जम्मू-कश्मीर: टूट के कगार पर खड़ी है PDP, राज्य की राजनीति में बन रहे नए समीकरण!

समीर यासिर

जम्मू-कश्मीर की पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार के गिरने के महज 2 हफ्ते बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) टूटने की तरफ बढ़ रही है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में फिलहाल पीडीपी के 28 सदस्य हैं और इस तरह से वह सदन में राज्य की सबसे बड़ी पार्टी है.

पीडीपी में बगावत की सुगबुगाहट है. बीजेपी-पीडीपी सरकार में मंत्री रहे इमरान रजा अंसारी महबूबा के खिलाफ उभर रहे मोर्चे के नेता बनकर उभरे हैं. पीडीपी के इतिहास में पहली बार किसी नेता ने महबूबा की सरकार को परिवार का राज बताया है. महबूबा के खिलाफ अंसारी की बगावत को पीडीपी के कई विधायकों का भी समर्थन मिल रहा है.

एक तिहाई विधायकों को तोड़ने की तैयारी!

सूत्रों के मुताबिक, उत्तरी कश्मीर के पाटन विधानसभा क्षेत्र से विधायक अंसारी पीडीपी के कम से कम एक तिहाई विधायकों को अपने पाले में कर सकते हैं. वह पूरी तरह से आश्वस्त हैं और उन्होंने इस सिलसिले में साफ-साफ बात की.

मुफ्ती मोहम्मद सईद की अगुवाई वाली जम्मू-कश्मीर सरकार में मंत्री रहे मौलवी इफ्तिखार हुसैन के बेटे अंसारी ने कहा, ‘मेरी बात मानिए, कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में सूनामी आ रही है.’ जम्मू-कश्मीर में पीडीपी को लेकर इस बाबत पहले ही अटकलें चल रही हैं कि वह (पीडीपी) सरकार बनाने के लिए कांग्रेस के करीब जाने की कोशिश कर रही है. 87 सदस्यों वाली जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कांग्रेस के 12 विधायक हैं. पीडीपी के फिलहाल 28 विधायक हैं और उसके लिए कांग्रेस व बाकी निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर बहुमत का आंकड़ा (44 विधायक) हासिल करने योग्य लगता है.

हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने इन अफवाहों का जोरदार तरीके से खंडन किया है. दिल्ली से श्रीनगर तक कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि पीडीपी के साथ गठबंधन नामुमकिन है. महबूबा मुफ्ती का भी कहना था कि पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन के बारे में मीडिया में चल रही अटकलों को लेकर उन्हें ‘हंसी आ रही है’.

कश्मीर में नए राजनीतिक घटनाक्रम का संकेत

एक ओर जहां कांग्रेस-पीडीपी सरकार के गठन को लेकर श्रीनगर और जम्मू में तमाम तरह की बातें हो रही हैं, वहीं दूसरी तरफ महबूबा मुफ्ती के खिलाफ पीडीपी के कुछ नेताओं के बयान नए राजनीतिक घटनाक्रम की तरफ इशारा कर रहे हैं.

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बहरहाल, महबूबा की पीडीपी के लिए अंसारी वाकई में खतरा हो सकते हैं. पीडीपी और अन्य पार्टियों में उनके असर और पहुंच को देखते हुए ऐसा कहा जा सकता है. अंसारी ने कहा, ‘मुफ्ती साहब (स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद) ने राज्य के अलग-अलग हिस्सों से लोगों को इकट्ठा कर पीडीपी का गठन किया था. हालांकि, महबूबा जी के पार्टी नेतृत्व की जिम्मेदारी संभालने के बाद यह उनके भाई, चाचा और अन्य रिश्तेदार द्वारा चलाया जाने वाला फैमिला शो बन गया. पूरी पार्टी भाई-भतीजावाद की गिरफ्त में चली गई’.

शिया राजनेता अंसारी बड़े कारोबारी भी हैं. उन्होंने कहा कि न सिर्फ उनके बल्कि पार्टी के वैसे कई और विधायकों के दिमाग में पार्टी छोड़ने की बात चल रही है, जिनके साथ पार्टी की तरफ से बुरा बर्ताव किया गया. उन्होंने कहा, ‘उन्हें (महबूबा) पहले ही इस बारे में चेतावनी दे दी गई थी.’

अंसारी, द्राबू और लोन की तिकड़ी निभा सकती है अहम भूमिका

अंसारी को सज्जाद लोन और राज्य के पूर्व वित्त मंत्री हसीब द्राबू का करीबी माना जाता है. अगर पीडीपी का एक धड़ा महबूबा के बगैर फिर से बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाता है, तो ये तीनों (अंसारी, लोन और द्राबू) अहम खिलाड़ी होंगे. द्राबू वही शख्स हैं, जिन्होंने 2015 में सरकार बनाने के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी. इस सिलसिले में गठबंधन को लेकर बातचीत की प्रक्रिया काफी लंबी चली थी. हालांकि, महबूबा ने इस साल के शुरू में द्राबू को राज्य के वित्त मंत्री पद से हटा दिया था.

दरअसल, उन्होंने दिल्ली में दिए गए अपने भाषण में कश्मीर को सामाजिक समस्या करार दिया था, जिसके बाद उन्हें राज्य के वित्त मंत्री पद से हटने को मजबूर होना पड़ा. द्राबू और लोन को बीजेपी महासचिव और पार्टी के जम्मू-कश्मीर मामलों के प्रभारी राम माधव का काफी करीब माना जाता है. राम माधव ने हाल में कहा था कि जम्मू-कश्मीर की सरकार से बीजेपी के अलग होने की प्रमुख वजह राज्य सरकार का खराब शासन है.

