रिटायरमेंट के बाद भी बिना छुट्टी क्यों ड्यूटी पर तैनात हैं दिल्ली पुलिस के बलजीत राणा
चलने-फिरने, बोलने वाला रोबोट तो देखा-सुना गया है. लेकिन चलने-फिरने और बोलने वाले सीसीटीवी (क्लोज सर्किट कैमरा) शायद अभी तक दुनिया में कहीं नहीं बन सके हैं. चौंकिए नहीं ऐसा इंसानी सीसीटीवी है दिल्ली पुलिस के पास. जो चलता-फिरता, बोलता भी है और पैनी नज़र भी रखता है. इस सीसीटीवी को अपनी आंखों से देखने के लिए भारत के साथ-साथ विदेशियों का भी मजमा अक्सर लगता रहता है.
इस अजब-गजब इंसानी सीसीटीवी की ‘ड्यूटी’ के बारे में सुनेंगे तो दांतों तले उंगली दबा लेंगे. दो दशक से यह इंसानी सीसीटीवी न तो कभी खराब (बीमार) हुआ है, न ही कभी ड्यूटी से नदारद रहा है. इससे भी बड़ा और चौंकाने वाला सच यह है कि, नौकरी से रिटायर होने के बाद भी यह इंसानी सीसीटीवी अब कई साल से बिना कोई खर्चा-पानी-मेंटीनेंस चार्ज (तनखा/वेतन) लिए, ‘फ्री’ में दिल्ली पुलिस की ‘ड्यूटी’ पर मुस्तैद है. 65 साल के इस इंसानी सीसीटीवी का नाम है बलजीत सिंह राणा.
सन् 1952 हरियाणा का कुंडल गांव
बलजीत सिंह राणा का जन्म 14 अगस्त सन् 1952 को दिल्ली से सटे हरियाणा के जिला सोनीपत के गांव कुंडल में हुआ था. नंबरदार पिता श्रीराम की तीन संतान शकुंतला, बलजीत और जगदीश सिंह में बलजीत सिंह राणा का स्थान दूसरा था. छोटे भाई जगदीश सिंह राणा दिल्ली पुलिस में ही सब-इंस्पेक्टर (ड्रिल इंस्ट्रक्टर पुलिस ट्रेनिंग सेंटर झड़ौदा) से 2016 में रिटायर हो चुके हैं. बलजीत ने गांव के ही सरकारी स्कूल से 1971 में हाई-स्कूल किया. इसके बाद 1 सितंबर 1972 को दिल्ली पुलिस में सिपाही बन गए.
राष्ट्रपति भवन में मिली पहली पोस्टिंग
आज दिल्ली के ‘मलाईदार’ (ऊपरी कमाई) थानों में नौकरी करने इच्छुक अधिकांश हवलदार-सिपाही सब-इंस्पेक्टर और इंस्पेक्टर राष्ट्रपति भवन और इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एअरपोर्ट (हवाई अड्डा) या फिर महकमे की ही किसी बटालियन की तैनाती (ड्यूटी) को ‘सूखी’ और ‘पनिश्मेंट’ पोस्टिंग कहते अक्सर देखे-सुने जाते हैं. सिपाही बनते ही बलजीत सिंह राणा को सन् 1973 में पहली पोस्टिंग उसी ‘राष्ट्रपति भवन’ में मिली. बकौल, बलजीत राणा- ‘नौकरी तो नौकरी है. फोर्स में ‘च्वाइस’ को नहीं ‘ड्यूटी’ को अहमियत देनी होती है. वरना ड्यूटी बोझ लगने लगती है. और फिर जहां ‘महामहिम’ (राष्ट्रपति) रहते हों, उस घर/देहरी की ड्यूटी देना तो देश में सबसे बड़े सम्मान की बात है किसी भी ‘जवान’ के लिए.’
दिल्ली पुलिस महकमे में चलते-फिरते और बोलने वाले सीसीटीवी (क्लोज सर्किट कैमरा) के रुप में मशहूर बलजीत सिंह राणा के मुताबिक – ‘1 सितंबर 1976 को उन्हें राष्ट्रपति भवन से ट्रांसफर करके नई दिल्ली जिले के पार्लियामेंट थाने में भेज दिया गया. सन् 1982 में हवलदार के पद पर प्रमोट कर दिए गए. उस वक्त जिले के डीसीपी (जिला पुलिस उपायुक्त) थे वी.के. गुप्ता, जो बाद में दिल्ली पुलिस कमिश्नर के पद से रिटायर हुए. वीके गुप्ता ने बलजीत राणा को संसद मार्ग थाने की पोस्टिंग के दौरान ही नई दिल्ली जिले की ‘डिप्लोमेट-सेल’ में ‘इंचार्ज’ के पद पर तैनात कर दिया.
