चामुंडेश्वरी में कभी दोस्त रहे दुश्मन से जीत नहीं पाए सिद्धरमैया

कर्नाटक चुनाव के नतीजे आ चुके हैं. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है और सत्ताधारी कांग्रेस और सिद्धरमैया को करारा झटका मिला है. सिद्धरमैया उस बार दो जगहों से चुनाव लड़ रहे थे- बादामी और चामुंडेश्वरी से. बादामी से निवर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने बीजेपी के बी श्रीरामुलू को तो 1,696 मतों के करीब अंतर से तो हरा दिया लेकिन चामुंडेश्वरी सीट से हारे उन्हें जेडीएस के जी टी देवगौड़ा ने 36,042 मतों से करारी मात दी.

प्री-पोल सर्वे और राज्य की इंटिलेजेंस ने भी कहा था कि सिद्धरमैया यहां से चुनाव हार सकते हैं. लेकिन किसी को सिद्धरमैया के इतनी करारी हार की उम्मीद नहीं थी. वैसे सिद्धरमैया को हराने वाले जीटी देवगौड़ा भी राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं और जेडीएस के मैसूर क्षेत्र के बहुत बड़े नेता हैं. यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि जीटी देवगौड़ा और सिद्धरमैया एक समय करीबी दोस्त थे.

देवगौड़ा हंसूर और चामुंडेश्वरी से तीन बार विधायक रह चुके हैं और एचडी कुमारास्वामी की सरकार में वो मंत्री भी रह चुके हैं. अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत केजीटी देवगौड़ा ने 1970 में एक कृषि को-ऑपरेटिव सोसायटी से की थी. 1978 में देवगौड़ा कांग्रेस के उम्मीदवार केंपेरे गौड़ा का विधानसभा चुनाव में समर्थन कर राजनीति में कूदे थे. तब कांग्रेस और कांग्रेस (आई) में लड़ाई थी. कंपेरे गौड़ा इंदिरा कांग्रेस के उम्मीदवार जयादेवराज से यह चुनाव हार गए थे.

20 साल तक दोस्त रहे थे जीटी देवगौड़ा और सिद्धरमैया

इसके बाद जीटी देवगौड़ा कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए. 1983 के विधानसभा चुनाव के दौरान उनकी सिद्धरमैया से दोस्ती हुई और दोनों की दोस्ती का सफर करीब 20 साल तक चला. 2004 में देवगौड़ा पहली बार हंसूर से विधायक बने लेकिन इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में वो करीबी अंतर से हार गए.

सिद्धरमैया से विवाद होने के बाद केजीटी देवगौड़ा 2007 में बीजेपी में शामिल हो गए और हंसूर सीट से विधायक चुने गए. 2013 में वे फिर से जेडीएस में शामिल हो गए और चामुंडेश्वरी सीट से करीब 9000 वोटों से जीत दर्ज की. चामुंडेश्वरी सीट से सिद्धरमैया पहले भी हार चुके हैं. 1983 में सिद्दरमैया चामुंडेश्वरी से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते थे. 1985 और 1989 के विधानसभा चुनाव में चामुंडेश्वरी से सिद्धरमैया को हार का सामना करना पड़ा था.

1994 में वे जनता दल के टिकट पर विधायक बने. 1999 में जनता दल में विभाजन के बाद जेडीएस का निर्माण हुआ. सिद्धरमैया जेडीएस के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन वो हार गए. लेकिन 2004 के चुनाव में वे फिर से चामुंडेश्वरी से जेडीएस के टिकट पर विधायक बने और राज्य के डिप्टी सीएम बने. 2004 में परिसीमन की वजह से सिद्दरमैया का वोटर बेस बादामी सीट में चला गया. इस दौरान जेडीएस नेतृत्व से मतभेद की वजह से वे कांग्रेस में शामिल हो गए. 2008 और 2013 में सिद्धरमैया को बादामी सीट से जीते.

 

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