मुक्ति चाहते हैं अयोध्या के लोग

राम नाम रटने वाले नेताओं और अपराधियों का अखाड़ा बनी अयोध्या…
अपराधस्थली में तब्दील होती अयोध्या पर सरकार नहीं दे रही ध्यान…
अयोध्या में सक्रिय है नेताओं और अपराधियों का संगठित ‘सिंडिकेट’…
अकूत सम्पत्ति के कारण मंदिर-मठों पर नेताओं-अपराधियों की नजर…
मंदिर-मठों पर कब्जे के लिए चल रहा है हिंसा और हत्याओं का दौर…
ताकत और समृद्धि का प्रदर्शन करने वाले साधुओं की सत्ता तक पहुंच…
अयोध्या आने वाले श्रद्धालुओं को जरूरी सुविधाएं भी नहीं दे रहा शासन…

प्रभात रंजन दीन

भाजपा के चेहरे और उसके चरित्र का फर्क जनता समझती तो है, लेकिन जनता की आदत बन चुकी है, जुमला उछलने पर मचलने की. इस जन-चरित्र के कारण ही राजनीतिक दल और उसके नेता देश के आम लोगों को निरा-मूर्ख समझते हैं. तभी तो चुनाव आता है तो राम-राम होने लगता है और चुनाव जाते ही गया-राम हो जाता है..! हद दर्जे की घटिया राजनीति ने राम की अयोध्या को सड़ा दिया है. राजनीतिक आग्रह-पूर्वाग्रह के कूड़े को मस्तिष्क से हटा कर आप अयोध्या जाकर तो देखें कि नेताओं और बदमाशों ने धर्मस्थली अयोध्या को किस जघन्य हालत में पहुंचा दिया है..!
राजनीतिक दुष्प्रयोगों के कारण धर्मस्थली अयोध्या अधर्मस्थली में तब्दील होती जा रही है. इसके लिए सारे राजनीतिक दल अपने-अपने कोणों से दोषी हैं. इनमें भाजपा पहले स्थान पर है. क्या हिंदू, क्या मुसलमान, दोनों समुदायों के सियासी और बदमाश तत्व इस आध्यात्मिक स्थल को वोटवादी और भौतिकवादी शोषण का जरिया बना कर दुह रहे हैं. स्थानीय लोग साफ-साफ कहते हैं कि अयोध्या में नेताओं और अपराधियों का सुसंगठित ‘सिंडिकेट’ काम कर रहा है.
केंद्र में भाजपा की सरकार 2014 में आई और उत्तर प्रदेश में 2017 में. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के मसले पर केंद्र सरकार के अलमबरदार चार साल चुप रहे और यूपी के मुखिया पौने दो साल मौन साधे रहे. 2019 का चुनाव जब नजदीक आया तो केंद्र सरकार, सत्ताधारी पार्टी के राष्ट्रीय नेता से लेकर प्रदेश सरकार और प्रदेश स्तर के नेता सब अचानक बोल पड़े. पार्टी आलाकमान ने इशारा किया और नेता कठपुतली की तरह राम-राम का प्रहसन खेलने लगे. अयोध्या की गलियों-नुक्कड़ों पर घूमते हुए आप यहां के स्थानीय लोगों से बात करें तो आप पाएंगे कि आम नागरिक नेताओं के चेहरों के पीछे की मक्कारी अच्छी तरह समझते हैं, लेकिन नेता चुनने की शातिराना प्रक्रिया से मजबूर हैं. रामघाट मुहल्ले में नुक्कड़ की एक चाय दुकान पर बैठे एक बुजुर्ग सज्जन कहते हैं, ‘कश्मीर में विधानसभा चुनाव आएगा तो फिर कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का मसला यही नेता उठाएंगे जो इस मसले को अपने आसन के नीचे दबाए बैठे हैं. ठीक उसी तरह जैसे अब राम मंदिर का मुद्दा उठा रहे हैं. अगर उत्तर प्रदेश संसद की सर्वाधिक सीटों वाला प्रदेश नहीं होता तो भाजपा के नेता एक बार भी राम मंदिर का नाम नहीं लेते’. अयोध्या के बुजुर्ग सज्जन की कही ये बातें देश की राजनीति का यथार्थ है और अयोध्या के लोगों में नेताओं के कृत्यों और मंशा को लेकर साफ-साफ समझ.