‘डिप्लोमेट सेल’ ड्यूटी मतलब 24 घंटे की सिरदर्दी
इस ड्यूटी में वीवीआईपी/वीआईपी मूवमेंट (विदेशी मेहमानों की सुरक्षा और रुट निर्धारण), जंतर-मंतर पर रोज होने वाले धरना-प्रदर्शन को शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न कराना, फोर्स का इंतजाम आदि-आदि डिप्लोमेट-सेल इंचार्ज की प्रमुख जिम्मेदारी होती है. मतलब सुबह 7 बजे से रात 11 बजे तक की हाड़तोड़ ड्यूटी. यही वजह है कि, यह ड्यूटी हर वक्त तलवार की धार पर टिकी रहती है. जरा सी गलती मतलब दिल्ली और देश में बबाल मचाने वाली खबरों को जन्म देना. जिला पुलिस उपायुक्त वी.के. गुप्ता ने ऐसे संवेदनशील पद की जिम्मेदारी बलजीत सिंह राणा को सौंप दी. डिप्लोमेट सेल इंचार्ज बनाकर.
1970 की दिल्ली पुलिस को बदलते देखा है आंखों से
बकौल बलजीत सिंह राणा, – ‘1970 के दशक में मैने जब दिल्ली पुलिस ज्वाइन की, तब की पुलिस और आज की पुलिस बहुत बदल चुकी है. उस समय दिल्ली में महानिरीक्षक (आईजी सिस्टम) सिस्टम था. लीला सिंह विष्ट दिल्ली के आईजी थे. कश्मीरी गेट स्थित रिट्ज सिनेमा के पीछे दिल्ली पुलिस मुख्यालय होता था. पुलिस कमिश्नर सिस्टम दिल्ली में लागू हुआ तो, जे.एन. चतुर्वेदी पहले पुलिस कमिश्नर बनाए गए.’ इन चार दशक में बजरंग लाल, राजा विजय करण, सुभाष टंडन, वीएन सिंह, एमबी कौशल, निखिल कुमार, एसएस जोग, अरुण भगत, तिलक राज कक्कड़, राधेश्याम गुप्ता, अजय राज शर्मा (सीमा सुरक्षा बल के रिटायर्ड महानिदेशक), वाईएस डडवाल, केके पॉल (अब उत्तराखंड के राज्यपाल), वीके गुप्ता, भीमसेन बस्सी, नीरज कुमार, आलोक वर्मा (अब सीबीआई निदेशक) कुर्सी पर आकर चले गये, मगर मैं 40 साल की कुल नौकरी में से 35-36 साल की नौकरी एक पोस्ट/ दफ्तर (डिप्लोमेट सेल इंचार्ज) के पद पर रहकर 31 अगस्त 2012 में रिटायर हुआ. बताते हुए बलजीत सिंह हंस पड़ते हैं.
नौकरी में यह भी अजब इत्तिफाक ही रहा
इसे इत्तिफाक ही कहेंगे कि, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी जिन वीके गुप्ता ने नई दिल्ली जिले का पुलिस उपायुक्त रहते हुए, बलजीत सिंह राणा को डिप्लोमेट सेल इंचार्ज के पद पर बैठाया था, उन्हीं वीके गुप्ता के दिल्ली पुलिस के कमिश्नर कार्यकाल में बलजीत सिंह सब-इंस्पेक्टर पद से रिटायर हुए. जब नई दिल्ली जिले की दबंग महिला आईपीएस कंवलजीत देओल डीसीपी थीं, और दिल्ली पुलिस कमिश्नर एमबी कौशल थे, उस वक्त सन् 1992 में बलजीत सिंह सहायक पुलिस उप-निरीक्षक पद पर प्रमोट हुए. जबकि टीएन मोहन के नई दिल्ली जिले के डीसीपी और वीएन सिंह की पुलिस कमिश्नरी के वक्त में (सन् 1998) में बलजीत राणा सब-इंस्पेक्टर बने. और फिर इसी पद से अगस्त 2012 में रिटायर हो गए.
