पश्चिम बंगाल: ‘पहले माओवादी हमारे खून के प्यासे थे, अब TMC वाले हैं’

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया के सुपर्दी गांव में बैकुंठो महतो और भिबूती सिंह सरदार की याद में सीपीएम के दो झंडे लहरा रहे हैं. इन दोनों सीपीएम नेताओं की माओवादियों ने 23 अप्रैल 2009 में गोली मारकर हत्या कर दी थी. पिछले साल 10 किमी दूर दावा गांव में सीपीएम कार्यकर्ता सशधर कुमार की हत्या कर दी गई थी.

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक करीब एक दशक के बाद फिर एक बार वैसा ही इतिहास दोहराया गया है. बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई है. पहले 18 साल के दलित त्रिलोचन महतो की पेड़ से लटकती लाश मिली थी, उसके बाद 30 साल के दुलाल कुमार का शव हाई टेंशन पोल से लटका मिला. बीजेपी ने टीएमसी पर इन हत्याओं का आरोप लगाया है.

सीपीएम के शासन के तरीकों से तंग आकर लोगों ने ममता बनर्जी को सत्ता सौंपी. हालांकि ऐसा माना जाता है कि इसके बाद सारे दबंग सीपीएम कार्यकर्ता टीएमसी में शामिल हो गए. इसी का नतीजा है कि राज्य में राजनीतिक हिंसा जारी रही. एक रिपोर्ट के मुताबिक 2001 से लेकर 2016 की बीच सबसे ज्यादा 2009 में राजनीतिक कारणों से 50 लोगों की हत्या की गई थी. इसके बाद 2011 में ममता बनर्जी के नेतृत्व में सरकार बनी, लेकिन हत्याएं नहीं रुकीं. 2011 में 38 लोगों की हत्याएं की गई. हालांकि 2015 और 2016 में एक-एक हत्या के मामले हैं.

त्रिलोचन महतो और दुलाल कुमार की दोनों हत्याओं ने पुरुलिया के बलरामपुर ब्लॉक में पुराने जख्म को हरा कर दिया है. एक समय था जब इन गांवों में लोग माओवादी हिंसा का शिकार होते थे. बता दें कि केंद्र ने हाल ही में जनजातीय वर्चस्व वाले क्षेत्र पुरुलिया को माओवादी सूची से बाहर किया था.

राजकिशोर महतो कहते हैं कि वे बैकुंठो महतो और भिबूती सिंह सरदार के साथ थे, जब उन्हें मारा गया था. हम एक गांव मेला में बात कर रहे थे. मेरे साथ एक तंगी (स्थानीय हथियार) था. माओवादियों ने हमला किया और उन्हें मार डाला. उन्होंने मुझे अपने हथियार को नीचे रखने के लिए कहा. इसके बाद उन्होंने मुझे भी गोली मार दी. तब मैं सीपीएम कार्यकर्ता था.

बैकुंठो महतो के भतीजे ने कहा कि वे पहले सीपीएम के साथ थे. इसके चलते माओवादी उनके पीछे पड़ गए थे और जीवन बर्बाद कर दिए थे. अब हम बीजेपी में शामिल हो गए हैं, तो टीएमसी हमारे जीवन को बर्बाद कर रही है. उन्होंने कहा,’टीएमसी तो माओवादियों से ज्यादा खतरनाक है.’

ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी सरकार के 2011 में सत्ता में आने के बाद राज्य में माओवादी हिंसा खत्म हो गई है, लेकिन विरोधी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर हमले कम नहीं हुए.

बीजेपी के भूतनाथ कुमार जिन्होंने दावा से ग्राम पंचायत सीट जीती थी. उन्होंने कहा कि सीपीएम के दौर में माओवादी इस क्षेत्र पर हावी थे. माओवादियों की जगह अब टीएमसी ने कब्जा कर लिया है. कुछ माओवादी आत्मसमर्पण करके उनसे जुड़ गए. मैं सीपीएम के साथ था तब भी मुझे टीएमसी से खतरे का सामना करना पड़ता था.

 

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