जब कर्नाटक में पहली बार खिला था कमल, 5 साल में BJP को बदलने पड़े 3 CM

नई दिल्ली। कर्नाटक का चुनावी अखाड़ा सज चुका है. चुनाव आयोग ने मतदान का आधिकारिक उद्घोष कर दिया है. बस अब पहलवानों की घोषणा यानी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान होना बाकी है. हालांकि, के. सिद्धारमैया और बीएस येदुरप्पा के रूप में मुख्य योद्धाओं के नाम पहले ही तय कर दिए गए हैं. कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लेकर चल रही बीजेपी ने येदयुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है. लेकिन इससे पहले जब 2008 में बीजेपी ने उन्हें सीएम की कुर्सी सौंपी तो वह कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए. जिसका असर ये हुआ कि पार्टी को पांच साल में तीन मुख्यमंत्री के सहारे सत्ता चलानी पड़ी.

कर्नाटक अपनी राजनीतिक अस्थिरता के लिए पूरे देश में चर्चित है. इसे पिछले पांच दशकों में पांच बार राष्ट्रपति शासन का सामना करना पड़ा है. वहीं, एक कार्यकाल में कई-कई मुख्यमंत्री भी मिले हैं. 1977 के बाद से कांग्रेस की एसएम कृष्णा सरकार और अब मौजूदा सिद्धारमैया सरकार ही एक चेहरे के साथ कार्यकाल पूरा कर पाई है.

दक्षिण भारत की राजनीति से दूर भारतीय जनता पार्टी को 2007 में यहां पहली बार सरकार बनाने का मौका मिला. जनता दल (सेक्यूलर) के साथ गठबंधन सरकार में बीएस येदयुरप्पा को सीएम बनाया गया, लेकिन वह महज 7 दिन ही इस पद पर रह सके. क्योंकि जद(एस) ने समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू किया गया.

2008 में बनी बीजेपी की सरकार

इसके बाद 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जबरदस्त प्रदर्शन किया और अपने दम पर सूबे की सत्ता संभाली. कुल 224 सीटों में से 110 पर बीजेपी उम्मीदवारों की जीत हुई. जबकि कांग्रेस को 80 सीट मिलीं और जनता दल (सेक्यूलर) महज 28 सीटों पर सिमट गई.

राज्य में पहली बार इतना बड़ा जनादेश मिलने के बाद बीजेपी ने बीएस येदयुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाया. 30 मई 2008 को उन्होंने ये जिम्मेदारी संभाली. लेकिन भ्रष्टाचार की आंच ने उन्हें कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया. कर्नाटक लोकयुक्त की रिपोर्ट में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला सामने आया. जिसके बाद दबाव में आई बीजेपी को कड़ा फैसला लेना पड़ा और अंतत: 31 जुलाई 2011 को येदुरप्पा ने इस्तीफा दे दिया.

येदयुरप्पा के बाद सदानंद

येदयुरप्पा कुल 3 साल 62 दिन तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे. उनके इस्तीफे के बाद ये जिम्मेदारी डीवी सदानंद गौड़ा को दी गई. 4 अगस्त 2011 को सदानंद गौड़ा ने शपथ ली. वीरप्पा मोइली के बाद तुलुवा समुदाय से कर्नाटक की कमान संभालने वाले सदानंद गौड़ा दूसरे व्यक्ति थे. बतौर मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा ने भ्रष्टाचार का कलंक झेल रही पार्टी के छवि निर्माण की भरपूर कोशिश की, लेकिन वो अंदरूनी कलह को दूर करने में नाकामयाब रहे. जिसके बाद पार्टी ने उन्हें भी गद्दी से बेदखल कर दिया. 12 जुलाई 2012 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा और इस तरह सदानंद गौड़ा महज 343 दिन तक ही सीएम रह पाए.

सदानंद के बाद शेट्टार

पार्टी में चल रही अंतर्कलह से निजात पाने के लिए बीजेपी ने अपने वरिष्ठतम नेताओं में शुमार जगदीश शेट्टार को चुनाव से एक साल पहले मुख्यमंत्री का उत्तरदायित्व दिया गया. हालांकि, इससे पहले 2008 में सरकार बनने के बाद उन्हें विधानसभा स्पीकर बनाया गया था. लेकिन 2009 में वो इस पद से हट गए और उन्हें कैबिनेट में शामिल कर लिया गया.

सदानंद गौड़ा के इस्तीफे के बाद जगदीश शेट्टार ने 12 जुलाई 2012 को सीएम पद की शपथ ली और वो 2013 के चुनाव तक कुर्सी पर रहे. यहां तक कि बीजेपी ने 2013 का विधानसभा चुनाव भी जगदीश शेट्टार के चेहरे पर ही लड़ा. बावजूद इसके येदयुरप्पा पर लगे भ्रष्टाचार के दाग और पार्टी में पनपी कलह ने उसे महज 40 सीटों पर ही रोक दिया और 122 सीटें जीतकर कांग्रेस ने के. सिद्धारमैया के नेतृत्व में सरकार बनाई. इस तरह बीजेपी को कर्नाटक के इतिहास में अपनी पहली सरकार ही तीन मुख्यमंत्रियों के साथ चलानी पड़ी.

अब एक बार फिर बीजेपी बीएस येदुरप्पा के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है. राज्य की सभी 224 सीटों पर 12 मई को मतदान होना है, जबकि मतगणना 15 मई को होगी.

 

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