आप मंदिर मंदिर और मस्जिद मस्जिद का जो राजनीतिक प्रलाप सुन रहे हैं, उससे अयोध्या के नागरिक आजिज आ चुके हैं. यही यहां का असली सामाजिक परिदृश्य है. अयोध्या के लोग ऐसी राजनीति से मुक्ति चाहते हैं जिसने अयोध्या का सामाजिक जीवन प्रदूषित कर रखा है. अयोध्या के लोगों को रोजगार चाहिए, काम चाहिए, भोजन चाहिए, शिक्षा चाहिए, सुरक्षा चाहिए और सुकून चाहिए. इनमें से एक भी जरूरत सत्ताधारियों की प्राथमिकता में नहीं है. उनकी प्राथमिकता केवल वोट है. कभी अयोध्या में राम-चैप्टर की शुरुआत की घोषणा तो कभी राम मंदिर के निर्माण की तारीख को लेकर बयानबाजी, कभी राम मंदिर के बजाय सरदार पटेल की प्रतिमा की तरह राम की प्रतिमा स्थापित कराने की नकलबाजी का बयान तो कभी विवादास्पद हिंदू साधु द्वारा किसी पुरानी मस्जिद के पुनर्निमाण की पहल पर मुस्लिमों की नाराजगी, कभी इस नेता की आमद तो कभी उस नेता की अगवानी से दुरूह होती आम जिंदगी, कभी इस मठ पर कब्जा और गोलीबारी तो कभी उस मठ के महंत की हत्या और हिंसा… यही अयोध्या का सच है. अयोध्या के लोग कहते हैं, ‘अब जो होना है, हो ही जाए, छुट्टी मिले. नेताओं द्वारा मुद्दे को लटकाए रखना और वोट के समय उभारना हमें बर्दाश्त नहीं. अब हमें इसका स्थायी हल चाहिए. हमें अब और राजनीति नहीं चाहिए, नेताओं से बस मुक्ति चाहिए.’
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दक्षिण कोरिया की प्रथम नागरिक किम जुंग सूक की चकाचौंध भरी सत्ताई दीपावली के बाद ‘चौथी दुनिया’ के इस संवाददाता ने अयोध्या का जायजा लिया और सत्ता प्रायोजित चकमक के पीछे के सन्नाटे और अंधेरे की असलियत को अपने मन और नोटबुक में दर्ज किया. लोग पूछते हैं, ‘हमें इस राजनीति ने क्या दिया?’ इस लोक-प्रश्न का आप संलग्नता से जवाब तलाशें तो आपको बड़ा भयावह दृश्य दिखाई पड़ेगा. अयोध्या में सामान्य पढ़े-लिखे युवकों के लिए रोजगार का कोई इंतजाम नहीं है. सामान्य से ऊपर स्तर की पढ़ाई करने वाले युवक अयोध्या से बाहर जा चुके हैं. मंदिरों के शहर अयोध्या में धार्मिक कर्मकांड की चीजें बेचने, चाय का खोमचा लगाने और किराना परचून की दुकान चलाने का धंधा ही आजीविका का प्रमुख स्रोत है, जो आपको सामान्य रूप से दिखता है. इसके अलावा आपको हर तरफ या तो श्रद्धालु दिखेंगे या बेरोजगार युवकों की टोलियां या मजदूर वर्ग के लोग दिखेंगे, जो विभिन्न मंदिरों और मठों में चलते रहने वाले निर्माण कार्यों से अपनी आजीविका चलाते हैं. अयोध्या में नुक्कड़ों और चौराहों पर आपको दिन भर निठल्ले बैठे, चाय पीते गप्पें लड़ाते बेरोजगार युवक दिखेंगे. यह दृश्य आम है. चाहे वह मुस्लिम बहुल मुहल्ले का नुक्कड़ हो या हिंदू बहुल मुहल्ले का नुक्कड़. आप चाय की किसी दुकान पर किसी बाहरी पर्यटक की तरह निरपेक्ष और निस्पृह भाव से उनकी बातें चुपचाप गौर से सुनते रहिए, आपको अयोध्या के युवकों का रुझान, उनका आकर्षण और उनका लक्ष्य साफ-साफ समझ में आता जाएगा.
