाकर अन्ना ने अपनी मांगों को लेकर केंद्र सरकार को तीन महीने का वक्त दिया है. सरकार अगर तीन महीने के तय समय के अंदर अन्ना की मांगों मांगों को पूरा नहीं करती है तो ऐसे में अन्ना तीन महीने बाद एक बार फिर से इसी रामलीला मैदान में आंदोलन शुरु करने की बात से भी परहेज नहीं करेंगे.
देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट
हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :
कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:
हमें ईमेल करें : [email protected]