पूर्व अध्य्क्ष माता प्रसाद पाण्डे ने असवैधानिक तरीके से मान्यता दी थी,नेता प्रतिपक्ष राम गोविद चौधरी को
लखनऊ। नई विधान सभा गठित होने के बाद चयनित विधान सभा अध्य्क्ष द्वारा नेता प्रतिपक्ष को मान्यता दिए जाने की व्यवस्था है।यह भी परम्परा है कि विधान सभा अध्य्क्ष का चयन अंतिम विधान सभा अध्य्क्ष के न होने की दशा में वर्तमान विधान सभा का वरिष्ठतम सदस्य विधान सभा अध्य्क्ष के रूप,में नए विधान सभा अध्य्क्ष का चयन कराता है। यह आवश्यक नही है कि वरिष्ठ सदस्य बहुमत वाली पार्टी का ही हो। वह किसी भी दल का हो सकता है। इसी कारण विधान सभा अध्यक्ष का चयन भी नियमानुसार नही हो सका क्योकि निवर्तमान विधान सभा अध्य्क्ष माता प्रसाद पाण्डेय, उससे पूर्व ही सदन के वरिष्ठतम सदस्य राम गोविद चौधरी को नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता दे चुके थे।
राम गोविंद चौधरी एक ओर जहाँ अनुचित रूप से नेता प्रतिपक्ष बने वही दूसरी ओर विधान सभा अध्यक्ष जैसे गरिमामयी पद के सम्मान से भी हाथ धो बैठे। माता प्रसाद पाण्डेय ने कदाचित यह कार्यवाही यादव परिवार की आंतरिक कलह के कारण की होगी। पाण्डेय संविधान का अनुपालन भी नही करा पाए और न ही चौधरी को एक दिन के लिए ही सही,विधान सभा अध्य्क्ष बनवा पाये।
राम गोविंद चौधरी को नेता प्रतिपक्ष की मान्यता दिए जाने पर लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ सुभाष सी कश्यप ने इसे जल्दबाजी भरा निर्णय बताया है। राम गोविंद को निवर्तमान विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय ने मान्यता दी थी जिस पर राज्यपाल राम नाईक ने उनसे राय मांगी थी। सुभाष सी कश्यप ने राज्यपाल को अपना अभिमत भेजते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 175 (2) के अंतर्गत राज्य के दोनों सदनों को राज्यपाल आवश्यकतानुसार अपना संदेश भेज सकते है।
निवर्तमान विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नेता विरोधी दल को मान्यता देना जल्दबाजी में लिया गया निर्णय है। मान्यता देने का निर्णय नये विधानसभा अध्यक्ष के लिए छोड़ देना चाहिए था।
राज्यपाल राम नाईक ने निवर्तमान विधानसभा अध्यक्ष पांडेय की ओर से समाजवादी पार्टी विधानमंडल दल के नेता राम गोविंद चौधरी को नेता विरोधी दल के रूप में मान्यता दिये जाने पर आपत्ति जताई थी और संविधान के अनुच्छेद 175(2) के तहत नवगठित विधानसभा को संदेश भेजकर निवर्तमान विधानसभा अध्यक्ष के इस निर्णय के लोकतांत्रिक व संवैधानिक औचित्य पर विचार करने के लिए कहा था।
राम गोविंद चौधरी को नेता विरोधी दल के तौर पर मान्यता दिये जाने की अधिसूचना सोलहवीं विधानसभा के अंतिम कार्यदिवस 27 मार्च 2017 को विधानसभा सचिवालय की ओर से जारी की गई। राज्यपाल ने बाकायदा पत्र लिखकर कहा था कि विधानसभा के सामान्य निर्वाचन के फलस्वरूप गठित होने वाली विधानसभा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष द्वारा ही नवगठित विधानसभा में नेता विपक्ष को मान्यता दिये जाने की हमेशा परम्परा रही है।
नेता विरोधी दल को इस प्रकार मान्यता देने का कदाचित कोई उदाहरण देश के किसी राज्य में मौजूद नहीं है, जब किसी विधानसभा के कार्यकाल के अंतिम दिन विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नवगठित विधानसभा जिसका कि वह सदस्य भी चुना नहीं गया हो, नेता विपक्ष को अगले पांच साल के लिए मान्यता दी हो।
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