अयोध्या को राजनीतिक प्रयोगशाला बना कर नेताओं ने आध्यात्म को सत्तामुखी भौतिक सुख-साधन सम्पन्न दिखने का सारा इंतजाम कर दिया है. नेताओं की इस नासमझी के कारण धर्म-स्थली अयोध्या के मंदिर-मठ-अखाड़े और मस्जिद-मजारें सब अकूत सम्पत्ति-जनित आपराधिक आकर्षण का केंद्र बन गई हैं. अयोध्या के सभी मंदिर-मठों के महंत हथियारबंद अंगरक्षकों की भारी जमात के साथ शानदार गाड़ियों के काफिले के साथ विचरण करते नजर आते हैं. सत्ताधारी या सत्ता-वंचित नेताओं की सीधी आमद इन आलीशान साधुओं के पास होती है और साधुओं की सीधी पहुंच सत्ता तक होती है. सत्ता-भांड इन्हीं साधु वेशधारी महंतों के आगे नतमस्तक होते हैं और ऐसे साधुओं के कुपित होने पर सत्ता प्रमुख उन्हें मनाने आते हैं. आलीशान भौतिक सुख-सुविधाओं, सत्ता-सामर्थ्य और अर्थ-प्रेरित अय्याशियों में लिप्त साधु-संतों-महंतों-मुल्लाओं को देख कर बेरोजगार युवकों के मन में आपराधिक आकर्षण पैदा हो रहा है. अयोध्या के तकरीबन सारे महंत मंदिर-मठों पर जबरन कब्जा करके महंत बने हैं. जबरन कब्जे की प्रक्रिया में मारपीट, गोलीबारी, बलवा और हत्या अयोध्या के लोगों के लिए आम बात है. अयोध्या के युवाओं को लगता है कि लूटपाट या डाका डालने का जोखिम उठाने से अच्छा है किसी मंदिर-मठ पर कब्जा जमाया जाए और साधु वेश धर कर राज भोगा जाए. अयोध्या के आम युवकों की बातचीत से झलकने वाला यह आकर्षण कानून के तथ्यों से भी पुष्ट होता है. फैजाबाद जिला अदालत में चल रहे फौजदारी (अपराध) के 50 प्रतिशत से अधिक मामले मंदिर-मठों पर कब्जे या विवाद से सम्बद्ध गंभीर अपराध की धाराओं से जुड़े हैं. ये मामले अदालत में चल रहे हैं, यह कहना उचित नहीं है. मंदिर-मठों से जुड़े गंभीर अपराध के ये मामले अदालत में घिसट रहे हैं. मंदिर-मठों की अकूत सम्पत्ति के उच्छिष्ठ से अघाए प्रशासनिक और पुलिस अधिकारी उन मामलों में कोई दिलचस्पी नहीं लेते. मंदिर-मठों के अपराध-स्थलों में तब्दील होते जाने में शासन-प्रशासन के भ्रष्ट अधिकारी अपना फायदा देखते हैं. सत्ता पर बैठे नेता भी इन्हीं मंदिर-मठों के जरिए अपनी राजनीति की दुकान चलाते हैं.
