अब प्रोटेम स्पीकर के हाथ बीएस येदियुरप्पा सरकार की किस्मत?

बंगलुरू/नई दिल्ली। कर्नाटक मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि कर्नाटक विधानसभा में कैसे शक्ति परीक्षण कराना है इसका फैसला प्रोटेम स्पीकर करेंगे. इससे पहले अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट से दरख्वास्त की थी कि सीक्रेट बैलट के तहत सदन में शक्ति परीक्षण कराया जाए.

मीडिया रिपोर्टों की मानें तो कर्नाटक सचिवालय ने प्रोटेम स्पीकर के नाम के लिए आरवी देशपांडे के नाम की सिफारिश की है. देशपांडे आठ बार कांग्रेस से हलियाल सीट पर विधायक रह चुके हैं. उनके पास नियमित स्पीकर की तरह शक्तियां नहीं होंगी लेकिन वह सभी नए चुने गए विधायकों को शपथ दिलवाएंगे.

क्या कहते हैं जानकार

संवैधानिक विशेषज्ञ पीडीटी आचरे का मानना है कि अगर प्रोटेम स्पीकर शक्ति परीक्षण करवाते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर सदन ने नियमित स्पीकर अभी तक नहीं चुना है तो उनकी गैरमौजूदगी में प्रोटेम स्पीकर सदन की कार्रवाई संभाल सकते हैं.

जानकार मानते हैं कि अगर येदियुरप्पा अपनी पसंद का स्पीकर चुनने में कामयाब हो जाते हैं और बीजेपी विपक्षी पार्टी के विधायकों को तोड़ अपने पाले में शामिल कर लेती है तो उसके लिए कई समस्याएं सुलझ सकती हैं. बीजेपी का अपना प्रोटेम स्पीकर होने से वे दल-बदल कानून से भी निपट सकते हैं क्योंकि स्पीकर के पास इस कानून से निपटने की शक्तियां होती हैं.

कर्नाटक में एक वाकया और

कर्नाटक में ऐसा पहले भी हो चुका है. यह केबी कोलीवाड़ के स्पीकर रहते हुए हुआ था. उनके समय राज्य सभा चुनाव के दौरान जेडीएस के सात विधायकों ने कांग्रेस के लिए वोट डाला था लेकिन इसके बावजूद कोलीवाड़ ने उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया था.

ऐसे मामले आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उत्तरप्रदेश में भी देखने को मिल चुके हैं. जहां स्पीकर ने फौरन फैसला नहीं लिया और फैसले को अनिश्चित काल के लिए टाल दिया.

पूर्व में भी ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं, जब विधायकों ने विपक्षी पार्टी के पक्ष में वोट डाले और ऐसे वक्त में स्पीकर ने उनके खिलाफ कार्रवाई का फैसला टाल दिया. स्पीकर के लिए जरूरी नहीं होता कि उसे तय समय के अंदर फैसला देना है. वह फैसले को अनिश्चित समय के लिए भी टाल सकता है. प्रोटेम के इस फैसले के चलते पार्टी सरकार बनाने में भी कामयाब हो जाती है.

प्रोटेम का क्या है अर्थ

प्रोटेम लैटिन शब्‍द है जो दो अलग-अलग शब्दों प्रो और टेंपोर (Pro Tempore) से बना है. इसका अर्थ है-‘कुछ समय के लिए.’ किसी विधानसभा में  प्रोटेम स्‍पीकर को वहां का राज्यपाल चुनता और इसकी नियुक्ति अस्थाई होती है जब तक विधानसभा अपना स्‍थायी विधानभा अध्‍यक्ष नहीं चुन ले. प्रोटेम स्पीकर नए विधायकों को शपथ दिलाता है और यह पूरा काम इसी की देखरेख में होता है. विधानसभा में जब तक विधायक शपथ नहीं लेते, तब तक उनको सदन का हिस्‍सा नहीं माना जाता.

 

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