मोदी सरकार की ये स्कीम 2019 चुनावों में यूपी के लिए होगी गेम चेंजर?

लखनऊ। गन्ना किसान यदि शुगर मिल को गन्ना बेचते हैं तो केन्द्र सरकार प्रति टन बेचे गए गन्ने पर 55 रुपये किसान को देगी. इस योजना पर केन्द्र सरकार काम कर रही है. इस योजना का फायदा सीधे तौर पर गन्ना किसानों को मिलेगा. वहीं वैश्विक मंदी के कारण बदहाल पड़ी शुगर फैक्ट्रियों के लिए भी यह योजना राहत भरी होगी. लेकिन 2019 से पहले खुद सरकार के लिए यह सबसे बड़ी राहत साबित होगी यदि उसे एक बार फिर उत्तर प्रदेश में 2014 जैसी जीत मिल जाए. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश गन्ना किसानों का गढ़ है और इन्हें अच्छे दिन का एहसास हो तो सरकार के अच्छे दिन आना तय है.

शुगर मिलों को मंदी और नुकसान के दोहरे वार से बचाने के लिए केन्द्र सरकार गन्ना किसानों को वित्तीय मदद देने का ऐलान कर सकती है. न्यूज एजेंसी राइटर ने केन्द्र सरकार में सूत्रों के आधार पर दावा किया है कि मोदी सरकार गन्ना किसानों को प्रति क्विंटल गन्ना शुगर मिल को बेचने पर 55 रुपये देने का फैसला ले सकती है.

दुनिया में सर्वाधिक चीनी खपत भारत में होती है. पिछले महीने केन्द्र सरकार ने चीनी निर्यात करने पर 20 फीसदी टैक्स को वापस लेने का फैसला किया था. इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने देश की सभी चीनी मिलों को प्रति वर्ष कम से कम 2 मिलियन टन चीनी निर्यात करने का लक्ष्य तय कर दिया था.

सरकार के इस फैसले के बाद चीनी मिलों का दावा था कि उसे 2 मिलियन टन चीनी निर्यात करने की मजबूरी के चलते लगभग 150 डॉलर प्रति टन का का नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि वैश्विक स्तर पर चीनी की कीमतें ढाई साल के निचले स्तर पर है.

WTO की लटक रही तलवार?

हालांकि केन्द्र सरकार के इस फैसले के बाद संभावना जताई जा रही है कि इससे ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया और थाइलैंड जैसे प्रतिद्वंदी देश भारत के खिलाफ वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन का दरवाजा खटखटा सकते हैं. हालांकि मोदी सरकार में सूत्रों का दावा है कि सरकार ऐसा नहीं सोचती क्योंकि उसका यह फैसला चीनी मिलों को निर्यात बढ़ाने के लिए नहीं बल्कि खस्ताहाल चीनी उद्योग में गन्ना किसानों की बदहाली को देखते हुए लिया जाएगा. वहीं जानकारों का दावा है कि इस फैसला का सीधा फायदा देश के चीनी उद्योग को मिलेगा और उनके लिए निर्धारित सीमा तक चीनी निर्यात करने का काम आसान हो जाएगा.

बदहाल हैं गन्ना किसान

मोदी सरकार का दावा है कि गन्ना किसानों को 55 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान करने की योजना से डब्लूटीओ के नियमों का उल्लंघन नहीं होगा. बल्कि इस योजना से देश में 5 करोड़ गन्ना किसानों की आर्थिक स्थिति में थोड़ा सुधार होगा. इसके साथ ही केन्द्र सरकार का दावा है कि इस योजना से गोदाम में पड़े चीनी के स्टॉक्स की समस्या से जूझ रही 524 चीनी मिलों को भी राहत पहुंचेगी.

केन्द्र सरकार की योजना के मुताबिक गन्ना के तय समर्थन मूल्य में 55 रुपये सरकार अदा करेगी वहीं बाकी की रकम चीनी मिलों को वहन करना होगा. गौरतलब है कि केन्द्र सरकार प्रति वर्ष चीनी मिलों द्वारा किसान को गन्ने का भुगतान करने का दर निर्धारित करती है लेकिन गन्ना उत्पादन के लिए सबसे प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश में किसानों को खुश करने के लिए कीमतों में इजाफा कर दिया जाता है. वित्त वर्ष 2017-18 में प्रति 100 किलो गन्ने का समर्थन मूल्य 255 रुपये निर्धारित किया था लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे बढ़ाकर 315 रुपये प्रति 100 किलो कर दिया था.

भरे हैं चीनी मिलों के गोदाम

केन्द्र सरकार द्वारा गन्ने की समर्थन मूल्य निर्धारित करने के कारण जहां प्रति वर्ष गन्ने की कीमत में इजाफा हो जाता है वहीं इस क्षेत्र में वैश्विक कारोबार मंद होने के कारण चीनी की कीमतें लगातार कम हो रही हैं. चीनी मिलों का दावा है कि इसके चलते उनके लिए किसानों को गन्ने का भुगतान करने में समस्या आती है और बड़ी संख्या में किसानों को उनकी फसल के लिए भुगतान नहीं हो पाता है.

गौरतलब है कि ब्राजील के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है. 2017-18 सीजन में 30 सितंबर तक 20.3 मिलियन टन अधिक चीनी उत्पादन की उम्मीद है जिसके चलते घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में 15 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिलेगी. चीनी मिलों का कहना है कि घरेलू बाजार में भी चीनी की कीमतों में गिरावट से उनका मुनाफा कम हो जाता है और किसानों को समय से भुगतान कर पाना उनके लिए मुमकिन नहीं रहता.

आंकड़ों के मुताबिक चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का अभीतक लगभग 17 हजार करोड़ रुपये बकाया है. इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश देश में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है. यहां शुगर मिल्स पर गन्ना किसानों का लगभग 7200 करोड़ रुपये बकाया है. इसके बाद महाराष्ट्र और कर्नाटक में किसानों का शुगर मिल्स पर लगभग 5000 करोड़ रुपये बकाया है. वहीं बिहार, उत्तराखंड, हरियाणा, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में कुल किसानों का कुल 4000 करोड़ रुपये बकाया है.

 

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