लोकसभा चुनाव सामने आते ही आलाकमान के इशारे पर राम-मंदिर मसला चमकाने में लगे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भगवान राम के पिता राजा दशरथ के नाम पर अयोध्या में मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की योजना घोषित की. योगी आदित्यनाथ खुद संत हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं. उन्हें निश्चित तौर पर पता होगा कि हनुमान गढ़ी के नजदीक दशरथ जी की गद्दी (बड़ी जगह) का क्या हाल है और इस पर किन-किन लोगों की निगाहें गड़ी हुई हैं. योगी आदित्यनाथ अयोध्या में भगवान राम की प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा करते हैं, लेकिन योगी इस दुखद तथ्य से मुंह मोड़े रहते हैं कि गुरु वशिष्ठ मुनि का आश्रम विद्या कुंड आपराधिक घटनाओं का ‘कुंड’ बनता जा रहा है. विद्या कुंड स्थित वशिष्ठ मुनि के आश्रम में ही रहकर भगवान राम ने शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की थी. अपवित्र होते उस पवित्र स्थल के प्रति मुख्यमंत्री की कोई चिंता नहीं है. कुछ ही महीने पहले विद्या कुंड के महंत रामशरण दास की गला घोंट कर हत्या कर दी गई. इस मामले में परमात्मा दास नामके एक साधु को गिरफ्तार कर पुलिस ने औपचारिकता पूरी कर ली. अभी विद्या कुंड के महंत अवधेश प्रसाद हैं. पूर्व महंत रामशरण दास की हत्या में शक की सुई मौजूदा महंत की तरफ भी घूमी थी, लेकिन इस शक पर पुलिस ने कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई. अब तो अवधेश प्रसाद खुद ही अपनी हत्या की आशंका जता रहे हैं.
इलाहाबाद (अब प्रयागराज) कुंभ के बहाने भाजपा देशभर के श्रद्धालुओं में खुद को हिंदू-हितैषी के रूप में स्थापित करने की आखिरी जद्दोजबद कर रही है. हिंदू आस्था के केंद्र अयोध्या में आम लोगों के विचार बताते हैं कि भाजपा अब हिंदू हृदय में वैसी ही अवसरवादी राजनीतिक पार्टी के रूप में मानी जा रही है जैसी अन्य पार्टियां. आम लोगों की इस धारणा को सामने रख कर विचार करें तब भाजपा की छटपटाहट और बेचैनी का कारण समझ में आता है. तब यह समझ में आता है कि क्यों अचानक मथुरा मुद्दा जिंदा किया जाने लगा और क्यों अचानक राम मंदिर बनाने का भाजपा नेताओं में दर्द पैदा होने लगा. प्रयागराज में होने वाले कुंभ को लेकर क्यों भाजपा को अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नामों से लोगों को जुटाने की कवायद करने की जरूरत आ पड़ी. अयोध्या में भी समरसता कुंभ के नाम पर लाखों लोगों को जुटाने की तैयारी है. अयोध्या के स्थानीय लोग ही पूछते हैं कि कुंभ इलाहाबाद में हो रहा है तो उसे लेकर अयोध्या में लोगों को जुटाने का आखिर क्या तुक है! अयोध्या के रामघाट मुहल्ले में सौ बीघे में फैली बड़ा भक्तमाल मंदिर की बगिया में आयोजित समरसता कुंभ में भारी संख्या में लोगों को जुटाने की कोशिशों का क्या मतलब है? अभी अयोध्या के लोग यही सवाल पूछ रहे हैं. उसी रामघाट मुहल्ले में मंदिर-मठों को लेकर जो आपराधिक खींचतान का सिलसिला चल रहा है, उसके स्थायी निपटारे की भाजपा को कोई चिंता नहीं है. भाजपा के अलबरदारों को इस बात की भी चिंता नहीं है कि जानकी घाट मंदिर के महंत स्वनामधन्य जन्मेजय शरण राम मंदिर निर्माण के लिए एक अलग समानान्तर न्यास बना कर अर्से से देशभर में जो चंदा वसूली कर रहे हैं और इससे आम लोगों में जो भ्रम फैल रहा है, उसे रोकें. लेकिन यह भाजपा की प्राथमिकता में नहीं है. राम मंदिर के परिप्रेक्ष्य में जानकी घाट काफी महत्वपूर्ण है. यहीं गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस का बाल कांड और अयोध्या कांड लिखा था. तुलसी दास जिस वट वृक्ष के नीचे बैठ कर लिखते थे, उसकी स्मृति भी मौजूद है. ऐसी पवित्र स्थली को सम्पत्ति लोलुप साधु-संतों ने अपराध का अड्डा बना रखा है. जानकी घाट बड़ा स्थान के महंत मैथिली रामशरण दास की हत्या कर दी गई थी. रामशरण दास के मारे जाने के बाद ही उनके शिष्य जन्मेजय शरण महंत बने. जन्मेजय शरण पर अपने गुरु की हत्या करने का आरोप भी दर्ज है. लेकिन प्रभुसत्ता सम्पन्न महंत पर हाथ डालने की हैसियत किसमें है! आप आश्चर्य करेंगे अयोध्या के साधु-संतों को देख कर, योग-साधना और आध्यात्मिकता से दूर वे कैसी-कैसी हरकतें करते हैं और कैसे-कैसे लोगों के साथ संगत रखते हैं! जन्मेजय शरण हों या कोई और साधु महंत, उसे आप तरह-तरह की पिस्तौलों से खेलते और आजमाते हुए आम तौर पर देख सकते हैं और आध्यात्मिकता की जितनी पढ़ाई आपने की है, उसके साथ इन हरकतों को तौल सकते हैं.