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल वोहरा ने अभी राज्य विधानसभा को भंग नहीं किया है. इसके बजाय इसे निलंबन की स्थिति में रखा गया है. ऐसे में जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर पहेली और गहरा जाती है, जबकि खरीद-फरोख्त के मामलों से बचने के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस इस बाबत मांग करती रही थी. इस बात को लेकर भी अटकलें हैं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के दो नेताओं की भी राज्य के नए निजाम पर नजरें टिकी हैं. हालांकि, नेशनल कॉन्फ्रेंस के किसी भी नेता ने औपचारिक या अनौपचारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं की है.

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इस सिलसिले में राम माधव की राज्य बीजेपी के नेताओं और कश्मीर में पार्टी के सहयोगी और पूर्व हुर्रियत नेता सज्जाद लोन के साथ संक्षिप्त बातचीत हुई है. माना जा रहा है कि वह राजनीतिक ढांचे में संभावित फेरबदल की अगुवाई करने वालों में से एक हैं. यह संभावित फेरबदल जम्मू-कश्मीर के सत्ता के गलियारों में बीजेपी की फिर से पहुंच बना सकता है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा में बीजेपी के 25 सदस्य हैं, जबकि सज्जाद लोन की पार्टी पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के दो विधायक हैं.

पर्यटन मंत्रालय नहीं मिलने से नाराज थे अंसारी

जम्मू-कश्मीर की पिछली पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार में महीनों तक अंसारी की नजर पर्यटन मंत्रालय पर रही. बेहद करीबी सूत्रों के मुताबिक, जब उन्होंने इस सिलसिले में महबूबा से बात की तो उन्होंने (महबूबा ने) इस शिया नेता (अंसारी) से कहा कि इस मंत्रालय की जिम्मेदारी पार्टी के किसी सीनियर नेता को संभालनी चाहिए. हालांकि, जब महबूबा ने इस मंत्रालय का जिम्मा अपने भाई को सौंपा, तो अंसारी ने उनके (महबूबा मुफ्ती) के इस फैसले पर नाराजगी जताई. अंसारी ने जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन मुख्यमंत्री से कहा कि उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद कभी इस फैसले को स्वीकार नहीं करते.

अंसारी के बाद उनके चाचा आबिद अंसारी ने सार्वजनिक तौर पर पार्टी की आलोचना की. आबिद अंसारी तांगमार्ग से पीडीपी के विधायक हैं. उन्होंने दिग्गज माने जाने वाले गुलाम हसन मीर के खिलाफ चुनाव जीता था. आबिद अंसारी ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि वह किसी भी वक्त पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं और फिर से चुनाव के लिए लोगों के पास जाएंगे.

पीडीपी के एक और विधायक मोहम्मद अब्बास का कहना था कि ‘जहां भी अंसारी साहब जाएंगे’, वह भी वहीं रहेंगे. अब्बास ने उस बात से भी सहमति जताई, जो अंसारी ने महबूबा मुफ्ती के बारे में कही थी. अब्बास ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, ‘जिस पार्टी के लिए हमने अपना खून दिया, वह तीन या चार लोगों की प्रॉपर्टी नहीं हो सकती. जिन लोगों ने इसमें योगदान दिया, उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया.’

अंसारी के अलावा कई और विधायक भी हैं नाराज

जम्मू-कश्मीर के नूराबाद विधानसभा क्षेत्र से पीडीपी के विधायक अब्दुल मजीद पदार का भी कहना था कि वह पार्टी से खुश नहीं हैं. उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट को बताया कि वह पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं, लेकिन वह चाहेंगे कि पीडीपी अपने तौर-तरीकों में सुधार करे. शोपियां के विधायक मुहम्मद युसूफ भट्ट भी पार्टी से नाराज नजर आए. दरअसल, उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया था और उनके गुस्से की प्रमुख वजह यह भी हो सकती है. अब्दुल हक खान को भी अपने विभाग से हटाया गया था.

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मीडिया की खबरों के मुताबिक, वह पहले ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद से मुलाकात कर चुके हैं. उनके भी पार्टी छोड़ने की संभावना है. उत्तरी कश्मीर से एक विधायक की इस बात पर नजर है कि उनके रिश्तेदार और पीडीपी के सीनियर नेता आने वाले दिनों में क्या करेंगे. वह भी अपने रिश्तेदार व पार्टी के सीनियर नेता की तर्ज पर चलने की बात कह रहे हैं. पीडीपी के इस नेता में पार्टी को तोड़ने की संभावना है.

अगर अंसारी और लोन मिलकर पीडीपी के असंतुष्ट नेताओं, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के कुछ विधायकों और निर्दलीय विधायकों को एकजुट कर लेते हैं, तो राज्य में नए चुनाव के बाद नया राजनीतिक समीकरण देखने को मिल सकता है. अगर राज्य में पत्रकारों से नेताओं की ऑफ द रिकॉर्ड बात को ध्यान में रखें, तो फिलहाल इसी तरह की संभावना नजर आती है. काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि भारतीय जनता पार्टी इस नए मोर्चे के उभरने के लिए किस तरह से गुंजाइश बनाती है.

महबूबा के लिए असली परीक्षा यह है कि वह किस तरह से अपने कुनबे को एकजुट रखेंगी. अगर उनकी पार्टी दो धड़ों में बंटती है, तो उनकी मौजूदगी दक्षिण कश्मीर में सीमित रह जाएगी, जहां उनके लिए अब जाना या दौरा करना मुश्किल हो सकता है.

 

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