जाटों को ओबीसी आरक्षण नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका
तहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, नई दिल्ली। जाटों को केंद्रीय नौकरियों में ओबीसी आरक्षण की अंतिम उम्मीद भी समाप्त हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि जाटों को ओबीसी आरक्षण नहीं मिलेगा। कोर्ट ने मंगलवार को जाट आरक्षण रद्द करने के फैसले पर पुनर्विचार करने से इंकार करते हुए केंद्र सरकार और जाटों के प्रतिनिधि संगठनों की याचिकाएं खारिज कर दीं। इसके अलावा कोर्ट ने मंगलवार को करीब 150 उन जाट आवेदकों की अर्जियां भी खारिज कर दीं जिन्होंने फैसला आने से पहले बैंक भर्ती परीक्षा ओबीसी आरक्षण का लाभ लेकर पास की थी, लेकिन नियुक्ति से पहले सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ जाने के कारण उन्हें ज्वाइन नहीं कराया गया। अर्जीकर्ताओं ने अपना मामला फैसला आने से पहले का बताते हुए इसके असर से छूट मांगी थी। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई व न्यायमूर्ति आरएफ नारिमन ने मांग ठुकराते हुए कहा कि यह मुद्दा पहले ही तय किया जा चुका है। जाटों का कोई अधिकार नहीं बनता। अगर नियुक्ति पत्र नहीं मिले हैं तो कोर्ट का आदेश लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट ने गत 17 मार्च को जाटों को केंद्रीय नौकरियों में आरक्षण देने वाली केंद्र सरकार की अधिसूचना रद्द कर दी थी। उस अधिसूचना के जरिए केंद्र सरकार ने नौ राज्यों बिहार, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान में धौलपुर और भरतपुर जिला तथा उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के जाटों को केंद्रीय नौकरियों में ओबीसी आरक्षण दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में जाटों को पिछड़ों की केंद्रीय सूची में शामिल करने के सरकार के फैसले से असहमति जताते हुए कहा था कि आंकड़े एक दशक पुराने हैं। आंकड़े नए होने चाहिए पुराने आंकड़ों के आधार पर पिछड़ेपन का आकलन नहीं किया जा सकता। राजनीतिक रूप से संगठित जाट वर्ग को पिछड़ों की सूची में सिर्फ इस आधार पर शामिल नहीं किया जा सकता कि उनसे बेहतर स्थिति वाले वर्ग इसमें शामिल हैं। जाति पिछड़ेपन का एक आधार हो सकती है, लेकिन एकमात्र आधार नहीं हो सकती। बेहतर हो कि सरकार पिछड़ेपन के आकलन के नए तरीके अपनाएं और नए वर्गो को उसमें शामिल करें। कोर्ट ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश नजरअंदाज करने को भी सही नहीं माना था। पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों को दरकिनार कर गत वर्ष 4 मार्च 2014 को अधिसूचना जारी कर नौ राज्यों के जाटों को केंद्र की ओबीसी सूची में शामिल कर लिया था। सत्ता में आने के बाद नई राजग सरकार ने भी जाट आरक्षण का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि यह जनहित में लिया गया फैसला है।
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