111 साल पहले आज ही क्रिकेट की दुनिया ने देखा था एक अद्भुत कारनामा

विश्व मोहन मिश्र

नई दिल्ली। क्रिकेट के मौजूदा जमाने में अलबर्ट ट्रॉट का नाम भले ही अनजाना-सा लगता हो, लेकिन इस क्रिकेटर के नाम बड़े चौंकाने वाले रिकॉर्ड हैं. हैरानी वाली बात तो यह है कि ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुए इस ऑलराउंडर ने आज ही के दिन (22 मई) 1907 में ऐसा कारनामा किया, जो क्रिकेट के इतिहास में अब तक महज दो बार हुआ है.

एक ही पारी में दो हैट्रिक लेने का कारनामा

दरअसल, ट्रॉट ऐसे पहले गेंदबाज बने, जिन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट की एक पारी में दो हैट्रिक लेने का कीर्तिमान बनाया. इतना ही नहीं उन्होंने उस पारी के दौरान पहली हैट्रिक पूरी करने के बाद अगली गेंद पर भी विकेट निकाला, यानी 4 गेंदों में 4 विकेट लेने का यह पहला उदाहरण सामने आया.

ऐसे पूरी की एक पारी में ‘डबल हैट्रिक’

1892-1910 के दौरान ट्रॉट ने 375 प्रथम श्रेणी मैच खेले. विक्टोरिया और मिडिलसेक्स उनकी टीमें रहीं. उन्होंने 21.09 की औसत से 1674 विकेट लिये. मिडिलसेक्स ने 1907 में ट्रॉट का बेनिफिट मैच कराया. समरसेट के खिलाफ लॉर्ड्स में खेले गए मैच में ट्रॉट का चमत्कारी प्रदर्शन आज भी हैरान करता है. ट्रॉट प्रथम श्रेणी की एक ही पारी में दो हैट्रिक लेने वाले पहले गेंदबाज बन गए थे.

स्कोर बोर्ड (ईएसपीएनक्रिकइंफो)

-मैच के तीसरे दिन समरसेट को जीत के लिए 264 रन चाहिए थे. उम्मीद थी कि इस बेनिफिट मैच के आखिरी दिन दोपहर बाद दर्शक जुटेंगे. लेकिन वह मैच ट्रॉट की दो हैट्रिक की वजह से बहुत जल्दी खत्म हो गया. ट्रॉट के लिए धन नहीं उगाहा जा सका. यानी ट्रॉट ने खुद का घाटा करा लिया.

-हुआ यूं कि समरसेट की टीम ने लक्ष्य का पीछा करते हुए 77/2 रन बनाए थे. ट्रॉट ने हैट्रिक के साथ लगातार चार गेंदों में चार विकेट चटकाए और स्कोर 77/6 हो गया. इसके बाद स्कोर 97/7 रन था, तो एक बार फिर ट्रॉट ने हैट्रिक लेकर पूरी टीम समेट दी. ट्रॉट का गेंदबाजी विश्लेषण रहा- 8-2-20-7.

अलबर्ट ट्रॉट (GETTY)

रोचक FACT

अलबर्ट ट्रॉट के बाद प्रथम श्रेणी क्रिकेट की पारी में दो हैट्रिक लेने का कारनामा जोगिंदर सिंह राव ने किया. 1963-64 में नॉर्दर्न पंजाब के खिलाफ अमृतसर में सेना की ओर से खेलते हुए उन्होंने अपने दूसरे ही मैच में यह उपलब्धि हासिल की. इससे पहले जोगिंदर ने दिल्ली में जम्मू-कश्मीर के खिलाफ डेब्यू में भी हैट्रिक ली थी. यानी इस भारतीय मध्यम गति के तेज गेंदबाज ने दो लगातार मैचों में तीन हैट्रिक ली.

