राहुल गांधी की दलितों को लुभाने की कोशिश कितना रंग लाएगी?

नई दिल्ली। राहुल गांधी 23 अप्रैल को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में ‘संविधान बचाओ देश बचाओ’ रैली के जरिए दलितों को कांग्रेस से जोड़ने की मुहिम का आगाज करेंगे. यह सम्मेलन सुप्रीम कोर्ट के एससी-एसटी एक्ट के फैसले के बाद हो रहा है. इसमें ग्राम पंचायत, न्याय पंचायत, नगर पंचायत के साथ ही सभी चुने हुए दलित प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे. इसमें पूर्व प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया गया है.

इस सम्मेलन के बाद कांग्रेस हर प्रदेश में दलितों को पार्टी से जोड़ने की मुहिम चलाएगी. चुनाव वाले राज्यों में यह प्रोग्राम पहले शुरू होगा. साल के आखिर में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं इसे देखते हुए पार्टी इन राज्यों में भीम यात्रा भी निकालेगी. यही नहीं कांग्रेस दलित लीडरशिप को जोड़ने के लिए हर जिले में लीडरशिप केंद्र भी चलाएगी. लेकिन पार्टी की बड़ी योजना हर विधानसभा क्षेत्र में दलित कांग्रेस सहायता केंद्र खोलने की है. जिससे पार्टी के पास दलित समाज के लोगों को सीधे जोड़ने का मौका मिल सकता है. हालांकि पूरी कवायद राहुल गांधी को दलित हितैषी नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने के लिए की जा रही है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राहुल गांधी खुल कर इसके विरोध में दिखाई पड़ रहे हैं. जबकि पार्टी के कई नेताओं को लग रहा था कि इस मसले में पार्टी को पक्ष नहीं लेना चाहिए था. लेकिन आखिरी वक्त में राहुल गांधी को लगा कि दलित समाज के इस गुस्से को कांग्रेस के पक्ष में मोड़ा जाए. इसलिए राहुल गांधी सरकार के ऊपर हमलावर हो गए हैं.

राहुल गांधी को लगता है कि देश का दलित नरेंद्र मोदी और बीजेपी सरकार से नाराज है

राहुल गांधी को लगता है कि देश का दलित वर्तमान में नरेंद्र मोदी और बीजेपी सरकार से नाराज है

दलितों को जोड़ने की जद्दोजहद

कांग्रेस में दलितों को जोड़ने को लेकर जद्दोजहद काफी दिनों से चल रही है. पार्टी ने पहले सुशील कुमार शिंदे और बाद में मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी का दलित चेहरा बनाने की कोशिश की थी. मीरा कुमार को भी मैस्कॉट के तौर पर पेश किया गया. फिर पी एल पुनिया को पार्टी ने तरजीह देना शुरू किया. लेकिन मायावती के होते हुए ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई. पार्टी ने गुजरात के विधानसभा चुनाव में जिग्नेश मेवाणी को आउटसोर्स किया. जिसमें सफलता तो मिली लेकिन उतनी नहीं जितनी बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए जरूरी थी.

हालांकि राहुल गांधी ने रिटायर्ड दलित आईएएस अफसर के राजू को अपने दफ्तर की कमान दे रखी है. कांग्रेस के एससी सेल के मुखिया और इस प्रोग्राम के कर्ताधर्ता नितिन राउत का कहना है कि बीजेपी के ‘मुंह में भीम है, लेकिन पेट में मनु बैठे हुए हैं. इसलिए बीजेपी के राज में दलितों पर अत्याचार बढ़ा है. बीजेपी समता के नाम पर खिलवाड़ कर रही है.’ हालांकि 2 अप्रैल की भारत बंद घटना से कांग्रेस में उत्साह है, जिसके बाद नए तरीके से पार्टी दलितों के बीच पहुंचना चाहती है.

