घबराने से कभी नही हल होती है समस्या
मनु अपने परिवार के साथ एक बड़े रेस्टोरेंट में गया. उस रेस्टोरेंट की खास बात यह थी कि वहां खाना खाने के लिए एक सुंदर से स्विमिंग पूल के किनारे व्यवस्था की जाती थी. खुले आसमान के नीचे, नीले-नीले ठंडे पानी की लहरों के बगल में बैठकर सुंदर कैंडल लाइट डिनर देखकर मनु व उसके परिवार का दिल खुश हो गया था. तभी वहां से गुजर रहे एक सज्जन का पैर फिसला व वह पूल में छपाक से गिर पड़े.
वह जोर-जोर से चिल्लाने लगे व अपने हाथ-पैर बेतहाशा चलाने लगे. ऐसा लग रहा था, मानो वह बस डूबने ही वाले हैं. वहां खड़े वेटर उन्हें संकेत करने लगे कि वह परेशान न हों, पर घबराहट में उन्हें कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था. कुछ ही सेकंडों में एक वेटर पानी में कूदा व उन्हें मजबूती से पकड़ लिया.उस वेटर को देखकर वह जैसे ही शांत हुए व पैर चलाना बंद किया, तो उन्हें आभास हुआ कि उनके पैर पूल की जमीन को छू रहे हैं.
वह वेटर का हाथ पकड़ कर खड़े हुए, तो पता चला कि पूल की गहराई तो उनकी कमर से भी कम की थी. मनु ने यह सब देखने के बाद अपने बेटे दिनेश से पूछा, बेटे, तुमने इस घटना से क्या सीखा? दिनेश जवाब सोचने लगा. मनु बोले, बेटा, अक्सर ऐसी स्थिति हम सबके साथ आती है. हर बार पानी में गिरें ,यह महत्वपूर्ण नहीं, पर आकस्मित अनजानी परिस्थितियां हमें घेर लेती हैं. ऐसी स्थितियों में हमारी पहली रिएक्शन अच्छा वैसी होती है, जैसी उस शख्स की थी, जो पानी में गिरते ही छटपटाने लगा.
पर यदि सचमुच छटपटाने वाली बात होती, तो वह वेटर इतने आराम से पानी में कैसे उतर पाता! उसका मन शांत था, तभी वह पानी में उतर पाया, व उस शख्स को भी शांत कर पाया. हम अक्सर परिस्थितियों से घबराकर ऐसे ही छटपटाने लगते हैं व बिना सोचे-समझे कदम उठा लेते हैं. जबकि सही उपाय यही है कि हर हालात में अपने मन को शांत रखो, तभी उसका हल निकल सकेगा.
घबराने से न समस्या हल होती है, न खुद को शांति मिलती है, तो घबराना क्यों?
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