नीरव मोदी की तलाश में ED को मिला फर्जीवाड़े का एक नया चेहरा

नई दिल्ली। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई, दोनों केंद्रीय जांच एजेंसियां प्रमोद कुमार मित्तल की गतिविधियों को लेकर चौकस हैं. इन जांच एजेंसियों का आरोप है कि मित्तल ने सरकारी इकाई स्टेट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसटीसी) को 2,112 करोड़ रुपए का चूना लगाया.

ईडी के अधिकारियों ने बताया कि नीरव मोदी के ठिकाने की पड़ताल करते हुए वे मित्तल के लंदन स्थित पते पर फोकस कर रहे हैं और जल्द ही उन्हें भारत वापस लाने के लिए प्रक्रिया को तेज करेंगे.

प्रवर्तन निदेशालय के एक अधिकारी ने बताया, ‘सीबीआई ने प्रमोद मित्तल और एसटीसी के बाकी अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज किया था, जिसके बाद हमने प्रमोद मित्तल को तीन बार समन जारी किया था. हमने पिछले कुछ सालों में इस शख्स की तकरीबन 244 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की थी. बहरहाल, उनकी खोज के लिए सर्कुलर जारी किया गया है. साथ ही, मित्तल के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी होने के लिए हम सीबीआई के साथ भी मिलकर काम करेंगे.’

2007 में ही सीबीआई ने दर्ज किया था केस

सीबीआई ने मित्तल और एसटीसी के 19 अफसरों के खिलाफ आपराधिक साजिश और फर्जीवाड़ा मामले में मार्च 2007 में केस दर्ज किया था. इसके बाद, ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (पीएमएलए) के तहत मामला दायर किया था. दोनों एजेंसियों ने प्रमोद मित्तल को समन जारी किया था.

हालांकि, वह  पूछताछ के लिए जांचकर्ताओं के सामने पेश नहीं हुए. प्रमोद मित्तल दुनिया भर में जानेमाने स्टील कारोबारी लक्ष्मी मित्तल के छोटे भाई हैं. साल 2013 में ऐसी खबरें आई थीं कि प्रमोद मित्तल ने बार्सिलोना में अपनी बेटी की शादी में 500 करोड़ रुपए खर्च किए.

सीबीआई ने आरोप लगाया है कि आइल ऑफ मैन में रजिस्टर्ड मित्तल की कंपनी ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर होल्डिंग्स लिमिटेड (जीआईएचएल) ने एसटीसी से संपर्क कर वित्तीय सुविधा मुहैया कराने को लेकर मदद मांगी. कंपनी ने फिलीपींस और बोस्निया में खरीदे गए अपने नए स्टील प्लांट्स के लिए जरूरी कच्चे माल की खरीद के लिए लेटर्स ऑफ क्रेडिट तैयार करने की बात कही.

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ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर होल्डिंग्स लिमिटेड (जीआईएचएल) को ग्लोबल स्टील होल्डिंग्स लिमिटेड (जीएसएचएल) के नाम से भी जाना जाता है.

उस वक्त फिलीपींस में मौजूद भारत के राजदूत ने एसटीसी को बताया था कि दूतावास कंपनी के वित्तीय पहलुओं और दायित्वों के बारे में टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं है. राजदूत ने एसटीसी के हितों की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस सिलसिले में व्यापक जांच और पूछताछ के जरिए इस सरकारी कंपनी को अपने स्तर पर भी जानकारी हासिल करने की सलाह दी थी.

हालांकि, एसटीसी के अधिकारियों ने इस चेतावनी और सलाह को नजरअंदाज कर दिया और प्रमोद कुमार मित्तल की कंपनी के साथ डील की फंडिंग के लिए प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई. इस कारण से इन अधिकारियों को भी सीबीआई के प्रकोप का सामना करना पड़ा.

