वाराणसी पुल हादसा: 15 मौतों का गुनहगार कौन, सरकारी सिस्टम या सियासत?

लखनऊ।  चौकाघाट फ्लाईओवर हादसा सालों साल काशीवासियों के कलेजे को कंपाता रहेगा. ऐसी घटना, जिसका दुख, उसकी पीड़ा भरने में समय को भी वक्त लगेगा. अपनों को खो चुके लोगाें के लिए यह फ्लाईओवर जीवन भर सालने वाले दर्द की वजह बन गया है. बचाव कार्य पूरा होने के बाद अब हादसे की वजह का पोस्टमार्टम शुरू हो गया है. सरकारी विभागों में खुद का दामन साफ दिखाने की होड़ शुरू हो गई है. आखिर कौन है 15 मौतों का गुनहगार… सरकारी सिस्टम, घटिया इंजीनियरिंग या स्तरहीन होती सियासत.

दरअसल अपने निर्माण से ही चौकाघाट फ्लाईओवर विवादों में घिर गया था. तीन सरकारें बदलीं लेकिन इस फ्लाईओवर की सूरत नहीं बदल सकी. सबसे पहले बीएसपी सरकार में यह फ्लाईओवर बनना शुरू हुआ था लेकिन अदूरदर्शिता के चलते सहूलियत की जगह यह फ्लाईओवर परेशानी की वजह बन गया. इसकी लैंडिंग रोडवेज के ठीक सामने होने की वजह से आए दिन जाम लगने लगा. जिस फ्लाईओवर को जाम से छुटकारा दिलाने के लिए बनाया गया था, उसने चौकाघाट से लेकर लहरतारा तक पूरा ट्रैफिक सिस्टम ही ध्वस्त कर दिया. फ्लाईओवर शुरू हुआ और इसके साथ ही शुरू हो गई इसके विस्तार की चर्चा.

इसी बीच प्रदेश की सियासत बदल गई और एसपी सत्ता में आ गई. अखिलेश सरकार ने 2012 में सत्ता में आने के बाद इस फ्लाईओवर के विस्तार को स्वीकृति दे दी. तय हुआ कि इसकी लैंडिंग लहरतारा के पास होगी जिससे कि ट्रैफिक सिस्टम सुचारु रूप से चलता रहेगा. विस्तार के लिए बजट पास हो गया, काम भी शुरू हुआ लेकिन बेहद धीमी गति से क्योंकि चुनाव करीब नहीं था. हालत यह हुई कि पांच साल तक काम चला और एक चौथाई काम भी पूरा नहीं हो सका. बनारस सियासी दांवपेंच, नकारे सरकारी सिस्टम के बीच कराहता रहा.

सियासत और सरकार बदली, नहीं बदला तो बस पुल का हाल

एक बार फिर प्रदेश में राजनीति ने नई करवट ली और प्रचंड बहुमत के साथ बीजेपी ने प्रदेश की सत्ता संभाली. पीएम नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने की वजह से लोगों को उम्मीद हुई कि अब फ्लाईओवर मानक के अनुरूप और तय समय में बन जाएगा. फ्लाईओवर के विस्तार के लिए 77.41 करोड़ रुपए का बजट पास हो गया और 2017 दिसंबर तक काम पूरा करने का आदेश जारी हो गया. जिस फ्लाईओवर का एक चौथाई हिस्सा 5 साल में बना था, उसे कुछ महीने में पूरा करने का टारगेट मिल गया था. इसके पीछे मिशन 2019 था और बीजेपी चुनाव के पहले फ्लाईओवर का विस्तार पूरा कराना चाहती थी.

दिसंबर 2017 तक महज 27 फीसदी ही काम पूरा हो सका और एक बार फिर इसे पूरा करने की मियाद बढ़ानी पड़ी. इस बार मार्च 2018 तक इसे पूरा करने का टास्क दिया गया. चौंकाने वाली बात कि इतने दिनों में महज 27 प्रतिशत काम हुआ था और फिर कुछ ही महीने में 50 फीसदी विस्तार कार्य पूरा हो गया. वही सरकारी सिस्टम था, बस सरकार बदली थी. अब इसे पूरा करने की समय सीमा मार्च 2019 तय की गई है.

Varanasi

हादसे से ये साफ है कि यहां इंजीनियरिंग के साथ ही सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई. जहां इतना लंबा चौड़ा पुल बन रहा है वहां रूट डायवर्जन तक नहीं किया गया जो कि जीटी रोड है. कैंट रेलवे स्टेशन, रोडवेज सब यहीं. बावजूद इसके इधर से लगातार आवागमन चलता रहा. जानकारों की मानें तो जहां इस तरह का निर्माण होता है, उस पूरे इलाके में आवागमन प्रतिबंधित रहता है लेकिन ये यहां का सरकारी सिस्टम ही है जिसने इस पर कतई ध्यान नहीं दिया. हां, अब ये जरूर है कि सेतु निगम और ट्रैफिक पुलिस एक दूसरे पर इस लापरवाही का ठिकरा फोड़ रही है.

इस मामले में पुलिस ने भी की लापरवाही

इस हादसे में पुलिस भी कम कसूरवार नहीं. पहले सेतु निगम के परियोजना प्रबंधक के खिलाफ सिगरा थाने में मुकदमा दर्ज हो चुका है लेकिन पुलिस ने उस पर कोई कार्रवाई ही नहीं की. प्रबंधक ने भी मुकदमे को गंभीरता से नहीं लिया और निर्माण कार्य जारी रखा. वाराणसी एसएसपी ने फरवरी में सेतु निगम के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था. एसएसपी ने तीन बार इस निर्माणाधीन पुल का निरीक्षण किया था. सेतु निगम के परियोजना प्रबंधक को सुरक्षा की दृष्टि से लहरतारा से अंधरापुल के बीच ट्रैफिक वॉलेंटियर्स तैनात करने को कहा था. बावजूद इसके निगम ने ध्यान नहीं दिया. इस पर एसएसपी ने परियोजना प्रबंधक के खिलाफ सिगरा थाने में मुकदमा दर्ज कराया था. इस मुकदमे के बाद भी पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की.

चौकाघाट पुल

चौकाघाट पुल की लंबाई 1784 मीटर है. 63 पिलर वाले इस ओवरब्रिज की लागत 77.41 करोड़ है. सितंबर 2015 में इसका निर्माण शुरू हुआ था और इसे मार्च 2019 में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है.

 

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