‘मीडिया जो दिखाती है लोग वही देखते हैं, बाकी सब भूल जाते हैं’

पवन खेरा 

मीडिया से लेकर राजनीतिक विश्लेषक तक, सब के सब आप को समर्थन ना देने पर कांग्रेस पार्टी की आलोचना कर रहे हैं. मीडिया के पास एक ऐसी ताकत है जिससे वह दर्शकों का ध्यान अचानक मोड़ देने में कामयाब हो जाती है. लिहाजा कई ऐसी बातें जो पहले महत्वपूर्ण होती हैं बाद में उससे ध्यान हट जाता है.

केजरीवाल को ही याद करें!

केजरीवाल के धरने की बात करें तो कई पुरानी बातों को भुला दिया गया है. दिल्ली के सीएम ने चीफ सेक्रेटरी को आधी रात को बुलाया था, यह बात अब किसी को याद नहीं है. यह बात भी अब किसी के ध्यान में नहीं है कि चीफ सेक्रेटरी को आधी रात को इसलिए बुलाया गया था क्योंकि उन्होंने दिल्ली सरकार के विज्ञापनों की कुछ आपत्तिजनक बातों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था. यह विज्ञापन केजरीवाल के तीन साल की उपलब्धियां गिनाने के लिए दिया जा रहा था.

यह बात भी पूरी तरह भुला दी गई है कि चीफ सेक्रेटरी को आप के विधायकों ने थप्पड़ मारा. इसके बाद से ही आईएएस एसोसिशन का विरोध जारी है. आईएएस का यह विरोध प्रदर्शन सांकेतिक है. हर दिन वे सिर्फ 5 मिनट प्रोटेस्ट करते हैं. उनके प्रोटेस्ट का मतलब यह नहीं है कि वे हर दिन के काम के लिए ऑफिस नहीं आ रहे हैं.

ऐसे में सवाल यह है कि मोदी सरकार ने फरवरी में आईएएस एसोसिएशन की तरफ से क्यों नहीं दखल दिया? क्या भारत सरकार दिल्ली को गंभीरता से नहीं ले रही है या फिर ये कोहराम केंद्र को भी उतना ही भा रहा है जितना अरविंद केजरीवाल को?

क्या है इस शिकायत का मकसद?

अरविंद केजरीवाल लगातार यह शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें ब्यूरोक्रेसी से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है. दूसरी तरफ वे हेल्थ और एजुकेशन सेक्टर में अपनी कामयाबियां गिनाते रहते हैं. क्या पल पल की खबरें देने की इस होड़ में क्या कुछ तथ्य मिट रहे हैं.

क्या राजनीति 20/20 का मैच बन चुकी है? आखिर अरविंद केजरीवाल से कठिन सवाल क्यों नहीं पूछे जा रहे हैं? उन्होंने अपनी इच्छा से बीजेपी/एनडीए के नेताओं से पूर्व में लगाए गए आरोपों के लिए माफी मांग ली लेकिन अपने ही मुख्य सचिव से मुलाकात करने का बड़ा दिल नहीं दिखा सके और न ही अपने उत्पाती विधायकों की तरफ से माफी मांगने का प्रयास किया. अधिकारी राज्य सरकार से सिर्फ अपनी सुरक्षा की गारंटी मांग रहे थे. क्या ये व्यवहार दिल्लीवासियों को बेहद चिंता का विषय नहीं लगता है कि उपरोक्त चीजें करने की बजाए केजरीवाल ने एसी कमरे में धरना देकर ओछी राजनीति करना पसंद किया?

लोग सरकारों को इसलिए नहीं चुनते कि वो अपनी नाकामी दिखाने के लिए नए खलनायक तैयार करना शुरू कर दे. आखिर ‘आप’ क्यों चाहती है कि कांग्रेस पार्टी उसकी भटकी हुई राहों पर मदद करे जबकि ठीक इसी तरह की स्थिति में कांग्रेस ने दिल्ली में 15 सालों तक बेहतरीन सरकार चलाई है.

उदारवादी आप क्या करेंगे?

प्यारे उदारवादियों, क्या आप मुख्यमंत्री के आवास पर उनकी मौजूदगी में ब्यूरोक्रेसी पर शारीरिक हमलों के लिए माफ कर देंगे? क्या आप इस बात से खुश होंगे कि एक चुना हुआ मुख्यमंत्री धरने पर बैठ जाए जिससे गणतंत्र दिवस की परेड बाधित हो जाए? क्या आपको एक ऐसे मंत्री से कोई दिक्कत नहीं है जो भीड़ का नेतृत्व करते हुए अफ्रीकी मूल के नागरिकों की पिटाई कर दे? कानून हाथ में ले ले. किसी को भी ये सोचना चाहिए कि संविधान की पवित्रता बनाए रखना उदारवाद मूल्य का पहला नियम है.

मोदी सरकार के साथ आप की उलझन पूरी तरह समझने के काबिल है लेकिन कृपया हर उस आदमी को ताकत मद दीजिए जो मोदी के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहा हो, अगर आप ये न चाहते हों कि ऑपरेशन सफल हो जाए और मरीज ही मर जाए वाला दृश्य न खड़ा हो जाए. कृपया राजनीति को एक दृष्टिभ्रम से दूसरे दृष्टिभ्रम की यात्रा न बनाएं.

(लेखक कांग्रेस के प्रवक्ता हैं)

 

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