एसटीसी के अधिकारियों-तत्कालीन महाप्रबंधक बी डी मजूमदार, तत्कालीन डायरेक्टर, मार्केटिंग के के सूद और तत्कालीन डायरेक्टर, फाइनेंस ने प्रबंधन समिति के पास प्रस्ताव पेश किया. इस समिति में कंपनी के तत्कालीन चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ अरविंद पंडलाई भी थे. समिति ने 7 जनवरी 2005 को हुई 225वीं बैठक में प्रस्ताव को मंजूरी के लिए निदेशक मंडल के बोर्ड के सामने पेश करने का निर्देश दिया.

सीबीआई के आरोपों के मुताबिक, सूद की तरफ से बोर्ड नोट तैयार किया गया. हालांकि, बोर्ड को मर्चेंट और इंटरमीडिएट व्यापार सौदों के सिलसिले में रिजर्व बैंक के दिशा-निर्देशों के बारे में जानकारी नहीं दी गई. सीबीआई ने कहा, ‘बोर्ड ने 27 जनवरी 2005 की बैठक में थर्ड पार्टी सौदों को सैद्धांतिक तौर पर मंजूरी दे दी और सभी अधिकारियों का इस्तेमाल करने के लिए सीएमडी (एफआईआर में नामजद) को अधिकृत कर दिया. मसलन जरूरी पड़ने पर कॉरपोरेशन के हित में प्रोजेक्ट पर बेहतर तरीके से अमल और सुचारू रूप से इसका कामकाज सुनिश्चित करने के लिए फैसले लेने का अधिकार भी सीएमडी को दिया गया. बोर्ड ने प्रोजेक्ट के रोज-ब-रोज के कामकाज के लिए संबंधित डायरेक्टर/सीजीएम तो अधिकार देने की खातिर भी सीएमडी को अधिकृत किया.’

समझौते में संशोधन कर खुद के लिए अनुचित सहूलियत हासिल की

इस संबंध में समझौते पर आखिरकार अप्रैल 2005 में दस्तखत हुए. इसके बाद सितंबर 2005 में मूल समझौते में संशोधन किया गया. इसके तहत कंपनी को बकाया चुकाने के लिए और समय की इजाजत दी गई. हालांकि, इससे एसटीसी का वित्तीय जोखिम बढ़ गया. सीबीआई ने बताया कि चूंकि भुगतान तैयार सामान को बिक्री से जुड़ा था, लिहाजा एसटीसी का फंड ब्लॉक हो गया.

सीबीआई ने आरोप लगाया है, ‘भुगतान के नए सिस्टम के कारण सहयोगी इकाइयों (जीएसपीआई और जीएसएचएल) को अपने कामकाज के लिए लंबे समय तक फंड की सहूलियत हो गई और इन कंपनियों के पास एसटीसी की बकाया रकम के भुगतान का दबाव नहीं रहा.

अप्रैल 2005 से एसटीसी द्वारा सप्लायर्स के पक्ष में लेटर्स ऑफ क्रेडिट (एलसी) खोले गए. पहला एलसी नंबर 5174 9 जून 2005 को खोला गया, जिसका मूल्य 73,83872 अमेरिकी डॉलर था और आखिरी एलसी मई 2010 में खोला गया.भुगतान में डिफॉल्ट के कारण बकाया रकम में हर साल बढ़ोतरी के बाावजूद एसटीसी अधिकारियों ने जीएसपीआई और जीएसएचएल के प्रतिनिधियों के साथ साजिश कर नए लेटर्स ऑफ क्रेडिट खोले.

बाजार की खराब हालत और वैश्विक मंदी के कारण 2008 में जीएसपीआई के प्लांट का ऑपरेशन 2008 में बंद हो गया. 31 मार्च 2009 को 729 करोड़ रुपए का बकाया था. हालांकि, एसटीसी के अधिकारियों ने इस बात को नजरअंदाज किया कि जीएसपीआई की तरफ से बकाया रकम का भुगतान नहीं किया जा रहा है और बाजार की हालात खराब है.

