मोदी विरोधी अलायंस में अड़ंगा डाल रही हैं मायावती: कांग्रेस

लखनऊ। 2019 चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ अगर कोई महागठबंधन बनता है, तो मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) उसका घटक नहीं होगी. यह बात तब स्पष्ट हो गई जब कांग्रेस ने मायावती के कभी दाहिने हाथ रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को अपने पाले में कर लिया. इस कार्यक्रम में कांग्रेस के सीनियर नेता गुलाम नबी आजाद ने यह भी साफ कर दिया कि जब यूपी चुनाव में कोई गठजोड़ नहीं हो पाया, तो संभावना काफी कम नजर आती है.

यूपी चुनाव के दौरान कांग्रेस ने लाख कोशिश की थी मायावती को लेकर एक ग्रैंड अलायंस बनाने की, लेकिन बीएसपी सुप्रीमो किसी भी गठबंधन में न शामिल होने के अपने फैसले पर टिकी रहीं. नतीजतन उस चुनाव में महागठबंधन बनने से पहले ही बिखर गया था.

शुक्रवार को कांग्रेस के कार्यक्रम में महागठबंधन की टीस साफ देखी जा सकती थी, जब गुलाम नबी आजाद से बीएसपी से अलायंस का सवाल पूछा गया.

क्या कहा आजाद ने?

बकौल गुलाम नबी आजाद, ‘यूपी असेंबली चुनाव से पहले हमने मायावती जी से मुलाकात की थी. तब मैं व्यक्तिगत रूप से भी उनसे मिलने गया था. हम चाहते थे कि एसपी, बीएसपी और कांग्रेस को मिलाकर एक अलायंस बने ताकि बीजेपी को हराया जा सके लेकिन वे (मायावती) तैयार नहीं हुईं.’

देश में एनडीए सरकार के खिलाफ किसी भी गठबंधन के लिए बीएसपी एक अहम घटक साबित हो सकती है. पूर्व में कई बार पिछले दरवाजे से बातचीत होने के बावजूद मायावती ने किसी भी गठजोड़ से मना कर दिया है.

अलग दिखती रही है बीएसपी

अभी हाल में संसद में जस्टिस लोया मामले को लेकर विपक्षी पार्टियों ने खूब हंगामा मचाया. विपक्ष के नेता राष्ट्रपति तक गए. राज्यसभा में भी खूब शोर-शराबा हुआ लेकिन तब बीएसपी विपक्ष के साथ खड़ी नहीं दिखी. बीएसपी के नेता यह आरोप लगाते दिखे कि उनकी पार्टी को संसद में मुकम्मल मुद्दा उठाने का मौका नहीं दिया जा रहा.

देवगौड़ा के साथ क्या कॉम्बिनेशन?

दिलचस्प बात यह है कि कर्नाटक चुनाव में सभी पार्टियां जहां बड़े-बड़े ढोल पीट रही हैं, तो मायावती ने पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा (जेडीएस) से गठजोड़ का फैसला किया है. यहां कांग्रेस का सामना अपनी धुर प्रतिद्वंदी पार्टी बीजेपी से है. मायावती का जेडीएस से गठजोड़ पूरी तरह से सोची समझी रणनीति है. बीएसपी किसी भी सूरत में दलित वोट बैंक कांग्रेस के पाले में नहीं सरकने देना चाहती जिसका आनंद आजतक कांग्रेस कर्नाटक में उठाती आई है.

यह पहला मौका है जब मायावती ने किसी चुनाव पूर्व गठबंधन का फैसला लिया है. इससे पहले यूपी चुनाव के लिए उनकी पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने कांग्रेस नेता नरसिम्हा राव के साथ अलायंस किया था.

दरअसल मायावती शुरू से कांग्रेस को इशारा देती रही हैं कि कोई भी महागठबंधन यूपी केंद्रित नहीं बन सकता क्योंकि यूपी के दंगल को मायावती खुद का रण मानती रही हैं. इसी का परिणाम है जो किसी भी अलायंस की बात हो वह बीएसपी माइनस ही साबित हो पाता है.

इससे तय है कि मायावती अपने उस सिद्धांत पर कायम हैं जिसमें वे खुद अपना रास्ता अख्तियार करने की बात करती हैं.

 

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