जानिए बॉलीवुड में कब प्रारम्भ हुई Sequels की रेस

सलमान ख़ान की बहुप्रीतिक्षित फ़िल्म ‘रेस 3’ 15 जून को रिलीज़ हो रही है. वर्ष 2018 में सलमान की यह पहली रिलीज़ है. ज़ाहिर है दर्शकों के बीच उत्साह होगा ही. वैसे भी ईद पर सलमान की फ़िल्म उनके फ़ैंस के लिए किसी ईदी से कम थोड़े ही है. बॉलीवुड में वक़्त के साथ सीक्वल्स या किसी एक ही शीर्षक को लेकर फ्रेंचाइजी फ़िल्में बनाने का चलन बढ़ गया है. 2018 में ‘रेस 3’ के अतिरिक्त बाग़ी2, हेट स्टोरी4, टोटल धमाल, यमला पगला दीवाना फिर से जैसे सीक्वल रिलीज़ हो रहे हैं.

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इनमें कुछ फ़िल्में ऐसी हैं, जिनमें मुख्य किरदारों की पुनरावृत्ति हो रही है, जबकि कहानी नयी होगी. वहीं, कुछ फ़िल्में ऐसी हैं, जिनमें कहानी के साथ मुख्य भूमिका भी बदल जाते हैं, बस शीर्षक वही रहता है. आम तौर फ़िल्मों के सीक्वल्स पहले भाग की रिलीज़ के कुछ वर्ष बाद ही आ जाते हैं. अगर रेस फ्रेंचाइजी को ही मिसाल के तौर पर लें तो पहली फ़िल्म ‘रेस’ 2008 में आयी थी, जबकि इसके 5 वर्ष बाद 2013 में ‘रेस 2’ आयी  उसके अच्छा 5 वर्ष बाद ‘रेस 3’ आ रही है, यानि 10 वर्ष में तीन भाग. मगर कई बार पार्ट2 के लिए ही कई वर्षइंतज़ार करना पड़ता है. ऐसी ही फ़िल्मों का ज़िक्र इस आर्टिक्ल में, जिनके सीक्वल आने में 20 वर्ष से भी अधिक वक़्त लगा.

33 वर्ष बाद अंखियों के झरोखों से

1978 में हीरेन नाग की फ़िल्म ‘अंखियों के झरोखों से’ आयी थी. ताराचंद बड़जात्या निर्मित इस रोमांटिक फ़िल्म में सचिन पिलगांवकर  रंजीता ने मुख्य भूमिका निभाये थे. ‘अंखियों के झरोखों’ से ट्रैजिक लव स्टोरी थी, जिसमें रंजीता के भूमिका की क्लाइमैक्स में मौत हो जाती है. फ़िल्म का संगीत हिट रहा  फ़िल्म सुपर हिट रही. पूरे 3 दशक बाद इस फ़िल्म का सीक्वल 2011 में ‘जाना पहचाना’ शीर्षक से आया. फ़िल्म के मुख्य भूमिका वही रहते हैं, लेकिन कहानी 33 वर्ष आगे बढ़ चुकी है. सचिन के भूमिका अरुण के पास धन-दौलत की कमी नहीं है, मगर प्रेमिका लिली को कैंसर की वजह से खोने के कारण अवसाद में रहता है. अरुण लिली की याद में कैंसर मरीज़ों के लिए अस्पताल चलाता है. उसकी जीवन में तब उथल-पुथल मचती है, जब लिली की हमशक्ल आशा उसकी जीवन में दाखिल होती है. कुछ उतार-चढ़ाव के बाद अरुण को अपना प्यार मिल जाता है. अंखियों के झरोखों से जहां बेहद सफलफ़िल्म थी, वहीं जाना पहचाना फ्लॉप रही.

