फैक्ट चेक: पेट्रोल से आपकी जेब में किसने आग लगाई- UPA ने या NDA ने?

नई दिल्ली। पेट्रोल के दाम आसमान छूने पर बहस जैसे-जैसे तीखी होती जा रही है, वैसे ही लोगों की राय भी बंटी नजर आती है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है? पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम का दावा है कि केंद्र सरकार चाहती तो पेट्रोल के दाम 25 रुपए प्रति लीटर तक कम कर सकती थी अगर ये क्रूड ऑयल की कम कीमतों का लाभ आम आदमी को देना चाहती.

बीजेपी समर्थकों ने इस पर पलटवार में कहा कि असल में ये यूपीए सरकार थी, जिसने अपने दस साल के शासन में पेट्रोल की कीमतों से लोगों की जेब में आग लगाई. सोशल मीडिया पर तस्वीर फैलाई जा रही है जिसमें यूपीए और बीजेपी की सरकारों के रहते पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी की तुलना दिखाई गई है. बीजेपी समर्थक तस्वीर के जरिए कहना चाहते हैं कि यूपीए के वक्त पेट्रोल के दाम कहीं ज्यादा तेजी से बढ़े थे.

ये संदेश कहता है- ‘असुविधाजनक तथ्य’-  2014-18 के बीच पेट्रोल के दाम हर साल 90 पैसे ही बढ़े. जबकि यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में पेट्रोल हर साल औसतन 4 रुपए बढ़े. औरों के साथ बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने भी  ग्राफिक्स के साथ संदेश को ट्वीट किया.

पहली नजर मे देखें तो डेटा बड़ा आसान और असरदार लगता है. लेकिन जब इसका गहराई से विश्लेषण किया गया तो सामने आया कि दावा ना सिर्फ भ्रामक है बल्कि आधा ही सच है. पेट्रोल की कीमतें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती हैं लेकिन बीजेपी के संदेश में पेट्रोल की कीमतें देते हुए किसी शहर का हवाला नहीं दिया गया है.

तुलना के लिए हमने दिल्ली में पिछले 14 साल में पेट्रोल की कीमतों के उतार-चढ़ाव का विश्लेषण किया. पेट्रोलियम मंत्रालय से जुड़े पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल से क्रूड ऑयल की कीमतें और पेट्रोल की रिटेल कीमतों का डेटा लिया गया.

मई 2004 में यूपीए 1 जब सत्ता में आया और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 33.71 रुपये प्रति लीटर थी. वहीं नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में जब सत्ता संभाली तो पेट्रोल दिल्ली में 71.41 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था. यानी पेट्रोल की कीमत दस साल के अंतराल में तब 38 रुपये बढ़ चुकी थी. इसका मतलब यूपीए के कार्यकाल में पेट्रोल की कीमत हर साल औसतन 3.80 रुपए प्रति लीटर बढ़ी. यहां तक तो अमित मालवीय का दावा सही लगता है.

लेकिन पेट्रोल की रिटेल कीमतों को अलग करके देखना अपने आप में ही विसंगति है पेट्रोल और डीजल की कीमतें तय करने में दो चीज़ें अहम होती हैं- क्रूड ऑयल (कच्चे तेल) की कीमतें और केंद्र और राज्य सरकारों के टैक्स. अगर टैक्सों को ना बदला जाए तो पेट्रोल और डीजल की कीमतें सीधे सीधे क्रूड ऑयल की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव की तरह ही ऊपर-नीचे होंगी. टैक्स जहां केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से तय किए जाते हैं वहीं क्रूड ऑयल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार और करंसी के एक्सचेंज रेट पर निर्भर करती हैं जिन पर सरकार का खास नियंत्रण नहीं होता.

ऐसे में किसी वक्त में पेट्रोल की रिटेल कीमतों का सही आकलन तभी किया जा सकता है जब उस वक्त की क्रूड ऑयल की कीमतों को भी ध्यान में रखा जाए. इसके लिए हमने बीते 14 साल में क्रूड ऑयल की क्या क्या कीमतें रहीं, उनका भी अध्ययन किया. इसमें यूपीए के दोनों कार्यकाल और मोदी सरकार का चार साल का कार्यकाल भी शामिल है.

