न्यायपालिका में सरकार के हस्तक्षेप को लेकर फुल कोर्ट में हो चर्चा, जस्टिस चेलमेश्वर ने CJI को लिखा पत्र

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस चेलमेश्वर ने देश के मुख्य न्यायधीन जस्टिस दीपक मिश्रा से एक फुल कोर्ट (पूर्ण पीठ) मीटिंग बुलाने की मांग की है. इस संदर्भ में जस्टिस चेलमेश्वर ने पिछले सप्ताह सीजेआई के एक पत्र भी लिखा था. जस्टिस चेलमेश्वर की मांग है कि फुल कोर्ट यह निर्णय ले कि जजों की नियुक्ति वाले कॉलेजियम सिस्टम को नजरअंदाज करके हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति में सरकार का हस्तक्षेप कितना उचित है.  उन्होंने कहा कि अभी तक उन्हें उनके पत्र का जवाब नहीं मिला है.

जस्टिस चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस के नाम लिखी 5 पेज की अपने पत्र की कॉपी सुप्रीम कोर्ट के 22 और जजों को भी भेजी है. 21 मार्च को लिखे गए इस पत्र में जस्टिस चेलमेश्वर ने लिखा है कि कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों को चुनने में सरकार पक्षपाती रवैया अपना रही है. उन्होंने लिखा है कि सरकार जिन नामों से असहज महसूस कर रही है उन्हें वह या तो नजरअंदाज कर रही है या टाल रही है. जस्टिस चेलमेश्वर ने लिखा है कि यह तरीका न्यायपालिक की स्वतंत्रता को प्रभावित कर रहा है.

‘मुझे लगता है कि अब यह मामला फुल कोर्ट में विचार करने योग्य है, यदि यह संस्था(सुप्रीम कोर्ट) पूरी तरह से संविधान की योजना में किसी भी तरह प्रासंगिक है. उन्होंने कहा हमें नहीं भूलना चाहिए कि न्यायपालिका और सरकार के बीच किसी तरह की सांठगांठ लोकतंत्र की हत्या का सूचक है.  हमें यह कहना चाहिए कि हम दोनों ही एक दूसरे के प्रहरी है, ना कि एक दूसरे के प्रशंसक.  ‘

न्यायिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘ हम सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर कार्यपालिका के बढते अतिक्रमण के सामने अपनी निष्पक्षता और अपनी संस्थागत ईमानदारी खोने का आरोप लग रहा है.’’

सीजेआई द्वारा मामलों के आवंटन पर तीन अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ 12 जनवरी को अभूतपूर्व प्रेस कांफ्रेंस करने वाले न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा नामों की सिफारिश के बाद भी सरकार के फाइलों पर बैठे रहने को लेकर‘‘ नाखुशी वाले अनुभव’’ का जिक्र किया. उन्होंने सीजेआई से इस मुद्दे पर पूर्ण पीठ बुलाकर न्यायपालिका में कार्यपालिका के हस्तक्षेप के विषय पर गौर करने को कहा. उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के नियमों के तहत प्रासंगिक बना रहे.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के चार जजों द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद सुर्खियों में आए देश के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के सामने एक बार फिर मुश्किल खड़ी हो सकती हैं. कांग्रेस उनके खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी कर रही है. कांग्रेस ने अन्य विपक्षी दलों को इस महाभियोग का प्रस्तावित ड्राफ्ट भेजा है. एनसीपी ने महाभियोग के इस प्रस्ताव की पुष्टि भी की है. एनसीपी के नेता डीपी त्रिपाठी ने बताया कि कई विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर भी किए हैं. उन्होंने बताया कि एनसीपी और लेफ्ट पार्टियों ने इस प्रस्ताव पर अपनी मंजूरी भी दे दी है.

काफी समय से हो रही थी तैयारी
सीजेआई के खिलाफ महाभियोग को लेकर विरोधी दलों में पिछले कई दिनों से चर्चा चल रही थी. इस प्रस्ताव को संसद में लाने के लिए कांग्रेस ने कई दलों से बातचीत भी की थी. तृणमूल कांग्रेस, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, टीएमसी और सीपीआईएम सहित कई विपक्षी दलों के नेताओं ने इस मुद्दे पर चर्चा भी की थी. सूत्रों से जानकारी मिली है कि इस प्रस्ताव को राज्यसभा में पेश किया जाएगा. राज्यसभा में पेश करने की वजह बताई जा रही है कि प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 50 सांसदों की सहमति की जरूरत होती है और लोकसभा में विपक्ष के पास यह आंकड़ा नहीं है. राज्यसभा में विपक्ष मजबूत है, इसलिए महाभियोग के इस प्रस्ताव को राज्यसभा में लाया जाएगा.

क्या है वजह
महाभियोग के प्रस्ताव में सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने जो आरोप लगाए थे, उन्हें आधार बनाया जा रहा है. आरोप है कि वरियता के क्रम में काम नहीं दिए जाने से नाराज हुए वरिष्ठ जजों के मुद्दे को सुलझाने में दीपक मिश्रा पूरी तरह विफल रहे हैं.

सीजेआई के खिलाफ जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस
इस साल 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने पहली बार प्रेस कॉन्‍फ्रेंस करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर आरोप लगाए थे. न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ ने प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा द्वारा मामलों के आवंटन समेत कई मामले उठाए थे. जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि ‘हम चारों ने प्रधान न्यायाधीश से मुलाकात की और संस्था को प्रभावित करने वाले मुद्दे उठाए.’

जजों ने लगाए आरोप
सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने दीपक मिश्रा के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाए थे. इसके लिए उन्होंने एक चिट्ठी भी लिखी थी. चीट्ठी में कहा गया था कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा उस उस परंपरा से बाहर जा रहे हैं, जिसके अंतर्गत अहम मामलों में फैसले सामूहिक तौर पर लिए जाते रहे हैं. केसों के बंटवारे में चीफ जस्टिस नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की अखंडता को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण मामलों को मुख्‍य न्‍या‍याधीश बिना किसी वाजिब कारण के अपनी प्रेफेरेंस (पसंद) की बेंचों को सौंप देते हैं. इससे संस्थान की छवि बिगड़ी है.

 

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