दो साल पहले मिली थी मंजूरी, चीन सीमा के करीब बनने वाली रेल लाइनों के लिए फंड नहीं

नई दिल्ली। चीन सीमा के करीब सामरिक लिहाज से बेहद जरूरी और प्राथमिकता वाली कई रेलवे लाइन के निर्माण के लिए भारत सरकार फंड नहीं जुटा पा रही. इस प्रोजेक्ट को दो साल पहले ही कैबिनेट ने मंजूरी दी थी, लेकिन करीब 2.1 लाख करोड़ रुपये के भारी-भरकम फंड की जरूरत को देखते हुए इसे शुरू कर पाना फिलहाल मुश्किल लग रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCS) ने दिसंबर 2015 में इस प्रोजेक्ट के तहत चार प्राथमिकता वाले रेलवे लाइन के निर्माण को मंजूरी दी थी. इसके लिए रेलवे द्वारा फिलहाल फाइनल लोकेशन सर्वे (FLS) किया जा रहा है. इनमें 378 किमी लंबा मिसामारी-तेंगा-तवांग लाइन, 498 किमी लंबा बिलासपुर-मनाली-लेह लाइन, 227 किमी लंबा पसिघाट-तेजू-रूपाई लाइन और 249 किमी उत्तर लखीमपुर-बामे-सिलापत्थर रेल लाइन शामिल हैं.

असल में रक्षा मंत्रालय ने जनवरी 2010 में सीमावर्ती इलाकों में कुल 28 रेल मार्गों के निर्माण के लिए ‘सैद्धांतिक मंजूरी’ दी थी. इनमें से 14 रेलमार्गों को सामरिक रेलमार्ग और फिर उनमें से चार को ‘प्राथमिक’ रेलमार्ग निर्धारित किया था. 14 रेलमार्गों के लिए प्रारंभिक सर्वे हो चुका है, लेकिन इन राष्ट्रीय प्रोजेक्ट पर आगे कोई काम नहीं हुआ है.

कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर की एम्पॉवर्ड कमिटी (ECBI) में इस पर कई बार चर्चा हुई, लेकिन इस मामले में अभी कुछ ठोस नहीं हो पाया है. रक्षा मंत्रालय ने केंद्रीय स्थायी समन्वय ढांचे (CPCF) में भी इस मसले को उठाया है. इस समिति में रेल मंत्रालय के प्रतिनिधि भी होते हैं.

प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार, सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण चार रेल लाइनों के निर्माण पर करीब 2.1 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा. इस लागत की व्यवस्था कहां से हो, इसके लिए वित्त मंत्रालय में व्यय सचिव के नेतृत्व में एक स्टीयरिंग कमिटी बनाई गई है. इनके निर्माण में हो रही देरी की वजह से यह भी आशंका है लागत और बढ़ जाएगी.

अभी सिर्फ सर्वे के लिए 345 करोड़ का मिला फंड

सरकारी सूत्रों का कहना है कि रेलवे ने इन लाइनों के लिए खुद का फंड लगाने से इंकार कर दिया है, क्योंकि ये यात्री या माल भाड़ा किसी भी लिहाज से फायदे का सौदा नहीं है. सीसीएस द्वारा इनके निर्माण को प्राथमिकता में रखने के बाद रक्षा मंत्रालय ने चारों लाइन के एफएलएस यानी सर्वे के लिए साल 2016-17 में 344.84 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया था.

चीन को पछाड़ देगी यह रेल लाइन

असल में ये सभी लाइन हिमालय पर्वत पर काफी ऊंचाई और दुर्गम इलाके में बनने वाली हैं. इसलिए इनको बनाने के लिए काफी व्यापक स्टडी, सर्वे करने की जरूरत है और इन पर लागत भी काफी ज्यादा आएगी. बिलासपुर-मनाली-लेह कॉरिडोर बनने के बाद दुनिया का सबसे ऊंचा रेलमार्ग हो जाएगा और यह चीन के क्विंघई-तिब्बत रेल मार्ग को पीछे छोड़ देगा.

 

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