डोकलाम को तिब्बत समझने की भूल न करे चीन और 62 के ‘हैंगओवर’ से भी निकले बाहर

किंशुक प्रवल 

डोकलाम के मुद्दे पर चीन की तरफ से नई चेतावनी सामने आई है. चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि डोकलाम चीन का हिस्सा है क्योंकि उनके पास ऐतिहासिक संधि पत्र है. साथ ही ये भी कहा कि भारत को पिछले साल हुए डोकलाम के गतिरोध से सबक सीखना चाहिए. अचानक ही चीन की ये बदली हुई भाषा संदेह पैदा करती है कि क्या चीन वापस डोकलाम को दोहराने की तैयारी में है?

चीन के इस बयान में राष्ट्रपति शी चिनफिंग के उस ‘उन्मादी’ बयान का अक्स भी देखा जा सकता है जो उन्होंने चीन की संसद के समापन सत्र में दिया था. शी चिनफिंग ने चीन को अपने दुश्मनों के खिलाफ खूनी जंग लड़ने के लिए तैयार रहने के लिए कहा था. आजीवन राष्ट्रपति की ताकत हासिल कर चुके शी ने ऐलान किया था कि ‘चीन अपनी सरजमी का एक इंच भी किसी को लेने नहीं देगा.’ हालांकि शी ने किसी देश का नाम नहीं लिया. लेकिन जिन देशों के साथ चीन के सीमाई विवाद हैं उन्हें सतर्क रहने के लिए शी की ये ‘राष्ट्रवादी’ धमकी काफी है.

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अब जबकि डोकलाम का पठार भूटान का हिस्सा है उसके बावजूद विवादास्पद नक्शे के जरिए चीन 1890 की संधि का हवाला देते हुए विवाद को फिर से हवा देने का काम कर रहा है.

दरअसल चीन की ये प्रतिक्रिया भारतीय राजदूत गौतम बम्बावाले के बयान के बाद आई. भारत के राजदूत ने हांगकांग के ‘साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट’ से एक इंटरव्यू में डोकलाम विवाद के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया था. उन्होंने कहा था कि चीन ने सीमा पर यथास्थित बदलने की कोशिश की थी. जिस वजह से डोकलाम गतिरोध हुआ और चीन को ऐसा नहीं करना चाहिए.

जबकि इसके ठीक उलट चीन ने खुद की जमीन पर भारतीय सेना की घुसपैठ का आरोप लगाया था. जिस जमीन पर भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों के सड़क निर्माण का विरोध किया था वो न तो भारत का हिस्सा है और नही चीन का बल्कि भूटान के एकाधिकार का क्षेत्र है. लेकिन अब चीन ऐतिहासिक संधिपत्र का हवाला देकर भारत को ताकीद कर रहा है कि वो ऐतिहासिक संधिपत्रों को माने और पिछले एपिसोड से सबक ले.

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चीन की बदलती जुबान भविष्य के लिए आगाह कर रही है. जबकि इससे पहले इसी महीने चीन के विदेश मंत्री ने कहा था कि ‘चीनी ड्रैगन’ और ‘भारतीय हाथी’ को आपस में लड़ने की बजाए मिलजुल कर रहना चाहिए. उन्होनें ये तक कहा था कि अगर दोनों देश आपसी मतभेदों को भुलाकर अगर एक साथ आ गए तो हिमालय भी दोस्ती को नहीं तोड़ सकता है. लेकिन विडंबना यही है कि दोनों देशों के बीच सीमा के विवाद हिमालय में ही ऊंचे होते जा रहे हैं.

इस कड़ी में अब डोकलाम को लेकर चीन का पैंतरा पिछले साल के 73 दिनों के तनाव की याद दिलाने के लिए काफी हैं. सवाल उठता है कि क्या चीन डोकलाम को तिब्बत समझने की भूल कर रहा है? आखिर डोकलाम पर चीन के दावे के पीछे असली चाल क्या है?

दरअसल डोकलाम पर चीन की गिद्ध-नजर के कई रणनीतिक मायने हैं. डोकलाम में एन्ट्री पाने के बाद चीन भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर तक घुसपैठ कर सकता है. सिलिगुड़ी कॉरिडोर को चिकन नेक भी कहा जाता है जो उत्तर-पूर्व से शेष भारत को जोड़ने का इकलौता रास्ता है. रणनीतिक और सुरक्षा के लिहाज से ये कॉरिडोर भारत के लिए बेहद खास है. यही वजह है कि तिब्बत की चुंबी वैली, भूटान की हा वैली और सिक्किम से घिरे डोकलाम का भारत के लिए सुरक्षा के लिहाज से महत्व बहुत बढ़ जाता है.

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डोकलाम विवाद से सबक लेते हुए ही रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि भारत इस बार पूरी तरह से सतर्क है और चीन के किसी भी उकसावे वाले कदम का माकूल जवाब देगा. चीन की फितरत को देखते हुए ही भारत के आर्मी चीफ बिपिन रावत ने भी कहा था कि भारत को पाकिस्तान से लगी अपनी सीमा से ध्यान हटाकर अब चीन से सटी सीमा पर ध्यान देना चाहिए.

भारत ने चीन की सीमा से सटे इलाकों में सैन्य तैयारियों में इजाफा किया है और आधारभूत संरचना के निर्माण में तेजी दिखाई है. भारत सरकार ने जहां अरुणाचल प्रदेश और लेह में एडवांस्ड लैंडिंग को अपग्रेड किया तो वहीं अरुणाचल प्रदेश की दुर्गम पहाड़ियों में भारतीय सेना की टुकड़ी पहुंचाने को लेकर एयरलिफ्ट और जमीनी तैयारियों पर जोर दिया है. जम्मू-कश्मीर के लेह और लद्दाख तक रेल मार्ग को जोड़ा जा रहा है ताकि जरूरत पड़ने पर कम समय में भारतीय सेना चीन के सीमावर्ती इलाकों तक पहुंच सके.

हालांकि हाल ही में सैटेलाइट इमेज के जरिए ये दावा किया गया था कि चीन ने डोकलाम के उत्तरी हिस्से में स्थाई सैन्य प्रतिष्ठान बनाए हैं जहां दो मंजिला वॉच-टावर, 7 हैलीपैड बनाए हैं तो टैंक, मिसाइल, आर्म्ड व्हीकल्स और आर्टिलरी तक इकट्ठे कर रखे हैं. जिस पर सरकार का ये मानना है कि डोकलाम में फिलहाल यथास्थिति बरकरार है. ऐसे में भारत को इस बार बेहद सतर्कता के साथ इंतजार करने की रणनीति भी अपनानी होगी.

चीन के साथ अमेरिका के संबंधों में हाल के दिनों में कड़वाहट आई है

वहीं तिब्बत पर कब्जा कर अपनी विस्तारवादी और आक्रमणकारी नीति को आगे बढ़ाने वाले चीन को भी साल 1962 की जंग के हेंगओवर से बाहर निकलने की जरूरत है क्योंकि उसकी एक गलती ग्लोबल सुपर पावर बनने के सपने को चकनाचूर कर सकती है.

चीन ने जिस तरह से राष्ट्रपति शी चिनफिंग को दुनिया के सामने ‘दिग्विजय सम्राट’ के रूप में पेश किया है, उस आभामंडल को बरकरार रखने के लिए चीन को जमीन हड़पने की बजाए  सीमाई विवादों पर उदार मानसिकता का परिचय देना ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि तभी सोवियत संघ के बिखराव से खाली हुई जगह पर अमेरिका के बराबर दुनिया चीन को सुपर पावर दर्जा देने का मन बना सकेगी.

 

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