राहुल गांधी सभी प्रमुख विपक्षी दलों की नापसंद, ममता,ओबैसी सहित अखिलेश भी हुये अलग

लखनऊ। कांग्रेस पार्टी का यह दुर्भाग्य है या कहे  उनके कर्मों की सज़ा जो भाजपा की मुह मांगी मुराद के अनुरूप देश से कांग्रेस निरंतर मुक्त होती जा रही है। निकट वर्षो में देंखे तो पंजाब को छोड़कर कही भी उनकी सम्मानजनक स्थिति नही रही है। महागठबंधन के मुद्दे पर भी ममता बनर्जी, ओबैसी, लालू यादव और मायावती जैसे लोगो की नस्पसन्द है राहुल गांधी। सपा भी इस मामले में अब राहुल के साथ नही है।

राहुल गांधी के  उपाध्यक्ष काल से लेकर अध्यक्ष बनने के बाद तो स्थिति बद से  बत्तर होती जा रही है।इस अवंधि मे कांग्रेस 17 स्थानों पर अपना शासन खो  चुकी है। विरासत में मिली राजनीति  अनुभव न होने के कारण विलुप्त होना स्वाभाविक होती है। सोनिया गांधी का काल भी अनुभवहीनता के कारण सफल नही हो सका था। राजीव गांधी की सहानुभूति का लाभ उन्हें जरूर मिला पर ख्वाब पूरे नही हो सके।

वर्तमान राजनीति के परिवेश में देखे तो कांग्रेस पार्टी अपने चाल और चरित्र के कारण असफलता की ओर बढ़ती रही है। झूठ बेईमानी धोखेबाज़ी और चालबाज़ी से पूरा देश त्रस्त हो चुका है।जनेऊ का धारण कर हिन्दू बनने का ढोंग ही क्यो न हो, देश सभी बातों की असलियत समझ चुका है। पी चिदंबरम पर कल न्याय मंत्री द्वारा प्रेस कांफ्रेंस कर लगाए गए आरोपो ने पूरी कांग्रेस पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

कांग्रेस की बची खुची लाज टीवी चैनलों पर बैठने वाले प्रवक्ता डुबो देते है। राहुल गांधी का बचाओ तो दूर, कांग्रेस पर लगे आरोपो के संबंध में पूंछे गये प्रश्नों का जवाब न दे पाने की स्थिति में बहस में अलग मुद्दों पर बात करके उसे दूसरी दिशा में मोड़ने का ही प्रयास करते है।भाजपा पर लगाने वाले आरोपो में खुद ही फसने वाली पार्टी के वरिष्ठ नेता भी पार्टी से दूरी बनाए दिखाई देते है। जो पुराने नेता पार्टी से जुड़े होने की बात कर रहे है, पी चिदाम्बरम जैसे ही सिर्फ ऐसे लोग है जो  कही न कही किसी न किसी घोटाले या भ्र्ष्टाचार में लिप्त है।यह नेता अपने बचाओ के कारण पार्टी से जुड़े है या पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी स्वंम फसने के डर से उन्हें जोड़े हुए है।

इधर यूपी में फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीटों पर हो रहे चुनाव में बहुजन समाजवादी पार्टी ने अपनी स्थिति कमजोर मानते हुए तथा कुछ समय पूर्व पार्टी से अलग हुए नेताओ के कारण उपचुनाव में अपना उम्मीदवार नही उतारा। भाजपा इसे हार का डर मानती है।कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने भाजपा के साथ साथ दोनों जगह से अपना उम्मीदवार खड़ा किया।

फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीटों पर कांग्रेस द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारो की स्थिति क्षेत्र मे बहुत अच्छी मानी जाती है और वे दोनों ही भाजपा को परास्त करने की कूबत रखते है। कांग्रेस को उम्मीद थी कि इन उम्मीद्वारो को देखते हुए समाजवादी पार्टी उनके उम्मीद्वारो को जिताने में कांग्रेस का साथ देंगी।

यूपी में अपनी प्रतिष्ठा कायम रखने और प्रदेश में पार्टी को सक्रिय बनाये रखने के उद्देश्य से समाजवादी पार्टी ने दोनों ही सीट जीतने की इच्छा रखते हुए दोनों जगह से अपने उम्मीदवार खड़े किए है। बता दे कि दोनों ही सीटे प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ और उप मुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से रिक्त हुई थी जो यूपी  भाजपा के लिए भी बड़ी संवेदनशील और प्रतिष्ठा की सीट है।

बताते है कि सपा अध्य्क्ष अखिलेश यादव अपनी बात पर अडिग रहने वाले युवा और निडर नेता है और लिया गया निर्णय जल्दी परिवर्तित नही करते है। अखिलेश यादव ने फूलपुर और गोरखपुर दोनों ही सीट से केवल चुनाव लड़ने ही नही बल्कि उसे जीतने का भी मन बना लिया है।  इस निर्णय में इन्होंने किसी अन्य राजनीतिक दल यहां तक कि अपने दोस्त रहे राहुल गांधी को भी विश्वास में नही लिया। कदाचित इसका कारण विधान सभा चुनाव मे कांग्रेस  का साथ लेने से खोई हुई सत्ता थी।

 

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