TDP के अलग होने के मायने, जानिए संसद में कितनी घटी BJP की ताकत?

नई दिल्ली। साल 2014 में मिली भारी-भरकम जीत से गदगद बीजेपी 2018 आते-आते उपचुनावों में लगातार हार के चलते बहुमत के करीब पहुंच गई है. पार्टी की सीटें 283 से घटकर 272 तक पहुंच गई है. आज टीडीपी के एनडीए से बाहर होने के बाद अब सदन में बीजेपी की क्या स्थिति है, इसे देखना दिलचस्प है.

टीडीपी के हटने से क्या है सदन की स्थिति

अभी लोकसभा में बीजेपी के सांसदों की संख्या 274 है. वहीं सहयोगी दलों के रूप में शिवसेना से 18, एलजेपी से 6, अकाली दल से 4, आरएलएसपी से 3, जेडीयू से 2, अपना दल के 2, पीडीपी का एक, एसडीएफ का एक और एनपीपी का एक सांसद है. टीडीपी के लोकसभा में 16 और राज्यसभा में 6 सांसद हैं. इस प्रकार उसके कुल सांसदों की संख्या 22 होती है. टीडीपी के एनडीए से हटने पर NDA का कुनबा 328 से घटकर 312 सदस्यों का रह जाएगा.

राज्यसभा में बढ़ेगी बीजेपी की दिक्कत

टीडीपी के एनडीए से अलग होने से लोकसभा में तो सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन सांसदों की समर्थन वापसी से राज्यसभा में सरकार की दिक्कतें बढेंगी. रोजमर्रा के बिल पास कराने में सरकार की मुश्किलें और बढ़ जाएंगीं. शिवसेना पहले से ही बीजेपी के विरोध में बोलती रही है. अब टीडीपी के साथ आने से विपक्ष की संख्या बढ़ेगी. साथ ही ये आरोप लगेगा कि मोदी सरकार सहयोगियों को साथ नहीं ऱख पा रही है. इसके अलावा दक्षिण के आंध्र प्रदेश में बीजेपी की राजनीतिक संभावनाओं को भी झटका लगेगा.

अविश्वास प्रस्ताव के लिए 50 सदस्य जरूरी

अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कम से कम 50 सदस्यों की सहमति आवश्यक है, जो फिलहाल तो पूरी होती नहीं दिख रही, लेकिन एक के बाद एक सहयोगी दलों के रूठने से बीजेपी की दिक्कत जरूर बढ़ सकती है. दीगर है कि 2014 में 283 सीटों वाली बीजेपी के साथ एनडीए का कुनबा 383 सीटों का था, जो अब लगातार घटता जा रहा है.

282 से घटकर 272 तक पहुंची बीजेपी की ताकत

हाल ही में यूपी-बिहार उपचुनावों के परिणाम आने के बाद सदन में भाजपा की सीटों की संख्या 2014 के 282 से घटकर अब 272 पर पहुंच गई है. लोकसभा में मौजूदा समय में 536 सदस्य हैं, जबकि सात सीटें खाली हैं. इस हिसाब से सदन में भाजपा अब भी अकेले बहुमत में है. हालांकि सहयोगियों के साथ उसके पास भारी बहुमत है.

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक लोकसभा के 19 उपचुनाव हो चुके हैं. इन उपचुनावों के रिजल्ट भाजपा की पेशानी पर बल देने वाले रहे हैं. उपचुनावों में कई सीटें बीजेपी के हाथ से निकल चुकी हैं.

सीटें हारने के साथ-साथ बीजेपी की मुश्किलें इसलिए और बढ़ती जा रही है क्योंकि अब उसे एनडीए में शामिल दल ही आंखें दिखाने लगे हैं. शिवसेना की घुड़की के बाद अब टीडीपी ने एनडीए से बाहर होने का फैसला कर लिया है. बीजेपी की दिक्कत यहीं कम नहीं होने वाली है. टीडीपी ने सदन में अविश्वास प्रस्ताव लाने वाली है. टीडीपी के इस प्रस्ताव को वाईएसआर भी समर्थन देने की बात कह चुकी है.

तीन और उपचुनाव हैं बाकी

अभी बीजेपी को तीन और सीटों पर उपचुनाव का सामना करना है. इनमें दो महाराष्ट्र की, जबकि एक यूपी की है. महाराष्ट्र में पालघर से सांसद चिंतामन वनगा का 30 जनवरी 2018 को निधन हो गया था. भंडारा गोंदिया सीट से नाना पटोले दिसंबर 2017 में बीजेपी से इस्तीफा देकर कांग्रेस ज्वाइन कर लिया था. वहीं यूपी की कैराना सीट से सांसद हुकुम सिंह का बीते माह 4 फरवरी को निधन हो गया था. इसके अलावा कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव भी है.

2014 के बाद से हो चुके हैं 19 उपचुनाव

2014 में ही मैनपुरी और वडोदरा में उपचुनाव हुए थे. दोनों ही सीटें मुलायम सिंह यादव और पीएम नरेंद्र मोदी ने खाली की थीं. मैनपुरी से सपा के तेज प्रताप यादव जीत गए, जबकि वडोदरा में बीजेपी की रंजन बेन बड़े अंतर से जीतीं. इसके बाद 2015 में वारंगल, बनगांव और कृष्णागंज में उपचुनाव हुए. इसमें वारंगल की सीट पर टीआरएस के दयाकार पुसुनूरी जबकि पश्चिम बंगाल में दोनों सीटों पर टीएमसी उम्मीदवार ममता ठाकुर और सत्यजीत विश्वास विजयी रहे.

2016 में तुमलुक, कूचबिहार, शहडोल और लखीमपुर में उपचुनाव हुए.  कूचविहार और तुमलुक में टीएमसी और जबकि शहडोल और लखीमपुर की सीट बीजेपी फिर से जीत गई थी.

2017 में गुरुदासपुर, श्रीनगर और अमृतसर में उपचुनाव कराए गए. यहां गुरुदासपुर की सीट बीजेपी के हाथ से निकल गई, जबकि श्रीनगर  की सीट से फारूक अब्दुल्ला जीते थे. अमृतसर की सीट पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया.

2018 में 6 सीटों पर उपचुनाव हुए. अजमेर, अलवर, उलबेरिया, अररिया, गोरखपुर और फूलपुर में उपचुनाव हुए जो 2019 का इशारा कर रहे हैं. इसमें अजमेर और अलवर सीट बीजेपी के हाथ से निकल गई. यूपी की दोनों हाईप्रोफाइल सीट बीजेपी गंवा बैठी. बिहार की अररिया सीट पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया.

 

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