राजनयिक विवाद: क्या पाकिस्तान में अमेरिका की नाराजगी झेलने का दम है?
इस्लामाबाद। जैसे को तैसा, करारा जवाब या फिर ईंट का जवाब पत्थर से. ये कुछ बानगी है पाकिस्तान में उर्दू अखबारों के संपादकीयों की. दरअसल अमेरिका में पाकिस्तानी राजनयिकों के आने जाने पर कई तरह की पाबंदियां लगाई गई हैं. खासकर पाकिस्तानी राजनियकों को दूतावास या वाणिज्य दूतावासों से 25 मील के दायरे से बाहर जाने के लिए अमेरिकी अधिकारियों की इजाजत लेनी होगी. इसके जबाव में, ठीक वैसी ही पाबंदियां पाकिस्तान ने अपने यहां मौजूद अमेरिकी राजनयिकों पर लगा दी हैं.
दिन रात को अमेरिका को कोसने वाले कई पाकिस्तानी अखबार अपनी सरकार के इस फैसले पर फूले नहीं समा रहे हैं. वहीं कुछ अखबारों ने सवाल उठाया है कि क्या पाकिस्तान में इतना दम है कि वह अमेरिका की नाराजगी झेल सके, वह भी ऐसे समय में, जब ईरान के खिलाफ अमेरिका नए सिरे से कड़े प्रतिबंध लगाने जा रहा है और भारत के साथ उसकी साझेदारी लगातार मजबूत हो रही है.
पाकिस्तान में इसे बदले की कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है
रोजनामा ‘उम्मत’ लिखता है कि पाकिस्तान में अमेरिकी राजनयिकों को मिलने वाला ‘वायसराय स्टेटस’ अब खत्म कर दिया गया है. अखबार के मुताबिक नए नियमों के तहत अमेरिकी राजनियकों को अगर कहीं जाना है या फिर अपनी रहने की जगह बदलनी है तो उन्हें इसकी पहले से इजाजत लेनी होगी. इसके अलावा एयरपोर्ट और बंदरगाहों पर उनके सामान की स्कैनिंग भी होगी. यहां तक कि सिम इस्तेमाल करने और कार किराए पर लेने के लिए भी उन्हें पूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा.
अखबार कहता है कि अमेरिका में पाकिस्तानी राजनियकों पर पाबंदियां बदले की कार्रवाई के तहत लगाई गईं क्योंकि 22 साल के एक पाकिस्तानी युवक को अपनी गाड़ी से कुचलने वाले अमेरिकी राजनयिक कर्नल जोसेफ के पाकिस्तान से बाहर जाने पर रोक लगा दी गई है. अखबार के मुताबिक अब देखना है कि पाकिस्तान सरकार कब तक अपने फैसले पर कायम रहते हुए अमेरिकी दबाव के सामने झुकने से इनकार कर पाती है.
‘औसाफ’ पाकिस्तान में अमेरिकी राजनयिकों पर लगाई गई पाबंदियों को दुरुस्त बताता है. अखबार लिखता है कि दुनिया भर में जहां भी पाकिस्तानियों के साथ भेदभाव होता है, उन सभी देशों के नागरिकों, राजनयिकों और अन्य शख्सियतों से भी पाकिस्तान आने पर संबंधित कानूनों के मुताबिक ही डील किया जाए. अखबार कहता है कि अगर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को निजी या सरकारी दौरों के दौरान तलाशी से गुजरना पड़ता है तो हमें भी अपने देश के कानून के मुताबिक चलना चाहिए.
अमेरिकी नाराजगी का मतलब समझता है पाकिस्तान?
‘नवा ए वक्त’ लिखता है कि पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने जैसे को तैसा जवाब तो दे दिया लेकिन इस पर ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है. अखबार सवाल पूछता है कि अंदरूनी और बाहरी चुनौतियों को देखते हुए क्या पाकिस्तान इस हालत में है कि वह अमेरिका की नाराजगी मोल ले सके. अखबार कहता है कि यह बात सही है कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्तों में दरार पैदा हुई है, लेकिन फिर भी क्या हालात को उस हद तक ले जाना चाहिए, जहां से वापसी के सारे रास्ते बंद हो जाएं.
अखबार लिखता है कि ईरानी डील से बाहर निकलने के फैसले के बाद अमेरिका ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगा सकता है. अखबार को डर इस बात का है कि पाकिस्तान की अमेरिका विरोधी नीतियों से नाराज होकर अगर ट्रंप ने पाकिस्तान को भी सबक सिखाने की ठान ली तो पाकिस्तान के लिए अपनी अर्थव्यवस्था को संभालना मुश्किल हो जाएगा और फिर शायद चीन भी ज्यादा मदद न कर पाए.
रोजनामा ‘एक्सप्रेस’ लिखता है कि अमेरिका और पाकिस्तान लगातार एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं और ये दूरियां जितनी बढ़ेंगी, हालात उतने ही तनावपूर्ण होंगे. अखबार की राय में, हालात खराब होना किसी के भी हित में नहीं होगा, इसलिए दोनों देशों के नेतृत्व को इन्हें संभालने की तरफ ध्यान देना चाहिए. अखबार कहता है कि अतीत की मिसालों को देखते हुए यह तनाव भी दूर हो जाएगा, लेकिन इस हकीकत को भी ध्यान में रखना होगा कि अब दोनों देशों के रिश्ते उतने नजदीकी नहीं रहे, जैसे पहले कभी हुआ करते थे.
पाकिस्तान ने अमेरिका को दिया मुंह तोड़ जवाब
बहरहाल, पाकिस्तान सरकार के फैसले पर बल्लियां उछालने वालों की भी कमी नहीं है. रोजनामा ‘वक्त’ लिखता है कि पाकिस्तान ने अमेरिका को करारा जवाब दे दिया जो उसके तौर तरीकों और चालाक नीतियों का मुंह तोड़ जवाब है. अखबार आगे कहता है कि पाकिस्तान ने साबित कर दिया है कि वह एक आजाद और खुदमुख्तार देश है जो दोस्तों के साथ दोस्ती निभाता है जबकि नफरत और घमंड का जवाब ठीक इसी तरह के जज्बात से देता है.
रोजनामा ‘दुनिया’ लिखता है कि जवाबी पाबंदियां लगाकर पाकिस्तान ने एकदम दुरस्त कदम उठाया है क्योंकि देशों के बीच संबंधों को बराबरी की बुनियाद पर आगे बढ़ाया जा सकता है. अखबार के मुताबिक यह सही है कि जवाबी पाबंदियों के कारण पहले से ही खराब चल रहे पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते और बिगड़ सकते हैं, लेकिन पाकिस्तान अगर इन पाबंदियों को चुपचाप सह लेता तो अगले चरण में और भी पाबंदियां लगाई जा सकती थीं.
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