29 वर्ष बाद ज्वैल थीफ़ की वापसी

विजय आनंद निर्देशित ‘ज्वैलथीफ़’ 1967 में रिलीज़ हुई थी. ‘ज्वैलथीफ़’ चोरी पर आधारित बेहतरीन थ्रिलर फ़िल्मों में शामिल है. देव आनंद, वैजयंतीमाला  अशोक कुमार ने फ़िल्म में मुख्य भूमिका निभाये थे. देव आनंद ने डबल भूमिका प्ले किया था. 29 वर्ष बाद 1996 में देव आनंद ने ‘ज्वैल थीफ़’ का सीक्वल ‘रिटर्न ऑफ़ ज्वैल थीफ़’ का निर्माण किया, जबकि निर्देशन अशोक त्यागी का था. ‘रिटर्न ऑफ़ ज्वैल थीफ़’ की कहानी नयी हो गयी, जबकि ‘ज्वैल थीफ़’ से इसका जुड़ाव देव आनंद  अशोक कुमार के किरदारों के ज़रिए होता है. धर्मेंद्र, जैकी श्रॉफ, प्रेम चोपड़ा  सदाशिव अमरापुरकर फ़िल्म में मुख्य किरदारों में शामिल हुए. वहीं, शिल्पा शिरोडकर, अनु अग्रवाल  मधु महिला किरदारों में दिखायी दीं. ये बात अलग है कि ये सीक्वल पहली फ़िल्म के आस-पास भी नहीं ठहरता.

26 वर्ष बाद घायल वंस अगेन

1990 में आयी ‘घायल’ सनी देओल के करियर की सबसे यादगार  बेहतरीन परफॉर्मेंसेज़ में शामिल है. राज कुमार संतोषी ने फ़िल्म का निर्देशन किया था, जबकि धर्मेंद्र इसके प्रोड्यूसर थे. मीनाक्षी शेषाद्रि फ़िल्म की नायिका थीं. 2016 में सनी देओल ने इसी फ़िल्म के सीक्वल ‘घायल वंस अगेन’ के साथ बतौर निर्देशक वापसी की. सीक्वल में दिखाया गया कि सनी का भूमिका अजय मेहरा बलवंत राय का क़त्ल करने के बाद सज़ा पूरी करके कारागार से बाहर आ चुका  अब शराफ़त की जीवन गुज़ार रहा है. मगर, परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि एक बार फिर वो साजिशों के जाल में फंस जाता है. कहानी का विलेन इस बार भी एक बिज़नेस टाइकून है, जिसे नरेंद्र झा ने निभाया था. आंचल मुंजाल, सनी की बेटी के भूमिका में थीं, जबकि फ़िल्म की नायिका सोहा अली ख़ान बनीं. ये सीक्वल उतना नहीं चला, जितना पहला भाग.

श्रीदेवी की निगाहें नहीं है पहला सीक्वल

बॉलीवुड में फ़िल्मों के सीक्वल लंबे अर्से से बनते रहे हैं, लेकिन नयी सदी की आरंभ के साथ इस चलन ने स्पीड पकड़ी. साठ, सत्तर, अस्सी  नब्बे के दशकों में फ़िल्ममेकर्स सीक्वल्स बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाते थे. अगर 2000 से पहले के सिनेमा पर ग़ौर करें तो अस्सी के दशक में ‘नगीना’ का सीक्वल ‘निगाहें’ ही ज़हन में आता है. ‘नगीना’ 1986 में आयी थी, जबकि ‘निगाहें’ 1989 में रिलीज़ हुई थी.

75 वर्ष पहले आया था पहला सीक्वल

ये जानकर आप चौंक जाएंगे कि हिंदी सिनेमा में सीक्वल की आरंभ बीसवीं सदी के चौथे दशक में ही हो गयी थी. अच्छा 75 वर्ष पहले हिंदी सिनेमा में पहली सीक्वल फ़िल्म आयी थी.‘हंटरवाली’ की बेटी को इंडियन सिनेमा का पहला सीक्वल माना जाता है, जो 1943 में रिलीज़ हुई थी. ये 1935 में आयी ‘हंटरवाली का सीक्वल’ थी दोनों फ़िल्मों में फियरलेस नाडिया ने मुख्य भूमिका निभाया था, जो एक वुमन सुपर हीरो का था. ‘रंगून’ में कंगना रनौत का भूमिका फियरलेस नाडिया पर ही आधारित दिखाया गया था.

 

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