जानकी घाट के सामने ही छोटी छावनी के पास प्रसिद्ध वेदांती जी का स्थान है. यहां के महंत राजकुमार दास हैं. वेदांती जी का स्थान के महंत की हत्या के बाद राजकुमार दास वहां के महंत बन बैठे. उन पर भी गुरु की हत्या का आरोप लगा, लेकिन अर्थ-सामर्थ्य और सत्ता-साधना के आगे कानून कहां टिकता है! राजकुमार दास की उठक-बैठक सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ होती है. ये सारे संत-महंत भाजपा नेताओं के साथ राम मंदिर की चिंता-बैठकों और मंत्रणा-सभाओं में शरीक रहते हैं. इसीलिए सत्ता सियासतदान संतों-महंतों की आपराधिक गतिविधियों पर आंखें मूंदे रहते हैं. रामघाट पर ही मानस भवन के पास मशहूर संत देवराहा बाबा का स्थान था. ‘था’ शब्द इसलिए लिखा कि अब उस पांच बीघे से अधिक रकबे में फैले देवराहा बाबा के स्थान पर अन्य साधु वेशधारियों का कब्जा हो चुका है. स्थान के कर्ताधर्ता रहे लक्ष्मण दास को इतना प्रताड़ित किया गया कि लक्ष्मण दास देवराहा बाबा का स्थान छोड़ कर भाग गए. लक्ष्मण दास का कोई अता-पता नहीं है, इस गुमशुदगी पर अयोध्या के लोग तमाम किस्म के संदेह जाहिर करते हैं. पुलिस में देवराहा बाबा का स्थान पर आपराधिक कब्जे को लेकर दर्ज एक मुकदमे के सिवा अब कोई सूत्र मौजूद नहीं है. प्रशासन से इतना पता चला कि देवराहा बाबा का स्थान पर दातुन कुंड के लोगों ने कब्जा किया और उसे बेच डाला. इस मामले में पुलिस की कार्रवाई भी आगे नहीं बढ़ी और देवराहा बाबा की स्मृतियां नष्ट कर डाली गईं. विडंबना देखिए कि इस स्थान के ठीक सामने हनुमान गढ़ी की जमीन पर स्थित मंदिर के महंत रामाज्ञा दास को जीते जी मृत बता कर मंदिर की जमीन पर कब्जा कर लिया गया. मंदिर की जमीन पर कब्जा कर वहां मार्केट बना दिया गया, लेकिन प्रशासन को यह आपराधिक कृत्य नहीं दिखा. पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. महंत रामाज्ञा दास जीवित हैं और खुद को जीवित साबित करने के लिए अथक प्रयास भी कर रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन उन्हें जीवित नहीं मानता. राम खिलौना मंदिर के महंत के साथ भी ऐसा ही हुआ. मंदिर के महंत को उनके ही शिष्य शंकर दास ने धक्का मारकर बाहर निकाल दिया और खुद महंत बन बैठा. राम खिलौना मंदिर के महंत को स्थानीय लोग वर्षों तक सरयू के किनारे राम की पौड़ी पर भीख मांगकर गुजारा करते देखते रहे, उसी राम की पौड़ी पर जहां इस दीपावली पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तीन लाख दीप जला कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा रहे थे.
