नरेश अग्रवाल ने चले एक तीर से दो निशाने, मायावती की मुराद व् सपा को समर्थन व्यर्थ

लखनऊ। नरेश अग्रवाल के सपा छोड़कर भाजपा ग्रहण करने से मायावती के अरमानो पर एक बार फिर से पानी फिर गया है। सोशल मीडिया पर जारी है चर्चा। मायावती को बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस शर्त के साथ लोक सभा उपचुनाव में समर्थन दिया था कि राज्य सभा चुनाव में सपा बीएसपी उम्मीदवार को समर्थन देंगी। सपा की ओर से उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया परंतु सपा को भी यह  उम्मीद नही थी कि मायावती की यह मुराद पूरी नही होंगी। मायावती को अपने खेमे में मिलाने के लिए कांग्रेस ने भी मायावती को समर्थन की घोषणा कर दी थी। इसके लिये बीएसपी द्वारा कांग्रेस से भी समर्थन की अपेक्षा थी क्योंकि बिना कांग्रेस समर्थन के अंको का आंकड़ा पूरा नही हो सकता था।

राज्यसभा चुनाव में 47 विधायकों वाली सपा अपने कैंडिडेट जया बच्चन को 37 वोटों के साथ आसानी से पहुंचा देगी।  बाकी बचे 10 वोटों से वह बीएसपी कैंडिडेट को समर्थन करने जा रही थी। लेकिन नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल के बीजेपी में शामिल हो जाने से  सपा के पास अब सिर्फ 9 सदस्यो के वोट ही बचे हैं। ऐसे में भीमराव अंबेडकर का एक वोट की कमी से राज्य सभा जाना असंभव हो जायेगा।

बीएसपी अपने कैंडिडेट भीमराव आंबेडकर को राज्यसभा भेजने के लिए ये गणित बैठा रहीं थी कि बीएसपी के 19, सपा के 10, कांग्रेस के 7, राष्ट्रीय लोकदल का 1 वोट मिलाकर कुल 37 वोट बन जाते है जिससे भीमराव अंबेडकर आसानी से राज्य सभा पहुँच जाएंगे। अम्बेडकर ने भी इस प्रयोजनार्थ सभी औपचारिक्ताये पूरी कर ली थी।

अगर ये समीकरण सही है और 1 वोट से बीएसपी की लंका को आग लग सकती है। तो डील बुरी नही है। हर वो तरीका जो दुश्मन के किले में सेंध लगाये, बेहतर ही होता है। कदाचित ऐसा  लगता है कि बीएसपी और सपा के पर कतरने की वजह से ही विवादित नरेश अग्रवाल को भाजपा ने सहर्ष अपनी सदस्यता ग्रहण करा दी। नरेश अग्रवाल जे साथ ही उनके पुत्र ने भी भसजपा की सदस्यता ग्रहण की है।

 

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