जब कांग्रेस के दामन पर खून के धब्बे हैं तो सलमान वहां क्यों हैं?

युशुफ अंसारी

‘कांग्रेस के दामन पर मुसलमानों के खून के धब्बे हैं…’ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के इस बयान से कांग्रेस मुसलमानों को लेकर एक बार फिर सवालों के घेरे में है. वहीं बीजेपी को कांग्रेस पर हमला बोलने का मौका मिल गया है. बीजेपी सलमान के इस बयान को कुबूलनामा बताते हुए राहुल गांधी से माफी मांगने की मांग कर रही है.

मुस्लिमों पर सलमान के जवाब से परेशान कांग्रेस

सलमान खुर्शीद के इस बयान पर हो रही सियासत के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने से पहले उनके इस बयान और उसके संदर्भ के समझना जरूरी है. दरअसल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में एक छात्र आमिर मिंटोई ने सलमान से सवाल पूछा, ‘1948 में अलीगढ़ एक्ट में पहला संशोधन हुआ. 1950 में राष्ट्रपति का आदेश. उसके बाद हाशिमपुरा, मलियाना, मुजफ्फरनगर और पूरी लंबी लिस्ट है दंगों की जो कांग्रेस के शासनकाल में हुए. उसके बाद बाबरी मस्जिद के दरवाजों का खुलना, उसमें मूर्तियों का रखना. उसके बाद बाबरी मस्जिद की शहादात जो कांग्रेस की केंद्र सरकार के दौरान हुई. ये तमाम जो खून के धब्बे कांग्रेस के दामन पर मुसलमानों के हैं उन्हें किन अल्फाज़ में धोएंगे आप?’

इस सवाल पर सलमान खुर्शीद के जवाब इस तरह है, ‘राजनीतिक सवाल है. हमारे दामन पर खून के धब्बे हैं. (शोर गुल में कई आवाज़ें आती हैं आप नहीं कांग्रेस….कांग्रेस) मुझे मानने दीजिए कि हमारे दामन पर खून के धब्बे हैं. मैं भी कांग्रेस का हिस्सा हूं. इसी वजह से आप हमसे कह रहे हैं कि अब आप पर कोई वार करे तो उसे हमें बढ़कर रोकना चाहिए. हम ये धब्बे दिखाएंगे कि तुम समझो कि ये धब्बे अब तुम पर न लगें. तुम वार इन पर करोगे तो धब्बे तुम पर लगेंगे. हमारे इतिहास से आप कुछ सीखें-समझें.’ सलमान खुर्शीद के इस बयान से राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है. कांग्रेस ने इस बयान से पल्ला झाड़ लिया है. बीजेपी कांग्रेस पर हमलावर है.

सलमान खुर्शीद के इस बयान को गौर से सुनने के बाद ऐसा लगता है कि वो मुसलमानों के हवाले से कांग्रेस से हुई गलतियों के लिए निजी तौर पर दुखी हैं और चाहते हैं कि कांग्रेस और मुसलमान दोनों ही इन गलतियों से सबक सीखें. सलमान से जो पूछा गया और जो कुछ उन्होंने जवाब में कहा वो एक एतिहासिक सच्चाई है. आज़ादी के बाद लगातार कांग्रेस केंद्र और राज्यों में सत्ता में रही है. लिहाज़ा इस दौरान जो कुछ भी हुआ उसके लिए वो ज़िम्मेदार हैं. इस दौरान जो भी अच्छे काम हुए उसा सेहरा भी कांग्रेस के सिर है और जो भी गल्तियां हुई हैं उनका ठीकरा भी उसी के सिर फूटेगा. इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता कि कांग्रेस के सत्ता में रहते देश में बड़े पैमाने पर हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए इन दंगों में बड़े पैमाने पर मुसलमान मारे गए. उनका आर्थिक नुकसान हुआ. और दंगों के आरोप में जेल भी मुसलमान ही गए.

