खतरा टला है, खत्म नहीं हुआ: गढ़चिरौली हमले के बाद शांत नहीं बैठेंगे माओवादी…!

देवब्रत घोष 

विशेषज्ञों की राय है कि गढ़चिरौली की घटना के बाद माओवादी चरमपंथी शांत नहीं बैठेंगे, वे इस तैयारी में लगे होंगे कि जल्द से जल्द अपने इस बड़े नुकसान का बदला लें और पलटवार करें.

पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों के साथ हुई मुठभेड़ में 37 से ज्यादा नक्सली मारे गए हैं. जानकारों का मानना है कि ऐसे मौके पर अगर पुलिस या सिक्योरिटी फोर्स जरा सी भी लापरवाही बरतते हैं या बेफिक्र होकर शांत बैठ जाती है तो ये उनके लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकता है. क्योंकि ये अच्छी तरह से माना हुआ सच है कि माओवादी अपने साथियों की मौत का बदला लेकर रहते हैं. वे किसी भी हालत में चुप नहीं बैठेंगे.

फर्स्टपोस्ट से बात करते हुए इंटरनल सिक्योरिटी एक्सपर्ट और वाम चरमपंथ के विषय पर जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ प्रकाश सिंह ने बताया, ‘लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, माओवादी अगले 45 से 60 दिनों के बीच में कभी भी बड़ा हमला कर सकते हैं. अगर कोई ये सोचता है कि गढ़चिरौली की घटना के बाद माओवादी कमजोर पड़ गए हैं तो वो बहुत बड़ी भूल कर रहा है.’

कुछ ऐसी ही राय भारतीय माओवाद/नक्सलवाद के अन्य जानकारों की भी है, उनके मुताबिक वाम कट्टरपंथियों की पूरी कोशिश होगी कि वे ऐसा संदेश दें जिसमें ये कहा जाएगा कि, ‘हम न डरे हैं, न मरे हैं, हम जिंदा हैं और पूरे जोश में हैं.’

इस बीच छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों की पुलिस ने गढ़चिरौली से सटे उन जिलों और शहरों में अलर्ट जारी कर दिया है, जहां माओवादियों का आतंक है. इनमें छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर, कांकेड़ जैसे इलाके शामिल हैं. खासकर, बुधवार को जिस तरह से कांकेड़ में हथियारों का बड़ा जखीरा बरामद हुआ है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रतीकात्मक तस्वीर

छत्तीसगढ़ पुलिस के अनुसार, 23 अप्रैल को कांकेड़ के घने जंगलों में जिस तरह से माओवादियों और सुरक्षा दलों के बीच मुठभेड़ हुई और जिसमें बीएसएफ का एक जवान बुरी तरह से घायल हो गया उसके बाद राज्य पुलिस के एंटी स्कवाड दल ने बुधवार को कम से कम 24 आईईडी यानि इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस, 40 बारूद से लैस तीर, रॉकेट लॉन्चर जैसे खतरनाक हथियार बरामद किए हैं. पुलिस को इस बात का पूरा विश्वास है कि ये माओवादी फिर से किसी बड़े हमले की ताक में लगे हैं.

हालांकि, ये पहली बार नहीं हुआ है कि छत्तीसगढ़ में बारूद से लैस तीर बरामद किए गए हैं. इससे पहले भी छत्तीसगढ़ में माओवादियों ने बारूदी सुरंग के साथ-साथ रैंबो स्टाइल में बारूद से लैस तीर का खूब इस्तेमाल किया है. उन्होंने 11 मार्च 2017 को सुकमा के भेज्जी इलाके के कोट्टाचेरू में सीआरपीएफ की टीम पर हमले के दौरान ऐसा ही किया था. लेकिन उस वक्त पूरा देश उत्तरप्रदेश में बीजेपी की विधानसभा चुनावों के दौरान हुई शानदार जीत के जश्न में डूबा हुआ था जिस कारण इस विभत्स घटना की न तो ज्यादा चर्चा हुई न ही लोग इसे जान पाए. उस घटना में सीआरपीएफ के 12 जवानों की भी मौत हो गई थी.

नक्सलियों को अपनी इस रणनीति की प्रेरणा साल 1985 में रिलीज हुई हॉलीवुड की ब्लॉकबस्टर फिल्म रैंबो-फर्स्ट-ब्लड पार्ट-2 से मिली थी. फिल्म में फिल्म के हीरो सिल्वेस्टर स्टेलोन बारूद से भरे तीर का इस्तेमाल कर अपने दुश्मनों का खात्मा करते हैं. ऐसा वे अकेले करते हैं जबकि दुश्मनों की तादात काफी ज़्यादा होती है, उसी तर्ज पर ये नक्सल इस तकनीक का इस्तेमाल कर न सिर्फ सुरक्षा बलों का ध्यान भटकाने में सफल हो जाते हैं बल्कि उन पर बारूदी सुरंग के जरिए हमला भी कर पाते हैं.

फर्स्टपोस्ट से बात करते हुए छत्तीसगढ़ पुलिस के नक्सल ऑपरेशंस के प्रमुख स्पेशल डायरेक्टर जनरल डीएम अवस्थी ने कहा, ‘पिछले कुछ दिनों में, हम लगातार बस्तर और आसपास के इलाकों से हथियार और बारूद बरामद कर रहे हैं. गढ़चिरौली की घटना के बाद हमें पूरा अंदाजा था कि माओवादी प्रतिहिंसा जरूर करेंगे जिसे ध्यान में रखते हुए हमने कई जगहों पर अलर्ट भी जारी किया है.’