क्रूड ऑयल की कीमतें पूरे वित्त वर्ष में हर दिन की कीमतों के औसत के आधार पर निकाली गईं. साथ ही अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपये की एक्सचेंज दर का भी ध्यान रखा गया. इसी तरह दिल्ली में पेट्रोल की रिटेल कीमतों का पूरे साल के लिए भी औसत निकाला गया.

इन दो इनपुट्स के आधार पर तैयार किए गए ग्राफ की तुलना से सही तस्वीर सामने आती है कि किस तरह यूपीए और मोदी सरकार ने पेट्रोल की कीमतों को हैंडल किया. अगर दो ग्राफ को देखा जाए तो पहले सफेद ग्राफ में क्रूड ऑयल की कीमतें दिखाई गईं है और दूसरे भूरे ग्राफ में पेट्रोल की रिटेल कीमतें दिखाई गई हैं. अगर टैक्स एक समान होते तो आपको ग्राफ की दो लाइन भी एक जैसे ही पैटर्न में दिखतीं….

बीते 14 साल में क्रूड ऑयल की कीमतें 2004 में सबसे कम थीं जब यूपीए सत्ता में आया था लेकिन यूपीए 2 के कार्यकाल में ये 112 डॉलर प्रति बैरल के ऊंचे स्तर पर भी गया. (यहां पूरे साल की औसत कीमत की बात की जा रही है. जब क्रूड की कीमत 112 डॉलर प्रति बैरल के ऊंचे स्तर तक भी गई तो भी पेट्रोल की रिटेल कीमत 65.76 रुपये प्रति लीटर ही रही.

पेट्रोल कीमत अब 77 रुपये के सबसे ऊंचे स्तर को छू रही है जब क्रूड ऑयल की कीमत 86 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रही है. ये अब भी क्रूड की औसतन सबसे ज्यादा कीमत 112 डॉलर से 25 फीसदी कम है. क्रूड की सबसे ज्यादा कीमत का मनमोहन सिंह सरकार को 2011-12 में सामना करना पड़ा था.

ग्राफ से साफ है कि क्रूड ऑयल की कीमतें (सफेद लाइन) मोदी सरकार का कार्यकाल शुरू होने के बाद नीचे गिरना शुरू हो गई थी. 2015-16 में ये 46 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक नीचे आ गई थी. लेकिन मोदी सरकार ने पेट्रोल की रिटेल कीमतों को समान स्तर पर बनाए रखने का फैसला किया. इसके लिए पेट्रोल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क लगातार बढ़ाया जाता रहा. 9.48 रुपए प्रति लीटर से ये बढ़कर जनवरी 2016 में 21.48 रुपये प्रति लीटर के सर्वोच्च स्तर तक पहुंच गया. जब क्रूड ऑयल की कीमतों ने फिर बढ़ना शुरू किया तो उत्पाद शुल्क को 4 अक्टूबर 2017 को दो रुपये प्रति लीटर घटा दिया गया. तब से ये 19.48 रुपये प्रति लीटर के स्तर पर बना हुआ है.

यूपीए 2 कार्यकाल खत्म होने के बाद बीते चार साल की बात की जाए तो पेट्रोल में उत्पाद शुल्क 126%  और डीजल पर 330% बढ़ा है.

हालांकि पेट्रोल पर टैक्स लगाकर कमाई करने के मामले में राज्य सरकारें भी केंद्र सरकार से पीछे बिल्कुल नहीं रहीं. दिल्ली की बात करे तो हालत ये है कि मार्च 2010 में जो वैट 12.5 प्रतिशत था वो अब बढ़ता-बढ़ता 27 फीसदी तक पहुंच चुका है. दिल्ली तो उन राज्यों में शुमार है, जो सिर्फ पेट्रोल पर ही वैट नहीं वसूलते बल्कि डीलर को मिलने वाले कमीशन पर भी अलग से वैट लगाकर कमाई करते हैं.

ऐसे में जो कोई भी आपसे ये कहता है कि बीते चार साल में पेट्रोल की कीमतें 90 पैसे प्रति वर्ष की दर से बढ़ी हैं तो वो आपको अर्धसत्य ही बताता है. असुविधाजनक तथ्य ये है कि अगर मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद केंद्रीय उत्पाद शुल्क को ज्यादा ना बदला होता तो क्रूड ऑयल की मौजूदा कीमतों के हिसाब से दिल्ली में अब भी पेट्रोल के लिए लोगों को जेब से 65 रुपए प्रति लीटर ही ढीले करने पड़ते.

 

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