बलजीत सी ‘गोपनीय रिपोर्ट’ शायद ही किसी दारोगा की लिखी गई हो
किसी भी सरकारी नौकरी में डिपार्टमेंटल सर्विस रिकॉर्ड (एसीआर) में लिखी गई टिप्पणी पर कर्मचारी का बहुत कुछ भविष्य निर्भर करता है. नई दिल्ली जिले में एडिश्नल पुलिस कमिश्नर (अतिरिक्त पुलिस आयुक्त) बनने पर केशव द्विवेदी (अब रिटायर्ड) ने जैसी एसीआर बलजीत सिंह राणा की लिखी, वैसी एसीआर दिल्ली पुलिस में क्या किसी भी महकमे में और किसी भी कर्मचारी की कम ही देखने-पढ़ने को मिलती हैं. बकौला राणा, केशव द्विवेदी ने लिखा- ‘मैंने अपनी भारतीय पुलिस सेवा की अब तक कि अवधि में ऐसा कोई कर्मचारी महकमे में नहीं देखा जिसने कई साल से लगातार कोई छुट्टी न ली हो.
चाहे वो शनिवार-रविवार का अवकाश ही क्यों न हो, जोकि कर्मचारी को सरकार द्वारा प्रदत्त हक है. यहां तक कि, बलजीत सिंह राणा ने मेडिकल लीव, अर्न लीव तक का उपभोग भी कई साल से नहीं किया है. मतलब राणा ने 24 घंटे और 365 दिन नौकरी के लिए दिए हैं. जोकि पहली नजर में अविश्वसनीय जरुर लगता है, मगर यह है अविस्मरणीय और अनुकरणीय. दिल्ली पुलिस महकमे के लिए बलजीत सिंह राणा जैसा जवान/कर्मचारी सम्मान/ सौभाग्य की बात है.’
रिटायरमेंट के बाद भी दिल्ली पुलिस की ड्यूटी में
अमूमन देखने-सुनने में यही आता है कि, रिटायरमेंट के बाद इंसान (सरकारी कर्मचारी) खुद को बूढ़ा और लाचार सा महूसस करने लगता है. बलजीत सिंह राणा इस मामले में बाकी सबसे अलग साबित हुए हैं. 1 अगस्त 2012 को दिल्ली पुलिस से रिटायर हो चुके राणा का मामला उस वक्त दिल्ली पुलिस कमिश्नर रहे वी.के. गुप्ता खुद दिल्ली के तत्कालीन उप-राज्यपाल के पास लेकर पहुंचे थे. वीके गुप्ता की मेहनत रंग लाई. उप-राज्यपाल ने पुलिस कमिश्नर की सलाह पर और राणा के दिल्ली पुलिस सर्विस रिकॉर्ड के आधार पर उन्हें डिप्लोमेट सेल प्रभारी (बतौर कंसलटेंट) पद पर ही बने रहने की अनुमति अस्थाई रुप से दे दी. और मेहनताना (कंसलटेंसी फीस) तय हुई 10 हजार 570 रुपया प्रति माह.
खुद्दारी को रास नहीं आई वो ‘सरकारी फीस’
बकौल बलजीत सिंह राणा, कुछ समय बाद मुझे लगा कि, जिस दिल्ली पुलिस ने मुझे देश-दुनिया में बलजीत सिंह राणा बनाया, उससे रिटायरमेंट के बाद कंसलटेंसी फीस लेना ठीक नहीं है. लिहाजा मेरे अनुरोध पर पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार के वक्त में मुझे इस बोझ (कंसलटेंसी फीस लेने से) से भी दिल्ली पुलिस महकमे ने मुक्त कर दिया. उसके बाद से (1 अगस्त 2013) से अब तक मैं दिल्ली पुलिस में उसी कुर्सी और उसी पद पर (डिप्लोमेट सेल इंचार्ज) बैठकर निशुल्क सेवा (ड्यूटी) दे रहा हूं, जहां मैंने वेतन लेकर हवलदार से दारोगा बनने तक (करीब 36 साल) ड्यूटी की थी. किसी इंसान के लिए अपने महकमे में भला इससे बड़ा और क्या सम्मान हासिल हो सकता है? मुझसे ही पूछने लगे बलजीत सिंह राणा. और उनके इस सवाल पर मैं उनके सम्मुख निशब्द-निरुत्तर था.