जानिए ट्रॉट के बारे में-

ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड दोनों तरफ से टेस्ट खेले

करिश्माई क्रिकेटर ट्रॉट का टेस्ट करियर महज पांच टेस्ट का रहा. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड दोनों टीमों की तरफ से टेस्ट मैच खेले (3 टेस्ट ऑस्ट्रेलिया और 2 टेस्ट इंग्लैंड की ओर से). ट्रॉट ने जनवरी 1895 में एडिलेड में इंग्लैंड के खिलाफ डेब्यू किया था.

डेब्यू की एक पारी में 8 विकेट लेने वाले पहले बॉलर

ट्रॉट अपने पहले ही टेस्ट की पारी में 8 विकेट लेने वाले पहले गेंदबाज बन गए. उनके बाद से डेब्यू टेस्ट की पारी में अब तक 8 गेंदबाजों ने 8-8 विकेट झटके हैं. लेकिन सबसे कम रन देकर 8 विकेट लेने का रिकॉर्ड आज भी दाहिने हाथ के स्लो बॉलर ट्रॉट के नाम है. देखिए ये लिस्ट-

TOP-3: डेब्यू टेस्ट में सबसे किफायती 8 विकेट लेने वाले

1.अलबर्ट ट्रॉट (ऑस्ट्रेलिया) : 27 ओवर, 10 मेडन, 43 रन, 8 विकेट, विरुद्ध इंग्लैंड, 1895

2. बॉब मेसी (ऑस्ट्रेलिया) : 27.2 ओवर, 9 मेडन, 53 रन, 8 विकेट, विरुद्ध इंग्लैंड, 1972

3. नरेंद्र हिरवानी (भारत) : 18.3 ओवर, 3 मेडन, 61 रन, 8 विकेट, विरुद्ध वेस्टइंडीज 1988

… तो इसलिए ऑस्ट्रेलिया छोड़कर इंग्लैंड चले गए थे

अलबर्ट ट्रॉट ने ऑस्ट्रेलिया की ओर से तीन टेस्ट में 102.50 की औसत से रन बनाए. फिर भी ऑस्ट्रेलियाई चयनकर्ताओं ने उन्हें तवज्जो नहीं दी और 1896 के दौरे के लिए टीम में नहीं चुना. इसके बावजूद ट्रॉट ने हिम्मत नहीं हारी और वह खुद के खर्च पर इंग्लैंड चले गए. जहां उन्हें काउंटी क्रिकेट में मिडिलसेक्स की तरफ से खेलने का मौका मिल गया. इसी के बाद 1898 में ट्रॉट ने इंग्लैंड की ओर से दक्षिण अफ्रीका में 2 टेस्ट खेले.

विल्सडेन कब्रिस्तान, लंदन (GETTY)

लॉर्ड्स में सबसे बड़ा छक्का लगाने वाले एकमात्र क्रिकेटर

1899 में जब ऑस्ट्रेलिया की टीम इंग्लैंड दौरे पर आई तो ट्रॉट ने जबर्दस्त धमाका किया. दरअसल, लॉर्ड्स में 31 जुलाई को एमसीसी और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले गए मैच में ट्रॉट ने ऑस्ट्रेलिया के मॉन्टी नोबल की गेंद पर ऐसा छक्का जमाया कि इतिहास बना गया. ट्रॉट लॉर्ड्स के पवेलियन के ऊपर से छक्का जड़ने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं.

बीमारी के बाद डिप्रेशन में चले गए थे, खुदकुशी की

ट्रॉट पहले ही टेस्ट खेलने की होड़ से बाहर थे. 1910 में उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट से भी खुद को अलग कर लिया और अंपायरिंग में हाथ आजमाया. इस बीच वह ड्रॉप्सी (जलोदर- पेट में पानी भर जाना) नामक बीमारी के शिकार हुए. धीरे-धीरे ट्रॉट ज्यादा शराब पीने लगे. इसके बाद लगातार डिप्रेशन में रहे. और आखिरकार 41 साल की उम्र में 30 जुलाई 1914 को उन्होंने खुद को पिस्टल से गोली मार ली.

साभार: aajtak.in

 

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