देश में सांप्रदायिक दंगों पर गहन अध्यन करने वाले पूर्व IPS अधिकारी विभूति नारायण राव के अनुसार स्वतंत्रता के बाद दंगों में मरने वालों में 70% से भी अधिक मुसलमान हैं. रांची-हटिया (1967), अहमदाबाद (1969), भिवंडी (1970), जलगांव (1970) और मुंबई (1992-93) या राम-जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद के सिलसिले में हुए दंगों में तो यह संख्या 90% के भी ऊपर चली गई है. यही स्थिति संपत्ति के मामलों में भी है. दंगों में न सिर्फ मुसलमान अधिक मारे गए बल्कि उन्हीं की संपत्ति का अधिक नुकसान भी हुआ.

दंगों में नुकसान उठाने के बावजूद जब राज्य मशीनरी की कार्यवाही झेलने की बारी आई तब वहां भी मुसलमान जबरदस्त घाटे की स्थिति में दिखाई देता है. दंगों में पुलिस का कहर भी उन्हीं पर टूटता है. उन दंगों में भी जिनमें मुसलमान 70-80 प्रतिशत से अधिक मरे थे पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया उनमें 70-80 प्रतिशत से ज्यादा मुसलमान थे, उन्हीं के घरों की तलाशियां ली गईं, उन्हीं की औरतें बेइज्जत हुईं और उन्हीं के मोहल्लों में सख्ती के साथ कर्फ्यू लगाया गया.

सूरत के मुस्लिम इलाकों के कई आवेदन उनके पिनकोड देखकर कैंसल हो जाते हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर

कांग्रेस में अपनी अनदेखी से नाराज है मुस्लिम समाज

आज अगर कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद इस सच्चाई को खुलेआम स्वीकार करने और इन गलतियों से सबक सीखने की बात करते हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं है. अगर दंगो के लिए राज्य और केंद्र सरकार दोनों को ही दोषी माना जाए. तो इस हिसाब से गुजरात में 2002 में जो कुछ हुआ उसके लिए बीजेपी को पूरी तरह दोषी माना जाना चाहिए. उस समय केंद्र और गुजरात दोनों जगह बीजेपी की सरकार थी. उस समय गुजरात में हिंसा का अभूतपूर्व हिंसा हुई थी. आज जो बीजेपी नेता सलमान के बयान पर राहुल गांधी से माफी मांगने को कह रहे हैं उन्हें प्रघानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से भी 2002 की हिंसा के लिए माफी मांगने की भी मांग करनी चाहिए. देश में कोई ऐसी सरकार नहीं रही जिसके राज में सांप्रदायिक दंगे न हुए हों. इस लिहाज से देखें तो सभी पार्टियों के दामन पर धब्बे हैं.

मुस्लिम समाज में कांग्रेस के प्रति अपनी अनदेखी को लेकर करीब तीन दशक पहले गुस्सा फूटना शुरू हुआ. बाबरी मस्जिद गिराए जाने की घटना के बाद कांग्रेस लगभग पूरे देश में मुसलमानों के लिए अछूत सी गई थी. इसलिए लगभग एक दशक तक वो केंद्र की सत्ता से बाहर रही. इस दौरान मुसलमानों ने कांग्रेस के बजाय गैर-बीजेपी क्षेत्रीय दलों को तरजीह दी. यूपी में एसपी, बीएसपी, तो बिहार में पहले जनता दल फिर RJD और JDU तो आंध्र प्रदेश में तेलगु देशम और असम में असम गण परिषद मुसलमानों की पसंद रही.

बाबरी मस्जिद गिराए जाने की घटना के बाद 1996 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में मुसलमानों ने देश भर में कांग्रेस को नकार दिया. इस चुनाव में क्षेत्रीय दलों के सांसद चुन कर आए और देश में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ. बाद में जब इन पार्टियों ने बीजेपी का दामन थामा तो मुसलमान फिर कांग्रेस की तरफ पलटे. नतीजतन 2004 में कांग्रेस फिर केंद्र की सत्ता में लौटी.

आम मुसलमान देशभर में अपनी खस्ता हालत के लिए मोटे तौर पर कांग्रेस को ही दोषी मानता है. 2006 में आई जस्टिस सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी देश भर में मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर बताई गई है. यह रिपोर्ट कांग्रेस के शासन काल में आई थी. यह रिपोर्ट बताती है कि मुस्लिम समाज रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में देश के सबसे पिछड़े वर्गों में शामिल है. बीजेपी अक्सर इस रिपोर्ट के आधार पर मुसलमानों की खस्ता हालत के लिए कांग्रेस को ही ज़िम्मेदार ठहराती है.