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इन तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद एसटीसी के अफसर इस कंपनी के प्रतिनिधियों के साथ साजिश रच कर मई 2009 तक और फंडिंग मुहैया कराते रहे. यह सिलसिला मई 2010 तक चलता रहा. जाहिर तौर पर इस वजह से एसटीसी का वित्तीय जोखिम और बढ़ गया.’

सीबीआई का दावा है मित्तल ने सितंबर 2011 में एसटीसी के तत्कालीन सीएमडी एन. के. माथुर को चिट्ठी लिखकर भुगतान का तरीका, समयसीमा, ब्याज की रकम और बकाया रकम हासिल करने के तौर-तरीके तय करने के लिए समझौते की पेशकश की थी.

मित्तल ने किया शर्तों का भी किया उल्लंघन, चेक भी बाउंस कर गए

सीबीआई ने बताया, ‘इस मसले के हल के लिए 15 नवंबर 2011 को हुए समझौते के वक्त जीएसपीआई और जीएसएचएल के चेयरमैन प्रमोद कुमार मित्तल ने पर्सनल गारंटी दी और लिखित में यह भी दिया कि वह जेएसडब्ल्यू इस्पात स्टील लिमिटेड में प्रतिभूतियों के तौर पर मौजूद अपने निवेश की बिक्री या ट्रांसफर नहीं करेंगे और न ही इसे गिरवी रखेंगे, जिसकी कुल वैल्यू 38,96,27,333 डॉलर थी.

हालांकि, एसटीसी के तत्कालीन सीजीएम बी डी मजूमदार ने जीएसपीआई और जीएसएचल के साथ साजिश में शामिल होते हुए एसटीसी के पक्ष में प्रतिभूतियों को सुरक्षित रखने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. नतीजतन, प्रमोद कुमार मित्तल ने एसटीसी को चूना लगाया. इस शख्स ने एसटीसी की जानकारी के बिना प्रतिभूतियों की बिक्री और ट्रांसफर किया और इस संबंध में मामला अदालत में लंबित है.’

जांच एजेंसी के मुताबिक, एसटीसी के अधिकारियों ने मित्तल की कंपनी के साथ मिलकर प्रोजेक्ट स्थल पर स्टॉक में गड़बड़ी की. मई 2012 में ‘एक और सेटलमेंट समझौते’ को लागू करने की कोशिश की गई. नवंबर 2012 में जीएसपीआई और जीएसएचएल पर कुल बकाया रकम 37.1 करोड़ डॉलर थी. हालांकि, चेक बाउंस कर गए.

जांच एजेंसी ने दावा किया, ‘प्रमोद मित्तल ने भरोसा तोड़ते हुए नियमों का उल्लंघन किया. वह समझौते की शर्तों के मुताबिक एसटीसी को भुगतान करने में नाकाम रहे. बकाया राशि के एवज में जीएसएलएल और जीएसपीआई द्वारा दिए गए चेक बाउंस हो गए, जिस संबंध में मामला अदालत में लंबित है.’

भारत में मित्तल का ज्यादातर बिजनेस तकरीबन ठप पड़ा है. हालांकि, वह गॉन्टेरमन-पीपर्स (इंडिया) लिमिटेड के गैर-कार्यकारी निदेशक बने हुए हैं. कंपनी के एक सीनियर अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर फर्स्टपोस्ट को बताया कि उन्होंने बोर्ड की बैठकों में प्रमोद मित्तल को नहीं देखा है और चूंकि गॉन्टेरमन इस मामले से जुड़ी नहीं है, लिहाजा वह इस पर आधिकारिक बयान देने की हालत में नहीं हैं. अधिकारी का कहना था, ‘मुमकिन है कि वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये कंपनी की बैठकों और अन्य कामकाज में शामिल हो रहे हों. मुझे उनके ठिकाने के बारे में कुछ पता नहीं है.’

 

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