अयोध्या के लोग मुमुक्षु भवन के महंत स्वामी सुदर्शनाचार्य की सनसनीखेज हत्या का प्रसंग भी बताते हैं. सुदर्शनाचार्य अचानक मंदिर से गायब हो गए थे. उनके गायब होने के बाद उनका शिष्य जीतेंद्र पांडेय महंत बना. कुछ दिन बाद जीतेंद्र पांडेय भी लापता हो गया. बाद में भेद खुला कि महंत जीतेंद्र पांडेय मंदिर से सारे माल-असबाब लेकर गायब हुआ था. सीवर टैंक से सुदर्शनाचार्य और उनकी शिष्या की लाश बरामद किए जाने के बाद जीतेंद्र पांडेय की गिरफ्तारी हुई, जिसने अपने गुरु और अपनी गुरु-बहिन की हत्या कराई थी.
राम राज और भगवान राम के मर्यादित आचरणों पर भारी भारी भाषण देने वाले मोदी, योगी, शाह या उनके राग-दरबारियों की जमात को साधु-संतों के ये अमर्यादित आचरण नहीं दिखते. इन्हें आम श्रद्धालुओं और पर्यटकों की तकलीफों की भी कोई फिक्र नहीं. राम जन्म भूमि और उस विस्तृत क्षेत्र में स्थापित कनक भवन, दशरथ जी का स्थान, बड़ी जगह, अमावा राज मंदिर और रंग महल समेत कई मंदिरों का दर्शन करने आने वाले पर्यटकों के लिए प्रसाधन का कोई इंतजाम नहीं है. लोग इससे बेहद परेशान रहते हैं. जबकि स्थानीय लोग बताते हैं कि हनुमान गढ़ी के सामने राज द्वार मंदिर के बृहद पार्क क्षेत्र को पर्यटकों की सुविधा के लिए व्यवस्थित किया जा सकता था. राज द्वार मंदिर का पार्क भारी दुर्गति में है. स्थानीय लोग कहते हैं कि राज मंदिर पार्क की दुर्गति और उपेक्षा शातिराना तरीके से हो रही है. लोग यह आशंका जताते हैं कि यह स्थान भी आने वाले दिनों में कब्जे को लेकर भीषण हिंसा का शिकार हो सकता है. लेकिन सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है. सरकार का ध्यान नाम बदलने और धर्म स्थानों पर मांस-मदिरा पर रोक लगाने पर है. साधु-संतों की आचार-संहिता बनाने को लेकर सरकार कतई चिंतित नहीं है. अयोध्या के लोग कहते हैं कि साधु वेशधारी बदमाशों की भारी जमात है जो मदिरा और मांस का खुलेआम भक्षण करती है.

मंदिर बना नहीं, पर मस्जिद बनाने में लगे हैं ज्ञान दास और श्रीश्री

हनुमान गढ़ी की बसंतिया पट्टी के महंत ज्ञान दास नए घाट पर अड़गड़ा मस्जिद बनवाने में जुटे हुए हैं. राजनीतिक महंतों की श्रृंखला में महंत ज्ञान दास धर्म निरपेक्ष होने का दावा करने वाले राजनीतिक दल मसलन, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के करीबी संत हैं. इसलिए ज्ञान दास को राम मंदिर से अधिक अड़गड़ा मस्जिद की चिंता रहती है. अड़गड़ा मस्जिद हनुमान गढ़ी की जमीन पर बनी है. हाईकोर्ट के आदेश पर जब शासन ने लावारिस, विवादास्पद और अवैध मंदिर-मस्जिद हटाने की कार्रवाई शुरू की, तब ज्ञान दास खंडहर बनी अड़गड़ा मस्जिद को बचाने के लिए आगे आए और उन्होंने उसे आलीशान शक्ल में बदलना शुरू किया. महंत की इस पहल को मुसलमानों ने अनुचित करार दिया. बाबरी मामले के मुस्लिम पक्षकार हाजी महबूब सहित कई मुस्लिम नेताओं ने महंत ज्ञान दास की इस पहल पर आपत्ति जताई और कहा कि सस्ती लोकप्रियता पाने और कुछ राजनीतिक दलों के इशारे पर महंत ने यह काम शुरू किया. महंत का यह कृत्य इस्लाम धर्म के विरुद्ध है. मस्जिद मुस्लिम समुदाय की है इसलिए मस्जिद का कोई भी निर्माण कार्य या फेरबदल केवल मुस्लिम ही कर सकता है. अयोध्या के लोग कहते हैं कि महंत ज्ञान दास मनमानी करते रहते हैं और हनुमान गढ़ी के मुख्य महंत रमेश दास कैंसर से पीड़ित रहने के कारण कोई कार्रवाई नहीं कर पाते.
