बसपा परिवारवाद से रहेगी मुक्त, पार्टी के संविधान में किए अहम बदलाव

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने पार्टी को परिवारवाद से मुक्त रखने के लिए इसके संविधान में अहम बदलाव किए हैं. अब बसपा का जो भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाएगा, उसके जीते-जी व उसके न रहने के बाद भी उसके परिवार के किसी भी नजदीकी सदस्य को पार्टी संगठन में किसी भी स्तर के पद पर नहीं रखा जाएगा.

बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पार्टी संविधान में कई महत्वपूर्ण संशोधन करके पार्टी को परिवारवाद आदि से मुक्त रखने के संकल्प की घोषणा पार्टी की आल-इंडिया बैठक में की. लखनऊ में शनिवार को हुई इस बैठक में मायावती ने कहा है कि उनके समेत उनके बाद अब आगे भी बीएसपी का जो भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेगा उसके जीते-जी और उसके न रहने पर भी उसके परिवार के किसी भी नजदीकी सदस्य को पार्टी संगठन में किसी भी पद पर नहीं रखा जाएगा. उसके परिवार के सदस्य साधारण कार्यकर्ता के रूप में ही निःस्वार्थ भावना से पार्टी में कार्य कर सकेंगे.

बीएसपी के नए संविधान के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष यदि ज्यादा उम्र होने पर पार्टी में फील्ड का कार्य करने में खुद को कमजोर महसूस करता है तो तब फिर उसकी सहमति से उसे पार्टी का राष्ट्रीय संरक्षक नियुक्त कर दिया जाएगा. उसकी सलाह पर ही बीएसपी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष कार्य करेगा.

बीएसपी में ’नेशनल कोआर्डिनेटर’ की नियुक्ति की व्यवस्था भी की गई है. पहले चरण में इस द पर दो नेताओं वीर सिंह एडवोकेट और जयप्रकाश सिंह की नियुक्ति की गई है. इसी क्रम में पार्टी संगठन में कई बदलाव करते हुए नई जिम्मेदारियों की घोषणा भी की गई है. यूपी के लिए आरएस कुशवाहा को पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया  गया है. निवर्तमान अध्यक्ष राम अचल राजभर को राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है. कुछ राज्यों के लिए कोऑर्डिनेटरों की भी नियुक्ति की गई है. लालजी वर्मा छत्तीसगढ़ के और अशोक सिद्धार्थ दक्षिण भारत के तीन राज्यों के कोआर्डिनेटर नियुक्त किए गए हैं.

चुनावी गठबंधन को लेकर भी बीएसपी ने अपनी नई नीति बनाई है. अब पार्टी किसी भी राज्य में और किसी भी चुनाव में किसी भी दल के साथ केवल सम्मानजनक सीटें मिलने की स्थिति में ही कोई चुनावी गठबंधन या समझौता करेगी. ऐसा न होने पर बसपा अकेले ही चुनाव लड़ेगी. बीएसपी की उत्तर प्रदेश सहित कई अन्य राज्यों में गठबंधन करके चुनाव लड़ने के लिए अन्य दलों से बातचीत चल रही है.

मायावती ने लखनऊ में पार्टी के प्रदेश कार्यालय में बीएसपी की आल-इंडिया बैठक को सम्बोधित किया. पार्टी की प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक मायावती ने बैठक में पार्टी के कार्यकर्ताओं को बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के जीवन से जुड़े कुछ सख़्त फैसले याद दिलाए. उन्होंने कहा कि कांशीराम ने तीन अहम फैसले लिए थे. पहला फैसला था कि वे किसी के भी शादी-विवाह, जन्म व मृत्यु आदि के कार्यक्रम में शामिल नहीं होएंगे ताकि जीवन का एक-एक पल पार्टी व मूवमेंट के कार्यों में ही लगा रहे. दूसरा फैसला था, वे आजीवन अविवाहित ही रहेंगे ताकि पारिवारिक मोह आदि से हमेशा दूर रहें और अपने खास उद्देश्य से न भटक सकें. तीसरा फैसला था, पार्टी में अपने मां-बाप, सगे भाई-बहिन एवं नजदीकी रिश्तेदारों को हमेशा सक्रिय राजनीति से दूर रखेंगे. उनको पार्टी में न कोई पद देंगे और न ही उनको कोई चुनाव लड़ाएंगे.

मायावती ने कहा कि कांशीराम से प्रेरित होकर ही उन्होंने भी अपने जीवन से जुड़े इन तीनों अहम व सख्त फैसलों पर, पूरी ईमानदारी व निष्ठा से अमल किया है. उन्होंने कहा कि पिछले साल उत्तर प्रदेश में विधानसभा के चुनाव के बाद उन्होंने थोड़ा परिवर्तन करते हुए अपने छोटे भाई आनंद कुमार को खासकर पेपर-वर्क के लिए पार्टी संगठन के एक पद पर रख लिया था. इस फैसले के कुछ समय बाद ही कांग्रेस व अन्य पार्टियों की तरह ही बीएसपी पर भी परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगने लगे. अब पार्टी में परिवार के सभी नजदीकी सदस्यों को सक्रिय राजनीति से दूर रखने के फैसले पर फिर पूरी सख्ती से अमल करना पड़ा है ताकि फिर कोई भी विरोधी पार्टी व मीडिया आदि परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप न लगा सके.

 

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