विकास दुबे का अंत तो होना ही था, लेकिन उसे बगैर पूछताछ के मार डालने के पीछे किनके स्वार्थ थे ?

कज चतुर्वेदी शर्मा

मेरी जानकारी में पुलिस के लिए अनिवार्य है कि वह अपने असलाह को डोरी या जंजीर से बांध कर रखे . ऐसा न करना पुलिस में एक अपराध है — जब एक दुर्दांत अपराधी साथ हो तब पिस्टल जैसा छोटा अस्लाहा यदि बगैर डोरी के किसी पुलिसवाले ने रखा, जिसे विकास दुबे ने छीन लिया तो यह एक गंभीर अनुशासनहीनता या अपराध है — चित्र में देख लें पिस्टल में कोई डोरी नहीं है . क्योंकि पुलिस का बयान यह है —

“उसने मौका पाकर एसटीएफ के एक जवान की पिस्टल छीनकर भागने की कोशिश की. इसी के बाद एनकाउंटर शुरू हो गया. एसटीएफ ने विकास दुबे से हथियार सौंप सरेंडर करने को कहा, लेकिन इसके बावजूद वह नहीं माना तो पुलिस को मजबूरन गोली चलानी पड़ी”.
यदि नियमानुसार अस्लाहा डोरी के साथ जवान के कमर या पेंट की लूप में हो तो वह किसी दुसरे के हाथ नहीं जा सकता —-
एक बात और यह सभी जानते हैं कि ५५ साल के विकास दुबे के दोनों पैरों में लोहे की रॉड डाली हैं और वह भागना तो दूर सीधे सौ मीटर भी चलने में दिक्कत महसूस करता है — ऐसे में उसके भागने की त्योरी भी फर्जी प्रतीत होती है —

पुलिस ने स्पॉट के फोटो खिंचवाए हैं — यदि कोई सामान्य व्यक्ति भी उसे देखेगा तो समझ आ जाएगा कि सब कुछ फेब्रिकेटेड है — विकास दुबे का अंत तो होना ही था– लेकिन उसे बगैर पूछताछ के मार डालने के पीछे किनके स्वार्थ थे — किन लोगों ने उसके दो नम्र के पैसे को डकार लेने के लिए पुलिस को पैसा दिया ? कौन लोग उसे अभी तक बचा रहे थे– उसकी जगह उसकी लाश को एक काली पोलीथिन में बाँध देना असल में देश की सारी व्यवस्था में आ रही सधांध पर श्याह पन्नी डालना है
एक बात और , आजतक की एक कमरा टीम उज्जैन से पुलिस के काफिले का पीछा कर रही थी– कानपुर में बर्रा के आते ही अचानक ट्रेफिक रोक दिया गया और चेकिंग के नाम पर वाहनों को रोका जाने लगा– इसमें आजतक की टीम को कोई बाढ़ मिनट लगी- तब तक गाडी पलट गयी थी– गोली चल चुकी थी– विकास मारा जा चुका था– उसके गले के पास गोली लगी है जो उसके भेजे के पार हुयी —

हालांकि उसकी ह्त्या की इबारत तभी लिख दी गयी थी जब उसे उज्जैन में गिरफ्तार नहीं दिखाया गया- हालांकि उज्जैन पुलिस ने दावा किया कि उसके थैले से एक चाकू मिला लेकिन उस पर कोई केस दर्ज नहीं किया– उसे ट्रांजिट के लिए किसी अदालत में पेश नहीं किया गया — अर्थात उसकी कोई न्यायिक अभिरक्षा हुयी ही नहीं — वह पुलिस अभिरक्षा में था और उसी में मारा गया — एक मैजिस्ट्रेट जांच होगी– जैसी सभी मर्ग में होती है– कोई एस डी एम या तहसीलदार बयान दर्ज करेगा और मामला काले बसते में बंद–
(वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी शर्मा के फेसबुक वॉल से साभारये लेखक के निजी विचार हैं)

 

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