दूसरी तरफ आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर पर भी राम मंदिर बनवाने के बजाय मस्जिद बनवाने में अधिक रुचि लेने के आरोप लग रहे हैं. कभी श्रीश्री के सहयोगी रहे अयोध्या सद्भावना समिति के अध्यक्ष अमरनाथ मिश्रा श्रीश्री रविशंकर पर राम मंदिर सुलह के नाम पर मामले को अपनी मुट्ठी में लेने और अयोध्या में मस्जिद बनाने की गुपचुप योजना बनाने का आरोप लगा चुके हैं. यह सही है कि श्रीश्री के दूत गौतम विज ने बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाजी महबूब के आवास पर उनसे मुलाकात की थी. उस भेंट में करीब एक दर्जन अन्य मुस्लिम नेता भी मौजूद थे. मिश्रा का कहना है कि लखनऊ में राम जन्मभूमि के हिंदू पक्षकारों ने जब श्रीश्री से मुलाकात करने की कोशिश की तो उन्होंने मिलने से मना कर दिया था, जबकि श्रीश्री सलमान नदवी के साथ मिलकर अयोध्या के युसूफ आरा मशीन के पास बड़ी मस्जिद बनवाने का कुचक्र कर रहे थे.

अयोध्या में ढूंढ़े नहीं मिलते चरित्रवान साधु-संत

अयोध्या के लोग कहते हैं कि अथाह सम्पत्ति के कारण देशभर के छंटे हुए अपराधियों और बदमाशों ने अयोध्या को अपना अड्डा बना लिया है. गेरुआ या सफेद वस्त्र धारण कर वे साधुओं की जमात में तो शामिल हैं, लेकिन उनके साथ हथियारबंद गिरोह रहता है. अयोध्या के पुराने वाशिंदे बताते हैं कि राम जन्मभूमि मंदिर के महंत लालदास की हत्या के बाद जब नए महंत के रूप में बेदाग और चरित्रवान महंत की तलाश हो रही थी तो एक भी साधु उस मापदंड पर खरा उतरता नहीं मिल रहा था. बहुत मशक्कत के बाद आखिरकार सत्येंद्र दास को महंत चुना गया था. वर्ष 2013 में दो महंतों भावनाथ दास और हरिशंकर दास के बीच जमीन के एक छोटे-से टुकड़े को हुई खूनी भिड़ंत को लोग आज भी याद करते हैं, दोनों ओर से हुई अंधाधुंध फायरिंग में एक आदमी मारा गया था और दर्जनों लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए थे. अयोध्या के लोग हनुमानगढ़ी के महंत हरिशंकर दास पर हुए कातिलाना हमले की घटना को अब भी रोमांच से सुनाते हैं. महंत हरिशंकर दास को छह गोलियां लगी थीं. हरिशंकर दास के एक शिष्य ने ही हमला कराया था. हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत रमेश दास भी कई बार अपनी हत्या की आशंका जता चुके हैं. अखिल भारतीय निर्वाणी अनी अखाड़ा के महामंत्री और हनुमानगढ़ी के पुजारी गौरीशंकर दास भी अपनी हत्या की आशंका जताते रहे हैं. उनका साफ-साफ कहना था कि उनके गुरु रामाज्ञा दास की हत्या कराने वाले महंत त्रिभुवन दास अब उनकी हत्या कराना चाहते हैं. वर्ष 2012 में हनुमानगढ़ी के संत हरिनारायण दास का गोंडा में पुलिस मुठभेड़ में मारा जाना भी आध्यात्मिक अयोध्या के आपराधिक अयोध्या में बदलते जाने की कहानी कहता है. हरिनारायण पर हत्या समेत कई संज्ञेय अपराध के मामले दर्ज थे. महंत रामप्रकाश दास भी 1995 में अयोध्या के बरहटा माझा इलाके में पुलिस की गोली से मारा गया था. पुलिस का आधिकारिक दस्तावेज बताता है कि आपराधिक गतिविधियों के कारण अयोध्या के सैकड़ों साधु विभिन्न पुलिस मुठभेड़ों में मारे जा चुके हैं.