20 साल से बिना छुट्टी के बेनागा ड्यूटी पर हाजिर
दिल्ली पुलिस पहले भी थी आगे भी रहेगी. सच मगर यह जरुर है कि, दिल्ली पुलिस में बलजीत सिंह राणा सा दूसरा न पहले था. न आईंदा जल्दी ही मिल पाएगा. शायद ‘बलजीत सिंह राणा’ ही होती होगी परिभाषा ‘बिरला’ और ‘अनूठे’ जैसे अल्फाजों की. बकौल बलजीत सिंह राणा, – ‘1 सितंबर 1998 यानि करीब 20 साल से मैंने अब तक कोई अर्न लीव, आकस्मिक लीव, मेडिकल-सिक लीव (अवकाश) ली है. न ही रविवार-शनिवार की दिल्ली पुलिस द्वारा प्रदत्त कोई साप्ताहिक अवकाश. जैसे नौकरी करते वक्त आता था, वैसे ही आज भी (रिटायरमेंट के बाद फ्री सेवा में) सुबह 7 बजे पार्लियामेंट थाना परिसर स्थित अपने पुराने आफिस में पहुंच जाता हूं, जबकि घर पहुंचने का वक्त वही रात को 11 बजे का पहले की तरह ही है. अगले दिन का पूरा इंतजाम लगाकर.’
बलजीत को ‘बिरला’ बनाने वाला राज
इस तमाम सफलता के पीछे यहां बलजीत राणा के परिवार का अथाह सहयोग नजरंदाज नहीं किया जा सकता है. बकौल बलजीत सिंह राणा, ‘बच्चे कब कैसे बड़े हुए? कैसे-कैसे उनकी पढ़ाई पूरी हुई? कैसे रिश्ते नाते, सामाजिक जिम्मेदारियां परिवार द्वारा निभाईं गयीं मुझे नहीं मालूम. मैने बच्चों को बढ़ते नहीं, बल्कि बस बड़ा हुए ही देखा, यह कहूं तो झूठ नहीं होगा.’ इस सबके पीछे रीढ़ की हड्डी बनकर मजबूती से खड़ी हुईं राणा की पत्नी सुशीला देवी. यह सुशीला देवी का ही जिगर और हिम्मत थी कि, पति को 36 साल सुबह 7 बजे से रात 11 बजे तक की नौकरी करवाने में ऐसा सहयोग किया, जिसकी कल्पना ही बेईमानी लगती है.
इसमें भी 20 साल बिना एक भी दिन घर पर बिताए हुए, पति की ड्यूटी पूरी करा पाना बाकई काबिल-ए-तारीफ है. इन विपरीत हालातों में भी बलजीत सिंह की तीनों संतानों ने उच्च शिक्षा ग्रहण की. तीनों बच्चों की शादी हो चुकी है. बड़ी बेटी नीलम सिनसिनवाला दिल्ली से सटे हाईटेक शहर नोएडा में परिवार के साथ रह रही है. बेटा संजीत राणा एबीएन एम्रो बैंक में चंडीगढ़ में उच्च पद पर तैनात है. जबकि सबसे छोटी बेटी प्रिंयका राणा पति-बच्चों के साथ कई साल पहले मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया) जाकर बस गयीं. प्रिंयका ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता लेकर मेलबर्न में ही टीचर की नौकरी कर रही हैं.
इसलिए कभी नहीं लेनी पड़ी बीमारी की छुट्टी
खुद को बीमारियों से दूर रखने के लिए बलजीत लंच में आज भी सिर्फ और सिर्फ एक किलो छाछ या दही (मट्ठा) पीते हैं. डिनर में सिर्फ फल लेते हैं. हां ब्रेकफास्ट जरुर हैवी लेते हैं. इस वक्त बलजीत सिंह 65 साल से ऊपर की उम्र के हो चुके हैं, लेकिन सुबह पांच बजे उठकर रोजाना 5-6 किलोमीटर तेज-तेज दौड़ना, एक घंटे योगा करना जिंदगी में शुमार कर चुके हैं.
(लेखक अपराध मामलों से जुड़े स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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