दलित–कांग्रेस की कैसे बनेगी जुगलबंदी

दलितों को जोड़ने के लिए कांग्रेस कई प्रोग्राम शुरू करने जा रही है. 14 अप्रैल, 2019 तक ‘संविधान बचाओ देश बचाओ’ रैली पूरे देश में की जाएगी. जिसकी शुरुआत राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से हो रही है. इन तीनों राज्यों में भीम यात्रा भी निकाली जाएगी. जिसमे ऑडियो विजुअल के जरिए कांग्रेस ने दलितों के लिए क्या किया है यह बताया जाएगा. इसके अलावा हर विधानसभा क्षेत्र में दलित कांग्रेस सहायता केंद्र खोला जाएगा. जिसके जरिए दलित समाज की समस्या हल करने की कोशिश की जाएगी. जिसमें एडमिशन से लेकर पेंशन तक सारा काम काग्रेस के कार्यकर्ता अंजाम देंगें. दलित के खिलाफ अत्याचार होने पर पार्टी के वर्कर थाने में पीड़ित की मदद करेंगे. दैवीय आपदा आने पर यह सेंटर काम करते रहेंगें.

राहुल गांधी को लगता है कि कांग्रेस में बाबू जगजीवन राम के बाद कोई भी दलित नेता प्रभावशाली होकर नहीं उभर पाया है

राहुल गांधी को लगता है कि कांग्रेस में बाबू जगजीवन राम के बाद कोई भी दलित नेता प्रभावशाली होकर नहीं उभर पाया है

इस प्रोग्राम के जरिए पार्टी के पास दलित समाज का अच्छा खासा डेटा भी उपलब्ध होने की उम्मीद है. राहुल गांधी को लग रहा है कि बाबू जगजीवन राम के बाद कांग्रेस में कोई प्रभावशाली दलित नेता नहीं उभर पाया है. इसलिए हर जिले में लीडरशिप सेंटर खोलकर पार्टी नौजवान नेताओं की टीम हर जगह खड़ी करेगी. हालांकि यह काम इतना आसान नही हैं. क्योंकि दलितों के बीच बीजेपी और आरएसएस काफी दिन से काम कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए नए नेता बनाना काफी कठिन काम होगा.

बीजेपी के पास सबसे ज्यादा एससी-एसटी सांसद

2014 के लोकसभा चुनाव में दलित मतदाताओं ने बीजेपी को काफी वोट दिया था. जिससे बीजेपी के सांसदों की संख्या बढ़ गई. एससी के लिए रिजर्व 84 लोकसभा सीटों में से 40 पर बीजेपी का कब्जा है. वहीं एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में बीजेपी का आधे से अधिक यानी 26 सीट पर कब्जा बना हुआ है. पिछले आम चुनाव से पहले इतनी संख्या में दलित बीजेपी के साथ नहीं थे. बीजेपी को दलितों के तकरीबन 24 फीसदी वोट मिले थे.

इससे पहले के चुनाव में दलित वोट बीजेपी के खाते में सिर्फ 10 से 12 फीसदी तक ही थी. इस वोट के बदौलत ही बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में सहयोगी दलों के साथ 73 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की और बीएसपी सिफर पर पहुंच गई. जाहिर है इसलिए कांग्रेस को अब मौका मिला है कि वो दलितों का रूझान कांग्रेस की तरफ मोड़ने की कोशिश करे.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित संगठनों द्वारा 2 अप्रैल को बुलाए गए भारत बंद का एक दृश्य

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दलित संगठनों द्वारा 2 अप्रैल को बुलाए गए भारत बंद का एक दृश्य

कोर्ट के फैसले से कांग्रेस में आया दम

गुजरात के ऊना और रोहित वेमुला की घटना के बाद दलित आक्रोशित हो गए. इसका नतीजा यह हुआ कि गुजरात में एक बड़ा तबका बीजपी का साथ छोड़कर कांग्रेस के साथ आ गया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद जिस तरह से दलित आंदोलित हुए इससे कांग्रेस को लगा कि समय सही है. बीजेपी के 5 दलित सांसद सरकार और पार्टी के खिलाफ खुलकर मैदान में आ गए हैं जिससे बीजेपी की काफी फजीहत हो रही है.

बीजेपी भी दलितों की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती. इसलिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले पर फिर से गौर करने की अपील की है. पार्टी के सांसदों ने दलित समाज को अपने साथ जोड़ने के लिए कार्यक्रम भी चलाया था. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऊना की घटना के बाद सख्त लहजे में बयान दिया था. लेकिन दलितों के ऊपर अत्याचार की ज्यादातर शिकायतें बीजेपी शासित राज्यों से आ रही हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ने नया फरमान भी जारी कर दिया था. लेकिन पार्टी की किरकरी होने के बाद इसे वापस लेना पड़ा.

 

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