आम तौर पर मुस्लिम समाज भी इसके लिए कांग्रेस को ही कोसता है. वहीं हकीकत यह भी है कि कांग्रेस ने कई बार खुले दिल से अपनी गलतियों को स्वीकार भी किया है. कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद सोनिया गांधी ने बाबरी मस्जिट गिराए जाने की घटना के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार और प्रधानमंत्री नरसिंह राव की गलतियों के लिए माफी मांगी थी. वहीं प्रधानमंत्री बनने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह ने 1984 में सिखों के कत्लेआम के लिए कांग्रेस की गलतियों के लिए माफी मांगी थी.

Salman-Khurshid

सलमान के इस बयान से उबरने में वक्त लगेगा

इतिहास किसी को माफ नहीं करता. अपनी गलतियों की सज़ा सबको भुगतनी पड़ती है. कांग्रेस को भी सत्ता से बाहर रहकर अपनी गलतियों की सज़ा भुगतनी पड़ी है. कांग्रेस ने लंबे समय तक सत्ता में बने रहने के लिए मुसलमानों का इस्तेमाल किया है. साथ ही सच्चाई यह भी है कि कांग्रेस ने मुसलमानों को सत्ता में भागीदारी भी दी.

देश के बंटवारे के बाद 1967 में डॉ. ज़ाकिर हुसैन को देश का तीसरा राष्ट्रपति बनाने जैसा कदम इस का सबूत था कि धर्म के आधार पर बंटवारे का दंश झेलने के बावजूद कांग्रेस देश धर्म निरपेक्षता के रास्ते पर ही आगे बढ़ाना चाहती है. जहां यह सच्चाई है कि कांग्रेस के राज में बड़े पैमाने पर दंगें हुए वहीं यह भी सच्चाई है कि कांग्रेस के राज में तीन-चार राज्यों में मुसलमान राज्यपाल हुआ करते थे. यह कांग्रेस ही थी जिसने राजस्थान में बरकतुल्ला खान, महाराष्ट्र में ए.ए.आर अंतुले, बिहार में अब्दुल गहफूर, असम में सैयद अनवरा तैमूर, मणिपुर मे अलीमुद्दीन और पुडुचेरी में एमओएच फारूक़ को मुख्यमंत्री बनाकर देश में धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कीं.

2014 के लेकसभा चुनाव के बाद एके एंटनी ने एक रिपोर्ट पेश करके बताया कि कांग्रेस की छवि मुस्लिम परस्त पार्टी की हो गई है इसलिए वो लोकसभा का चुनाव बुरी तरह हारी. इसके बाद कांग्रेस ने मुसलमानों से किनारा करना शुरू किया. गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अहमद पटेल के अलावा किसी भी मुस्लिम नेता को नहीं भेजा. कर्नाटक चुनाव में भी कांग्रेस मुस्लिम नेताओं से परहेज कर रही है. सलमान खुर्शीद ने ऐसे समय जाने अनजाने में एक सच्चाई बयान करके अपनी ही पार्टी को मुश्किल में डाला है जब उसे अपने खिलाफ हो रहे जबर्दस्त दुष्प्रचार से उबरने की ज़रूरत है.

कांग्रेस में यह भी कहा जा रहा है कि सलमान पार्टी में अपनी अनदेखी से खफा चल रहे हैं इसलिए उन्होंने इस मुद्दे पर पार्टी से अलग रुख अख्तियार किया हुआ है. चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग के मुद्दे पर भी उन्होंने पार्टी की तय लाइन से हटकर बात की थी. सलमान खुर्शीद खानदानी कांग्रेसी हैं. केंद्र सरकार में कई अहम मंत्रालय संभाल चुके हैं. दो बार उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं. कांग्रेस संगठन में इंचार्ज भी रह चुके हैं. फिलहाल वो पार्टी में किसी पद पर नहीं है. हो सकता है कि राहुल की टीम में वो अपनी जगह बनाने के लिए ध्यान खींच रहें हों. सच्चाई जो हो उनके इस बयान और उस पर अड़े रहने से उनकी पार्टी असहज स्थिति में है. इससे उबरने में वक्त लग सकता है.

(लेखर स्वतंत्र पत्रकार हैं)

 

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