बजा कर्नाटक का बिगुल, सिद्धारमैया के ये 5 गेमप्लान क्या होंगे कारगर?

बेंगलुरु\नई दिल्ली। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के सियासी बिगुल बज गया है. राजनीति दल राज्य की राजनीतिक बाजी जीतने के लिए समीकरण सेट करने में जुट गए हैं. बीजेपी सत्ता में अपनी वापसी के लिए बीएस येदियुरप्पा के चेहरे को आगे करके उतरी है. जबकि कर्नाटक में कांग्रेस का चेहरा पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी नहीं बल्कि सीएम सिद्धारमैया खुद हैं.

सिद्धारमैया राज्य में अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए एक के बाद एक सियासी बिसात बिछाने में जुटे हैं. कांग्रेस ने राज्य में पांच गेम प्लान बनाए हैं, जिनमें बीजेपी पूरी तरह फंस गई है और कर्नाटक की जंग उसके लिए इतनी आसान नहीं दिख रही है.

1. लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग को मानकर मास्टरस्ट्रोक चला है. लिंगायत समुदाय के लोग लंबे समय से मांग कर रहे थे कि उन्हें हिंदू धर्म से अलग धर्म का दर्जा दिया जाए. कर्नाटक सरकार ने नागमोहन समिति की सिफारिशों को स्टेट माइनॉरिटी कमीशन एक्ट की धारा 2डी के तहत मंजूर कर लिया. अब इसकी अंतिम मंजूरी के लिए गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया है.

सूबे में लिंगायत समुदाय की करीब 18 फीसदी आबादी किंगमेकर मानी जाती है. येदियुरप्पा के लिंगायत समुदाय से आने के चलते बीजेपी का ये मजबूत वोटबैंक माना जाता है. ऐसे में कांग्रेस ने अलग धर्म का दर्जा देकर सेंधमारी की कोशिश की है. बीजेपी का विरोध लिंगायत की नाराजगी की वजह बन सकता है.

2. कांग्रेस के संग मजबूत मुस्लिम वोटबैंक

कर्नाटक में मुसलमानों की आबादी करीब 13 फीसदी है. इस वोटबैंक पर कांग्रेस की मजबूत पकड़ मानी जाती है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अपने पांच साल के कार्यकाल में मुसलमानों को बकायदा साधे रखा है. उत्तर कर्नाटक में मुस्लिमों का बाहुल्य है. खासकर गुलबर्गा, बिदर, बीजापुर, रायचुर और धारवाड़ जैसे इलाकों में मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में रहता है. राज्य विधानसभा की कुल 224 सीटों में से करीब 60 पर मुस्लिम वोटरों का प्रभाव माना जाता है. दक्षिण कन्नड़, धारवाड़, गुलबर्गा वो इलाके हैं जहां 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं. खास बात ये भी है कि यहां शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम ज्यादा संख्या में हैं. शहरी क्षेत्रों में करीब 21 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 8 फीसदी मुस्लिम जनसंख्या है.

सिद्धारमैया लगातार आरएसएस और बीजेपी की तीखी आलोचना करके मुसलमानों का दिल जीतने में लगे हैं. पिछले दिनों उन्होंने बीजेपी, आरएसएस और बजरंग दल को आतंकवादी बताया था. इतना ही नहीं वो महाभारत का जिक्र करते हुए बीजेपी की तुलना कौरवों से कर चुके हैं. इसके अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सिद्धारमैया दोनों नेता राज्य में मुस्लिम धार्मिक स्थलों पर भी बकायदा जा रहे हैं.

3. कर्नाटक का अलग झंडा

कर्नाटक विधानसभा चुनाव की सियासी बाजी अपने नाम करने के लिए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. क्षेत्रियता का मुद्दा दक्षिण भारत में काफी अहमियत रखता है. सिद्धारमैया ने इस बात को बखूबी समझते हुए कर्नाटक के लिए एक अलग झंडे का डिजाइन राज्य कैबिनेट से पास कराया है. अब वह इसे संवैधानिक मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया है. लाल, सफेद और पीले रंग की पट्टी से बने इस ध्वज को ‘नाद ध्वज’ नाम दिया गया है. इस झंडे के बीच में राज्य के प्रतीक दो सिर वाला पौराणिक पक्षी ‘गंधा भेरुण्डा’ बना हुआ है.

4. कांग्रेस का जातीय समीकरण

सिद्धारमैया ने कर्नाटक में अपना किला बचाने के लिए जातीय समीकरण को बेहतर तरीके से साधने की कवायद की है. बीजेपी के लिंगायत वोटबैंक में सेंध लगाया. खुद ओबीसी समुदाय के होने के नाते सूबे को पिछड़े समुदाय के वोटबैंक पर अच्छी खासी पकड़ है. सूबे में करीब 40 फीसदी के ऊपर ओबीसी समुदाय है. इसके अलावा राज्य के 20 फीसदी दलित वोट को साधने की कवायद कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खडगे कर रहे हैं. खडगे कांग्रेस का दलित चेहरा हैं और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता. इसके अलावा सूबे का 13 मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के साथ एकजुट है.

5. कावेरी पर फैसले से किसानों को जोड़ा

कर्नाटक को कावेरी नदी का ज्‍यादा पानी देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने सिद्धारमैया की सियासी राह को और असान कर दिया है. कावेरी बेल्‍ट के जिलों में कांग्रेस को इसका राजनीतिक फायदा मिलेगा. कावेरी पर फैसले से किसानों को कांग्रेस अपने नजदीक लाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा सिद्धारमैया अपने पांच साल के कार्यकाल में किसानों को लेकर काफी मेहरबान रहे हैं. राज्य के किसानों के 50 हजार रुपए तक का कर्ज माफ किया. सिद्धारमैया ने इस बार के बजट में सिंचाई सुविधा रहित किसानों की मदद के लिये ‘रैयत बेलाकू’ योजना की भी घोषणा की है, जिसमें वर्षा पर निर्भर खेती करने वाले प्रत्येक किसान को अधिकतम 10,000 रुपये और न्यूनतम 5,000 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से राशि की सहायता सीधे उनके बैंक खातों में डाली जाएगी. इससे करीब 70 लाख किसानों को इसका लाभ मिलने की संभावना है.

 

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