लोग कहते हैं कि अयोध्या में हनुमान गढ़ी के उज्जैनिया पट्टी के महंत त्रिभुवन ने कभी आतंक मचा रखा था. त्रिभुवन दास को उसकी आपराधिक गतिविधियों के कारण हनुमानगढ़ी से बाहर निकाल दिया गया था. इसके बाद त्रिभुवन ने अपना अलग मठ स्थापित किया और मठ को अपराध का अड्डा बना लिया. लोग कहते हैं कि त्रिभुवन दास ने सौ से अधिक हत्याएं कराईं. हनुमानगढ़ी अयोध्या का सबसे बड़ा मंदिर है. यहां करीब 700 नागा वैरागी साधु रहते हैं. हनुमानगढ़ी का नाम भी आपराधिक गतिविधियों की फेहरिस्त में जुड़ा है. 1984 में हनुमानगढ़ी के महंत हरिभजन दास को उन्हीं के शिष्यों ने गोली मार दी थी. 1992 में यहां गद्दीनशीन महंत दीनबंधु दास पर कई बार जानलेवा हमले हुए. लगातार हो रहे हमलों से वे इतने परेशान हुए कि गद्दी छोड़ कर चले गए. 1995 में मंदिर परिसर में ही एक साधु नवीन दास ने अपने चार साथियों के साथ मिलकर गढ़ी के ही महंत रामज्ञा दास की हत्या कर दी थी. 2005 में दो नागा साधुओं में हुई भीषण बमबाजी भी अयोध्या के लोगों में चर्चा में शामिल रहती है. वर्ष 2010 में हनुमान गढ़ी के साधु बजरंग दास और हरभजन दास की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. लोग कहते हैं कि हनुमानगढ़ी के महंत प्रहलाद दास जब तक जीवित रहे तब तक उनकी पहचान लंबे समय तक ‘गुंडा बाबा’ के रूप में बनी रही. वर्ष 2011 में प्रहलाद दास की साधुओं के एक गैंग ने गोली मारकर हत्या कर दी.

अयोध्या के लोगों को मंदिर-मस्जिद पचड़े से मुक्ति चाहिए

अयोध्यावासी चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान, अब मंदिर-मस्जिद के पचड़े से मुक्ति चाहते हैं. अयोध्या के लोग साफ-साफ कहते हैं कि भाजपा या कोई भी राजनीतिक पार्टी अयोध्या में न राम मंदिर बनने देगी और न मस्जिद बनेगी. केवल इसे दो समुदाय में लड़ाई का मुद्दा बना कर रखा जाएगा और वोट निचोड़ा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का रोना रोने वाली मोदी सरकार दलित एक्ट पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाकर अध्यादेश ला सकती है, क्योंकि उसमें उसे वोट दिखता है. लेकिन राम मंदिर मसले में अध्यादेश नहीं लाएगी, क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर बन गया तो फिर मुद्दे का क्या होगा! फिर तो भाजपा को दूसरा कोई मसला ढूंढ़ना पड़ेगा. अयोध्या के लोग इस बात पर खासे खफा हैं कि जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को राम मंदिर के पक्ष में फैसला दे ही दिया था तो अध्यादेश लाने में केंद्र सरकार के समक्ष क्या अड़चन थी? अयोध्या के लोग सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को उचित बताते हैं कि राजनीति प्रेरित छटपटाहटों की अनदेखी कर सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मामले में त्वरित सुनवाई की मांग खारिज कर दी.

 

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