… अब बस आप कुछ ही दिन और पी सकेंगे ऐतिहासिक स्थल पर काफी

राजेश श्रीवास्तव

विश्वस्त सूत्रों की मानें तो लखनऊ की धड़कन कहे जाने वाले हजरतगंज में स्थित इंडियन कॉफी हाउस अब जल्द ही अपना स्वरूप बदलने वाला है। बदहाली का शिकार काफी हाउस अब या तो कहीं और शिफ्ट हो सकता है या फिर पूरी तरह से बंद हो सकता है। इस ऐतिहासिक स्थल पर राजधानी का एक व्यवसायिक घराना यहां कुछ नये ढंग का व्यवसाय करने को आतुर दिख रहा है। लखनऊ की धड़कन कहे जाने वाले हजरतगंज में स्थित इंडियन कॉफी हाउस की रंगीन शाम कभी लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय थी। नजारा कुछ ऐसा रहता था, मानो हर शाम दिवाली हो। इस जगह पर बैठना और कॉफी पीना लोग अपनी शान समझते थे। वही काफी हाउस जो फिर से अपनी जिदगी में नई सांसें भरते हुए मई 2००० में कॉफी हाउस दोबारा खुला, लेकिन बीच में कई बार विवादों के कारण भी सुर्खियों में आया। वहां लंबे समय से अब यहां पहले वाली बात नजर नहीं आती थी। शहर के नए चमचमाते होटलों, रेस्टोरेंटों की तरह इसका मिजाज भी बदल चुका है। अब वहां कॉफी की चुस्कियों के साथ सियासत की गरमा-गरम बहस नहीं होती और सियासतदान यहां झांकना तक पसंद नहीं करते, बल्कि दूसरे रेस्टोरेंट की तरह यहां भी व्यावसायिकता साफ नजर आती है। यकीनन, ये वक्त का तकाजा है और शायद कॉफी हाउस की सांसें चलाने के लिए जरूरी भी, लेकिन आधुनिकता का लबादा ओढ़े हुए आज का कॉफी हाउस अपने चर्चित इतिहास को कहीं न कहीं अपने ही अंदर दफन कर चुका है और अब यहां आने वाले नवयुवकों सहित अन्य लोगों को भी नहीं पता कि वह किस अहम जगह पर बैठे हैं, उनके लिए ये जगह भी दूसरे रेस्टारेंट की ही तरह है। काफी हाऊस के संचालक बताते हैं कि अब काफी हाऊस चलाना बेहद नुकसान का सौदा साबित हो रहा है।

वह कहते हैं कि वेटरों की तनख्वाह तक अपनी ज्ोब से भरनी पड़ती है। वह कहते हैं कि अब वह जल्द ही इससे पूरी तरह निजात ले लेंगे। जबकि इस जमीन के मालिक जल्दी ही इसे किसी दूसरे के हवाले करने वाले हैं। मतलब साफ है कि अब ऐतिहासिक काफी हाऊस में बैठ कर आप अपने पुराने दिनों को याद नहीं कर पायेंगे। हो सकता है कि इस ऐतिहासिक स्थल पर कुछ नयी व्यवसायिक गतिविधियों का भी चलन होता दिख्ो। अगर ऐसा हुआ तो यह शहर के लिए वास्तव में एक धरोहर को खो देना होगा। उत्तर प्रदेश में अवध की शाम हमेशा से लोगों के दिल को लुभाती आई है। इसीलिए इस शहर की खासियत के बारे में ‘शाम-ए-अवध’ जैसे अल्फाज कहे गए हैं। लेकिन अवध की शाम और उससे जुड़ी खास जगहों पर अब आधुनिकता की झलक साफ देखने को मिल रही है, इनमें से कुछ तो आधुनिकता के थपेड़ों में खो गई हैं, या फिर उनका पुराना चर्चित मिजाज ही बदल गया है। कॉफी हाउस के इतिहास के पन्ने खंगाले तो सामने आता है कि इसकी नींव सन 1936 में पड़ी। सन 1936 से 1957 तक इंडियन कॉफी हाउस का प्रबंध कॉफी बोर्ड के नियत्रंण में था। सन 1957 में ही कॉफी बोर्ड ने इस योजनाओं में कुछ नयापन दिखाने का प्रय‘ शुरू कर दिया था, जिसके तहत 1956 में ही कॉफी हाउस को बंद कर दिया गया। इतना ही नहीं, सितंबर 1957 से अक्टूबर 1958 तक कॉफी बोर्ड द्बारा संचालित 41 कॉफी हाउस भी बंद करा दिए गए, जिससे एक साथ 835 मजदूर बेरोजगार हो गए। इस समस्या का समाधान शीघ्र करने के लिए 11 प्राथमिक समितियों का गठन किया गया, जिसका नाम इंडियन कॉफी वर्क्सã को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड रखा गया। इस सोसाइटी में लखनऊ का कॉफी हाउस भी सम्मिलित था। साथ ही ऑल इंडिया कॉफी वर्कसã को-ऑपरेटिव सोसाइटी फ़ेडरेशन के सदस्य भी शामिल थे। एक वक्त था, जब कॉफी हाउस में प्रतिष्ठित चित्रकार, राजनैतिक लेखक ही ज्यादातर आया करते थे। डॉ. राम मनोहर लोहिया, राज नारायण, फिरोज गांधी, पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीज एवं पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर समेत अनेक हस्तियों ने अपना ज्यादातर वक्त इसी कॉफी हाउस में गुजारा है। कहा जाए तो लखनऊ के कॉफी हाउस ने पल-पल बदलती राजनीति को बड़े करीब से देखा है। आज कॉफी हाउस भले ही अपनी पुरानी पहचान खो गया हो और इसका नजारा शहर के दूसरे रेस्टोरेंट की तरह हो गया हो, जो इतिहास से सरोकार रखते नजर नहीं आते, लेकिन यही कॉफी हाउस 1958 के समय लखनऊ में अपनी एक अनोखी पहचान रखता था। यहां के बटलरो का पहनावा व अंदाज ने लोगों को काफी आकर्षित करता था। ऐसे में 1964 से 1965 में पटना व गोरखपुर में इसकी दो शाखाएं भी शुरू की गईं, लेकिन यह इसकी सफलता कि अंतिम सीढ़ी थी। सन 1969 से 197० तथा 1976 से 1981 तक ऑल इंडिया कॉफी फ़ेडरेशन फैलाया गया, लेकिन 1996 तथा 1998 तक आते-आते कॉफी हाउस की स्थिति गिरती गई। पानी व बिजली का कनेक्शन ही काट दिया गया, जिस कारण ग्राहकों का भी आना-जाना कम हो गया। फिर से अपनी जिदगी में नई सांसें भरते हुए मई 2००० में कॉफी हाउस दोबारा खुला, लेकिन बीच में कई बार विवादों के कारण भी सुर्खियों में आया। आज का कॉफी हाउस अपने चर्चित इतिहास को कहीं न कहीं अपने ही अंदर दफन कर चुका था और अब तो यह स्थल भी अपनी शक्ल खोने को आतुर है और किसी भी दिन आपको यह गायब मिल सकता है।

 

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