सबको कुछ न कुछ देकर ही गया अविश्वास प्रस्ताव

राजेश श्रीवास्तव 

शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध पहली बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया। यह ऐसा अविश्वास प्रस्ताव था जिसे लाने वालों को भलीभांति एहसास था कि वह इस पास नहीं करा पाएंगे। लेकिन इसके बावजूद वह इसे लेकर आयी। संसद के 12 घंटे की कार्रवाई में जहां सत्ता पक्ष ने अपनी ताकत का एहसास कराया वहीं अन्य विपक्षी दलों ने भी अपनी रणनीति में सफलता अर्जित की।

माना जा रहा है कि यह ऐसा मौका था जिसने सबको कुछ न कुछ दिया है। कांग्रेस यह जानते हुए भी कि निश्चित थी कि अविश्वास प्रस्ताव के नतीजे खिलाफ ही होंगे, कांग्रेस का एकमात्र लक्ष्य अविश्वास प्रस्ताव के साथ सरकार पर हमला करना था और राहुल गांधी को एक सक्षम नेता के रूप में पेश करना था। पार्टी ऊंचे मनोबल के साथ उभरी और उसने इस बात से आश्वस्त किया कि, राहुल गांधी ने अपने आत्मविश्वास से भरे आक्रामक भाषण और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाकर, आकर्षण का केंद्र बन गए।

हालांकि पार्टी के लिए अब यह चुनौती है कि इस फायदे को चुनावी जीत में कैसे बदले। राहुल ने पहली बार अपने को बेहतर साबित किया लेकिन हर बार की तरह अंत में आंख दबाकर उन्होंने अपनी गरिमा को कम कर लिया। जबकि भाजपा शुक्रवार के मतदान में विजेता बनकर उभरी। इसने दो तिहाई बहुमत के खुद के लक्ष्य से कहीं ज्यादा विश्वास मत हासिल किया जो सदन के 7० फीसदी से भी ज्यादा था। दोपहर में पार्टी ने जरूर झटके का सामना किया जब राहुल गांधी ने व्यक्तिगत और आक्रामक हमला किया। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के साथ ही पार्टी ने महसूस किया कि पूरी बहस फिर से उनकी पकड़ में आ गई है।

पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने ट्वीट किया कि यह जीत 2०19 के चुनावों की एक झांकी है। शिवसेना सदन की कार्यवाही से बाहर रही। सरकार का समर्थन करने का फैसला करने के बाद, फिर उसी शाम को अपना फैसला पलट दिया और आखिरकार अविश्वास प्रस्ताव और मतदान का बहिष्कार करने का निर्णय लिया। पार्टी के हर क्षण बदलते फैसले भाजपा के साथ उसके जटिल संबंध को दर्शाते हैं। यह केंद्र और महाराष्ट्र में सरकार में सहयोगी है। फिर भी, यह नाराज है और मानती है कि बीजेपी ने उसकी जगह कम कर दी है। यह अंदर नहीं है, लेकिन यह बाहर भी नहीं है।

तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी ने सरकार के पक्ष में मतदान किया। भाजपा के पक्ष में पार्टी की नजदीकी, खास तौर से जयललिता की मृत्यु के बाद जगजाहिर थी। इसने राजनीतिक और नीतिगत मुद्दों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से एनडीए का समर्थन किया है। ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि वे मतदान से दूर रहेंगे। लेकिन इस खुले समर्थन का असर तमिलनाडु में देखने को मिलेगा, टीडीपी ने सदन में अपने प्रस्ताव से बहस शुरू की थी। वह निश्चित तौर पर इस बात से खुश नहीं होगी कि सदन में हुई बहुत से विषयों पर चर्चा हुई लेकिन उनका आंध्र प्रदेश को विशेष दर्ज़ा देने से कोई खास ताल्लुक नहीं थी।

टीडीपी द्बारा लाए गए प्रस्ताव पर बहस किया, जिसका फायदा पार्टी को अपने राज्य में मिलेगा कि उसने राज्य के हितों के लिए केंद्र और दिल्ली को चुनौती दे दी। कुल मिलाकर 2०19 के पहले यह पहला ऐसा मौका सदन में सभी को मिला जब सबने अपने-अपने को बेहतर साबित करने की कोशिश की। कोई इसमें सफल रहा तो कोई चूक गया। लेकिन यह साफ हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने बड़ी चुनौती पेश कर पाना विपक्ष के लिए आसान नहीं है। विपक्ष जहां पूरी तरह से कांग्रेस के पीछे खड़ा नजर आ रहा था। उससे साफ हो गया कि 2०19 में राहुल और मोदी ही एक-दूसरे के सामने होंगे।

ऐसे में कांग्रेस के रणनीतिकारों को तय करना होगा कि वह राहुल के लिए ऐसी स्क्रिप्ट लिख्ों कि वह मोदी के सामने चुनौती पेश कर सकें। राहुल ने शुक्रवार को हमलावर रुख तो अख्तियार किया और भाजपा को चुनौती दे ही रहे थ्ो कि बाद में आंख मारकर सब चौपट कर लिया। उसने उनके सब किये कराये पर पानी फेर दिया।

 

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