इससे पहले भी कई मौकों पर ऐसा देखा गया है कि माओवादी कार्यकर्ता बदले की कार्रवाई करते हुए अचानक से सुरक्षा बलों पर हमला कर देते हैं, जो छत्तीसगढ़ के अलावा उन नक्सल प्रभावित राज्यों में भी होता आया है जहां माओवादियों का असर है.

गढ़चिरौली की घटना हाल-फिलहाल के दिनों में माओवादियों की खिलाफ पुलिस और सुरक्षा बलों की सबसे बड़ी सफलता के रूप के जाना जाएगा. इस अभियान में छत्तीसगढ़ पुलिस के अलावा उनकी एलीट कमांडो फोर्स सी-60 और सीआरपीएफ का भी बड़ा योगदान है. इन दोनों संस्थाओं ने लोकल इंटीलिजेंस इनपुट पर तुंरत एक्शन लेते हुए, जबरदस्त तालमेल और तुरंत कार्रवाई का परिचय दिया. इन्होंने इन अतिवादी चरमपंथियों पर त्वरित कार्रवाई करते हुए महाराष्ट्र के भामरागढ़ तहसील के कसनौर गांव में 22 अप्रैल को हमला किया था.

रविवार के बाद भी, पुलिस और सुरक्षा बलों ने इन चरमपंथियों के खिलाफ अपना संयुक्त ऑपरेशन जारी रखा था और गढ़चिरौली में 37 माओवादियों को मार डाला. इसका असर माओवादियों का गढ़ माने जाने वाले पड़ोसी राज्य बस्तर में आसानी से देखा जा सकता है जो गढ़चिरौली से ज्यादा आसान लक्ष्य है.

बड़ी मात्रा में आईईडी या इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस मिलने से कांकेड़ का महाला गांव अचानक से चर्चा के केंद्र में आ गया है. पिछले पांच सालों में माओवादियों ने इस इलाके की संवेदनशीलता के ध्यान में रखते हुए, यहां से काफी हद तक पलायन कर लिया था लेकिन बुधवार को जिस तरह से यहां सरगर्मी बढ़ी और बड़ी मात्रा में बारूदी हथियार मिले उससे पुलिस-प्रशासन एक बार फिर से दबाव में आ गया है.

डीएम अवस्थी ने हमसे बात करते हुए कहा, ‘हम एक बार फिर से सभी नक्सल प्रभावित राज्यों से संपर्क बनाने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा करते हुए हम पूरी तरह से ऑपरेशन के दौरान सहयोग और तालमेल स्थापित हो सके इस बात पर ध्यान दे रहे हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नक्सल प्रभावित सबसे खतरनाक जिले बीजापुर में चार घंटे से ज्यादा समय बिताया था. हमने उन्हें भरोसा दिलाया है कि नक्सल प्रभावित अन्य जिलों में भी हम ऐसी ही सुरक्षा व्यवस्था खड़ी करेंगे.’

आंतरिक सुरक्षा विशेषज्ञों का सुझाव है कि छत्तीसगढ़ और उन सभी जगहों में जहां नक्सल माओवादियों का आतंक है वहां की पुलिस और सुरक्षा बलों को गढ़चिरौली के उदाहरण और उनके कार्यप्रणाली का पालन करना चाहिए, ताकि उनके बीच बराबर संवाद होता रहे और वे हर जानकारी से अपडेट रहें.

डिफेंस एंड स्ट्रैटेजिक एक्सपर्ट मेजर जनरल (रिटायर्ड) ध्रुव कटोच के अनुसार, ‘ये अभी खत्म नहीं हुआ है क्योंकि ऐसे हमलों के बाद आमतौर पर माओवादी और ज्यादा हिंसक हो जाते हैं. गढ़चिरौली में जिस भी रणनीति का इस्तेमाल किया गया है, चाहे वो अंतरराज्जीय कोऑर्डिनेशन यानि तालमेल रहा हो या फिर इंटीलिजेंस इनपुट पर तुरंत और त्वरित कार्रवाई करने की हो, उसे हर हाल में जारी रखना चाहिए. चाहे छत्तीसगढ़ की पुलिस हो या किसी और राज्य की, उन्हें इस स्ट्रैजेजी को हर हाल में सुनिश्चित करना चाहिए.’

prakash singh

कुछ ऐसा ही कहना था उत्तरप्रदेश के पूर्व डीजीपी और बीएसएफ के पूर्व डायरेक्टर जनरल प्रकाश सिंह का, वे कहते हैं, ‘ये जरूरी है कि राज्य सरकारें राज्य पुलिस और पारा-मिलिट्री फोर्स के बीच माकूल संवाद और तालमेल न सिर्फ स्थापित करे बल्कि उसे सुनिश्चित भी करे. नेतृत्व के स्तर पर कहीं कोई विवाद भी नहीं होना चाहिए, क्योंकि माओवादी हर वक्त इस ताक में रहते हैं कि कहीं कोई गड़बड़ हो और उसकी भनक लगते ही वे हमला कर दें….और वे ऐसा ही करेंगे. गढ़चिरौली के ज्वाइंट ऑपरेशन ने हमें एक रास्ता सुझाया है.’

 

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